संकल्प
संकल्प


चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था रोशनी के करुण क्रंदन से कठोर हृदय भी पिघल रहे थे। ऐसा वज्रपात हुआ रोशनी के ऊपर की उसको अपने आप को संभाल पाना मुश्किल था।
मुश्किल से अभी 8 या 9 महीने ही तो हुए थे सुहाग की वेदी पर जब उसने रमेश के साथ सात फेरे लिए थे और लाल जोड़े में छम छम पायल छनकाती हुए रमेश के घर आंगन में कुलवधू बनकर आई । चहकती फिरती थी सारे घर में उम्र मुश्किल से 19 या 20 साल होगी दुनियादारी की इतनी समझ भी नहीं थी लड़कपन तो जैसे अभी समझ ही नहीं पाया था कि अब वह एक विवाहिता है।
और आज अचानक यह वज्रपात ! नियति भी अपने इस क्रूर कृत्य पर शर्मिंदा हो उठे।
सारी सुहाग की निशानियां एक-एक करके उसके शरीर से अलग की जा रही थी तथा उसको विधवाओं का लिबास पहना दिया गया समझ में नहीं आ रहा था किस्मत का यह कैसा खेल है।
रोशनी एक छोटे से गांव की अपने मां-बाप की इकलौती संतान थी रमेश के घर वालों ने रोशनी को अपने समाज के एक वैवाहिक कार्यक्रम में देखा था तथा वही पसंद कर लिया था।
रमेश के घर वालों ने अपने बेटे की बीमारी को छुपा कर रोशनी से रिश्ता किया।
रोशनी को यह बात तब पता चली जब सारी स्थितियां हाथ से निकल चुकी थी।
रमेश को डायबिटीज थी तथा वह अपनी इस बीमारी को लेकर बहुत ही लापरवाह था। रोशनी को यह बात पता ना चले इसीलिए उसने शादी के बाद कुछ समय तक दवाइयों का भी सेवन नहीं किया था और खानपान में भी कोई परहेज नहीं परिणाम स्वरूप इसका दुखद अंत आज सभी के के सामने था।
अब रोशनी के वैधव्य पर उसकी खूबसूरती एक सबसे बड़ी मुसीबत बन गयी थी उसका अपना ही छोटा देवर जिसे भाई के समान मानती थी उस पर बुरी नजर रखने लगा मौका पाते ही रागिनी को छेड़ता मुश्किल से रोशनी अपनी आबरू बचा पाती।
अपने देवर की हरकतों से छुटकारा पाने के लिए रोशनी ने अपने मायके की शरण ली। लेकिन बेटी का यह पहाड़ जैसा दुख मां बाप भी ज्यादा दिन तक नहीं झेल सके और असमय ही वह भी काल के गाल में समा गए। रोशनी का आखिरी सहारा भी छिन गया।
रोशनी कम उम्र में शादी हो जाने के कारण वह ज्यादा पढ़-लिख नहीं सकी थी इसीलिए वह कोई नौकरी भी नहीं कर सकती थी हां लेकिन उसको खाना पकाना बहुत अच्छा आता था।
उसने अपनी एक सहेली की सहायता से आंगनबाड़ी में मध्यान्ह भोजन में खाना पकाने का काम शुरू कर दिया।
धीरे-धीरे सभी शिक्षिकाओं की सहानुभूति रोशनी के साथ जुड़ने लगी और वह भी चार पढ़े लिखे लोगों के बीच में बैठकर थोड़ा बहुत दुनियादारी सीख रही थी।
एक दिन उसने अपनी हमउम्र शिक्षिका सीमा से अपने दिल की बात कही । क्या शादी के पहले यह पता नहीं चल सकता कि उसका होने वाला पति स्वस्थ है या फिर किसी बीमारी से ग्रसित?
रोशनी की यह बात सुनकर सीमा का भी माथा ठनका बात तो सही है।
यह बात जानने का अधिकार वर पक्ष और वधू पक्ष दोनों को है जिससे आने वाली जिंदगी में किसी के साथ कोई धोखा ना हो।
अब रोशनी ने सीमा के साथ मिलकर अपने गांव के लोगों को जागरूक करने का अभियान छेड़ा जहां भी शादी की खबर सुनती तो पहुंच जाती वहां लोगों को अपनी स्थिति से अवगत कराने और अपने साथ हुए धोखे से। और उनको समझाती कि आप अपने होने वाले रिश्ते की डॉक्टरी जांच करवा कर पहले पूरी तसल्ली करो । धीरे-धीरे लोगों को भी यह बात समझ में आने लगी की शादी के पहले कुंडली मिलाने से ज्यादा जरूरी मेडिकल रिपोर्ट का जानना है।
रोशनी ने यह संकल्प लिया कि अब " मैं ही काफी हूं "अपने जैसी और लड़कियों का जीवन बर्बाद होने से रोकने के लिए तथा उनकी जिंदगी में सिर्फ रोशनी ही रहे वैधव्य रूपी अंधकार ना आने पाए।तथा सबके जीवन में सिर्फ और सिर्फ खुशियों के ही फूल खिले जानबूझकर कोई भी दुख का भागीदार ना बन पाए फिर तो ईश्वर की मर्जी के आगे किसकी चलती है।
धीरे धीरे रोशनी के इस कार्य की प्रशंसा आस-पास के गांव में भी होने लगी और आज उसका एक छोटा सा खुद का समाज सेवा केंद्र चल रहा है जिसमें वह मजबूर औरतों की सहायता करती तथा लोगों में जागरूकता फैलाती।