Mitali Mishra

Drama Romance

4  

Mitali Mishra

Drama Romance

प्यार की कुर्बानी

प्यार की कुर्बानी

4 mins
557


प्रेम के बिना जिंदगी की कल्पना करना नामुमकिन है क्यूंकि ये प्रेम ही है जो हमें एक दूसरे से जोड़ कर रखती है। इसलिए तो प्यार निस्वार्थ होता है,प्यार में लोग एक दूसरे की खुशी को तवज्जो देते है।प्यार में कोई जबरदस्ती नही होती और न ही ये जरूरी होता है की अगर आप किसी से प्यार करते हो तो वो भी आपसे करे ही।इतना कहते-कहते नेहा चुप हो गई ऐसा लगा मानो किसी पुरानी यादों में खो गई हो की तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।

नेहा ने जब दरवाजा खोला तो सामने आशा खड़ी थी

नेहा-अरे तू कब आई,इतने दिनों बाद।दोनों ने एक दूसरे को गले लगाया और फिर नेहा ने आशा को बैठने को कहा।करीबन पांच साल बाद दोनों का मिलना हो रहा था।

तभी आशा ने पूछा और क्या कर रही थी तू 

तो नेहा ने कहा की मैं कुछ खास नहीं बस अपनी एक नई कहानी लिख रही थी।

आशा अरे वाह वैसे तू लिखती तो बहुत अच्छे से हो,तुम्हारी कहानी बिल्कुल ही जीवित लगती है।

नेहा-अच्छा छोड़ ये सब और बता कैसी है और विशाल कैसा है वो साथ नही आया?

आशा अरे आया है ना ,आता ही होगा 

और बता कैसी है क्या चल रहा है आज कल और शादी कब कर रही है?

दोनों पांच साल बाद मिले थे सो बातों का पिटारा खुलना तो लाजमी था।

तभी विशाल एक बच्चे को हाथ में लिए अंदर आया

नेहा ने आगे बढ़ कर विशाल का स्वागत किया।फिर क्या था रात भर तीनों ने जी भर के गप्पे किए।करीबन दो बजे के आस-पास नेहा ने कहा की अब सो जाओ,तुमलोग थके होगे सुबह हम फिर अपनी मंडली जमाएंगे।फिर तीनों ने ठहाके लगाए और अपने अपने कमरे की ओर चले गए।नेहा भी अपने बिस्तर पर लेट गई परंतु उसे अपने पुराने दिन याद आ रहे थे।उसे याद आ था की उसने भी कभी विशाल से प्यार किया था, परन्तु.....

हां,ये बात उस वक्त की थी जब विशाल और नेहा दोनों एक साथ एक ही स्कूल में जाया करते और इस तरह वो दोनों बच्चपन से ही एक दूसरे को पहचानते थे।दोनों के घरवालों का भी एक दूसरे के यहां आना जाना लगा रहता था। खैर, वक्त के साथ दोनों की उम्र भी बढ़ती रही और दोस्ती भी। दोनों अब स्कूल के दहलीज को छोड़ कर कॉलेज का रुख कर चुके थे। इधर नेहा की दोस्ती अंदर ही अंदर कब प्यार में तब्दील हो गया ये उसे भी पता नही चला। बच्चपन के उस नोंक झोंक से नेहा कब बाहर आ गई उसे ऐहसास ही नही हुआ।अब तो वो जब भी विशाल को देखती या मिलती तो बस ऐसा लगता था की कहीं वो खो सी जाती है,वो कहा जाता है ना की जब आपको प्यार हो जाता है तो आप आप नही रहते,आपके दिल,आपकी मुस्कुराहट,आपकी खुशी किसी और के सपने बुनने लगती है और यही कुछ नेहा के साथ भी हो रहा था।मगर वहीं दूसरी ओर विशाल अब तक दोस्ती का ही दामन पकड़े हुए था।उसे नेहा में अपना प्यार नही बल्कि दोस्ती नजर आता था।उसे तो प्यार किसी और से था,उसके सपनों में तो किसी और आना जाना होता था जिसका नाम था "आशा"।को अभी अभी अपना दाखिला उसी कॉलेज में करवाई थी।वो नेहा और विशाल के साथ ही पढ़ती थी।आशा को पहली बार ही देख कर विशाल कुछ खो सा गया था उसकी शालीनता उसे भा सी गई थी। धीरे-धीरे वक्त बीतता गया और इधर विशाल,नेहा और आशा की दोस्ती भी बढ़ती चली गई।मगर आशा और विशाल एक दूसरे के साथ दोस्ती के रिश्ते से आगे अब बढ़ चुके थे।उन्होंने एक दूजे से अपने हाले दिल बयां कर दिया था और इधर नेहा इन बातों से अनजान मन ही मन अब तक विशाल को प्यार किए जा रही थी।

परंतु वो दिन आज भी याद है नेहा को जब आशा और विशाल ने नेहा से कहा की वो दोनों एक दूसरे से प्यार करते है पर घरवाले नही मान रहे और इसके लिए उसने नेहा की मदद मांगी तो नेहा पहले थोड़ा अचंभित सी हो गई।उसे कुछ समझ नही आ रहा था की वो क्या बोले ,क्या करे।उसका मन अभी बहुत जोर जोर से रोने का हो रहा था परन्तु वो दूसरे ही पल अपने हल्की सी मुस्कुराहट से कहा की तुम दोनों परेशान मत हो मैं साथ दूंगी तुमदोनों का।और इस तरह नेहा ने उनके प्यार के लिए अपना प्यार कुर्बान किया। क्यूंकि वो समझ गई थी की विशाल उससे नही आशा से प्यार करता है और जब वो प्यार नही करता तो जबरन प्यार करवाया तो नही सकता है।और इस तरह नेहा के मदद से आशा और विशाल की सादी हो गई।घरवाले भी बाद में राजी खुशी मान गए।

तभी बच्चें की रोने की आवाज आई सुनते ही नेहा को ऐसा लगा मानो किसी गहरे नींद से जाग रही हो। शायद इतने साल बाद अपने अतीत को सामने देख कर उसे पुरानी बातें याद आ गई थी।उसने एक गहरी सांस लिया और फिर अपनी हल्की से मुस्कुराहट के साथ अपने कमरे से बाहर उस बच्चें के कमरे में जाने लगी।


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