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Mitali Mishra

Drama Inspirational

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Mitali Mishra

Drama Inspirational

यादों के झरोखें

यादों के झरोखें

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स्टेशन पर दिलीप लगभग आधे घंटे से ट्रेन के इंतजार में बैठा अखबार पढ़ रहा था साथ ही अपने अंतर्मन में चल रहे खुशी को किसी तरह समेटने की कोशिश कर रहा था। आखिर इतने सालों बाद अपने गांव जो जा रहा था। करीबन बीस बरस तो हो ही ग‌ए होंगे क्योंकि जब वो भागा था तो लगभग दस बरस का था। तभी एनांसमेंट हुई कि पटना को जाने वाली ट्रेन संख्या १३.. प्लेटफार्म नंबर १० के बजाय ६ पर आ रही है, सुनते ही दिलीप अपना सामान लिया और बड़े बड़े कदमों से आगे बढ़ने लगा। उसके बढ़ते कदम उसके मन के उत्साह को झलका रहें थे। खैर, दिलीप के पहुंचते ही ट्रेन भी प्लेटफार्म पर आ गई और वो ट्रेन पर चढ़ गया तथा अपने निर्धारित जगह पर जा कर आराम से बैठ गया। अब तक ट्रेन भी खुल गई, ट्रेन के खुलते ही दिलीप को ऐसा महसूस हुआ मानो पूरे बदन में सिहरन सी हुई हो, मानो नींद में कोई सपना देख रहा हो और फिर ये सब होना लाजिमी भी था आखिर इतने सालों बाद वो उस जगह जा रहा था जहां बचपन की यादें दफन थी। दिलीप रास्ते भर अपने गांव को अपने मन की आंखों से देखता रहा, निहारता रहा। चुकीं इतने वर्ष हो ग‌ए थे तो यादें थोड़ी धूमिल जरूर हो गई थी पर मिटा नहीं था। वो कच्चे रास्ते जहां से गांव शुरू हो जाती थी और सवारी के लिए रिक्शा या बैलगाड़ी होता था। उस कच्चे सड़क के दोनों ओर लहलहाते खेत होते थे ,उन्हीं खेतों के बीच छोटा छोटा तालाब, जहां हम सब बच्चे घंटों नहाते रहते थे। और वो रतन काका का आम का बगीचा जहां चोरी से आम के फल को तोड़ कर खाने का मजा लेते। और इसी मजा में एक दिन पकड़ा जाने पर बाबू जी के मार के डर से बचने के लिए बिना कुछ बोले घर से भाग गया था......कि तभी आवाज आई अरे उठो उठो बर्थ खाली करो भाई....। सुनते ही दिलीप हड़बड़ाता हुआ झट से खड़ा हुआ और पूछने लगा कौन सा स्टेशन है ये...तो सामने से किसी ने कहा कि भाई साहब पटना आ गये हो आप.... सुनते ही दिलीप का चेहरा खिल उठा, वो अपना सामान लेकर बाहर आया। चुकीं स्टेशन पर काफी भीड़ थी सो उसने जल्दी जल्दी वहां से निकलने की कोशिश करने लगा। स्टेशन से बाहर आते ही दिलीप हक्का बक्का रह गया, क्योंकि ये उसका अपना गांव लग ही नहीं रहा था जिसे वो बीस बरस पहले छोड़ा था। बाहर सवारी के लिए उसे रिक्शा और बैलगाड़ी नहीं बल्कि ऑटो, टैक्सी, और गाड़ी मिला।

उसने आगे बढ़कर एक गाड़ी लिया और अपने घर का पता बताया। गाड़ी से आगे बढ़ने लगा दिलीप जिध

र भी नजर घुमा रहा था वो अचंभित हो जा रहा था। कुछ वक्त बितने के बाद जैसे ही वो गांव का मोड़ आया तो बस दिलीप की आंखें नम सी हो ग‌ई उसके बिताए पल का एहसास इतना गहरा था कि ऐसा लग रहा था कि मानो कल की ही बात हो, पर ये क्या मोड़ तो वही था पर सड़क अब कच्ची नहीं रही, सड़क के दोनों तरफ लहलहाते खेत नहीं बल्कि घर बन चुका था, अब तो घर भी फूस के नहीं बल्कि ईंट पत्थरों से बन ग‌ए थे। वो गांव जो बीस बरस पहले था वो पूरी तरह से बदल चुका था, शहरी रंग में रंग चुका था दिलीप का वो गांव। अपने नयी पुरानी यादों के झरोखों में वो मानो खो सा गया था, कि तभी आवाज आई सर आपका पता यहीं का था हम पहुंच ग‌ए, इतना सुनते ही दिलीप ने कहा.....हां हां भाई ये लो तुम्हारा पैसा इतना कहकर उसने उस गाड़ी वाले को पैसा दिया और अपना सामान लेकर गाड़ी से बाहर निकला। आज दिलीप का दिल भावनाओं के समुद्र से बार बार उफन रहा था। खैर, उसने अपना कदम आगे बढ़ाया जैसे जैसे कदम आगे बढ़ रहे थे यादों की धूमिलता अब शायद कम होते जा रही थी। तभी तो वो घर के दहलीज तक पहुंचने से पहले उस बरगद के पेड़ को ढूंढने लगा, जो सदियों से वहां थी, जो आते जाते राहगीरों के आराम करने का जगह बन चुकीं थी, जहां हमारे जैसे शरारती बच्चे उधम मचाया करते थे। चूंकि वो पेड़ हमारे घर के अंदर था तो बाबू जी आते जाते पथिकों की सेवा किए बिना नहीं रहते उन्हें इन सब में काफी दिलचस्पी रहती थी पर अब कितना विरान सा हो गया ये जगह, कहां गया वो पेड़। अभी दिलीप अपने सवालों के जवाब ढूँढ ही रहा था कि आवाज आई कौन हो बेटा, किसे ढूँढ रहे हो, परदेशी हो। दिलीप जैसे ही अपनी नजर उस आवाज के तरफ किया कि तभी सामने उसने देखा कि एक बूढ़ी औरत जिसके बांये हाथ में लकड़ी का छड़ी जैसा था जो उसके खड़ा होने का सहारा बना हुआ था, आंखों पर लगे चश्मे गवाह थे उसके कमजोर नज़रों के लिए, सफेद बाल जो उसके बढ़ते उम्र का सबूत दे रहा था, देखते ही दिलीप के मुंह से अनायास ही 'मां' निकल गया। इतना सुनते ही दिलीप की मां ने कहा कौन 'दीपू'.....बेटा तुम आ गए....आओ मेरे पास आओ ...एक बार बस एक बार मेरे सीने से लग जा... मैं जानती थी तू एक दिन जरूर आएगा, पर मेरी बात किसी ने न मानी। आ..... मेरे लाल। दिलीप निशब्द था, उसकी आंखों से आंसू की बरसात हो रही थी, शायद वो आंसू पश्चाताप के थे, उसने भी बिना कुछ बोले अपने मां के गले लग गया।


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