Dr Jogender Singh(jogi)

Tragedy

4.5  

Dr Jogender Singh(jogi)

Tragedy

सफेद / लाल फूल

सफेद / लाल फूल

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पक्के मकान के बाहर ग्रीन बेल्ट पर पाँच पेड़ खड़े थे। सबसे छोटा झाड़ीनुमा पेड़ हर साल बसंत में सफ़ेद फूलों से ढक जाता। मानो हरे बदन पर फूलों की सफ़ेद चुनरी ओढ़ा दी गयी हो। पता नहीं क्यों, पर वो पेड़ मुझे सबसे सुन्दर लगता था। आज बसंत पंचमी के चौथे दिन उधर से गुज़रा तो पेड़ को घेर कर बनाया गया खुला रसोईघर दिखा। उत्सुकता से पास चला गया, अरे यह क्या घर के बाहर वाले कमरे में किराने की दुकान और जनरल स्टोर खुल गया था।ग्रीन बेल्ट को घेर कर फ़ास्ट फ़ूड बनाने की जगह बना दी गयी थी। व्यावसायिक गैस सिलेंडर का एक जोड़ा और बड़ा सा चूल्हा। सामने स्टील के फ़्रेम का बना काउंटर जहाँ से ग्राहक ऑर्डर देते और सामान लेते। उसी स्टील फ़्रेम के दायरे में वो छोटा पेड़ क़ैद हो गया था। तना जगह / जगह से छिल कर हरे से सफ़ेद हो गया था। एक घायल वीर की भाँति, कुछ मुरझाया सा, डटा था। पत्तियाँ हरी थी, पर जगह / जगह चिकनाई जम गयी थी। 

“क्या चाहिये बाबूजी ? नेपाली लड़के ने मुझ से पूछा। 

यह दुकान कब खुली ? 

छः / सात महीने हो गए, आप नए हो क्या ? दोपहर बारह बजे का समय था इसलिए लड़का फुर्सत में था।

हूँ, हाँ नया हूँ। मैंने एकटक पेड़ को देखते हुए कहा। यह क्या सिर्फ चार / पाँच फूल , वो भी लाल रंग के। मैंने आँखें मल कर फिर से पेड़ की तरफ़ देखा। लाल ही रंग के फूल थे। 

लड़का मुँह बाये कभी मुझे तो कभी पेड़ को देख रहा था। “ आपको क्या चाहिये बाबूजी ? ” 

इस पेड़ पर तो सफ़ेद फूल आते थे, लाल कब से आने लगे ? मेरे मुँह से बरबस निकल गया।

क्या बाबूजी आप फूल देखने आये हैं, वो भी इस पेड़ के ? उसने हिक़ारत भरी नज़रों से पहले पेड़ फिर मुझे देखा। “ सुनिये इस पर यही दो / चार लाल रंग के फूल देखे हैं मैंने, और आप ने कब सफ़ेद फूल देख लिए ? आप तो नए आए हो ना। लड़के ने शक भरी नज़रों से मुझे देखा। 

मैंने पेड़ को छू कर सहलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया। पर मेरे और पेड़ के बीच स्टील का काउंटर आ गया। 

इसी बीच लड़का मेरी बेजा हरकतों से परेशान हो कर अपने मालिक को बुला लाया।

” यही है, जब से आयें है पेड़ को देख रहें है, लगता है दिमाग़ हिल गया है। लड़के की धीमी आवाज़ सुनाई दी।

“मैंने पलट कर देखा।

अरे अंकल आप !! कैसे हैं? मिश्रा जी का लड़का विनीत था। विनीत ने लपक कर मेरे पैर छुए।

ख़ुश रहो बेटा, तुम तो किसी एम॰ एन॰ सी॰ में काम करते हो, छुट्टी पर हो क्या ? 

नहीं अंकल, नौकरी छोड़ दी, यह मकान किराये पर लेकर अपना काम शुरू किया है। 

बहुत अच्छा बेटा। पर यह ग्रीन बेल्ट में किचन, नगर निगम वाले परेशान नहीं करते ? 

ले / दे कर सब चलता है। महीना बंधा हुआ है अंकल। आप बताइये ? 

बस ठीक है बेटा। पर पेड़ों के लिए वन विभाग की अनुमति तो चाहिए होगी ? मेरा दिमाग़ उस छोटे घायल पेड़ पर अटका था।

“ हमें कौन से पेड़ काटने है ? जो वन विभाग से अनुमति लें, बाहर वाले बड़े पेड़ से तो छाँव मिलती है। आगे उसके नीचे टेबल लगा दूँगा, लोग खड़े हो कर आराम से खायेंगे। रहा यह छोटा पेड़, आधा मुरझा गया है, धीरे / धीरे चूल्हे की गर्मी से सूख जायेग , फिर धीरे से काट दिया जायेगा। विनीत की हर बात में जमाने के हिसाब से समझदारी झलक रही थी।

सही कह रहे हो बेटा। सूख ही जायेगा एक दिन। मेरे मुँह से धीरे से निकला।

अच्छा बेटा चलता हूँ। 

अंकल कैसे आना हुआ था, कोई काम हो तो ज़रूर बताना। हम लोग होम डिलीवरी भी करते हैं। यह मेरा नम्बर है कभी भी फ़ोन कीजिएगा। विनीत अपना विज़िटिंग कार्ड पकड़ाते हुए बोला। 

ज़रूर बेटा। मैंने बेबस नज़रों से मुरझाते पेड़ को देखा। लाल फूल नहीं, यह पेड़ के दर्द भरे आँसू हैं। 

कौन समझेगा उसकी भाषा, उसके अनकहे दर्द को। शायद कोई नहीं। या जब ऑक्सिजन कम होने से सबका दम घुटेगा , तब शायद पेड़ों की ज़ुबान लोगों की समझ में आये। तब सफ़ेद से लाल होते फूलों को देख कर लोग चेत जायें। काश ऐसा दिन जल्दी आए , जब लोग पेड़ों की ज़ुबान समझ पायें। किसी दूसरे पेड़ के सफ़ेद फूलों के लाल होने से पहले। 

ऐसा ही करना ईश्वर। मैंने अपने हाथ प्रार्थना के लिए जोड़ लिए !!!



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