संगीत वाला प्यार
संगीत वाला प्यार
"तू मेरी ज़िन्दगी है, तू मेरी बंदगी है..
आकाशवाणी रोहतक से ये गाना सुन रहे थे आप!!
गाने की फरमाइश करने वाले थे त्रिलोक रोहतक से!!
ये गाना वो अपनी किसी खास दोस्त को समर्पित करना चाहते है!!"
ये सुनते ही ऋचा के पैर जैसे जमीन से उठ आकाश में हिरण सी उछल कूद करने लग गए!!
रोज शाम 5 बजे ऋचा घर के सारे काम निपटा बस रेडियो पकड़ बैठ जाती थी!!
गाने की फरमाइश प्रोग्राम में त्रिलोक हर हफ्ते फोन करके उस तक अपने दिल की बात पहुंचाता था, कभी कभी उसकी किस्मत अच्छी होती थी कि रेडियो स्टेशन वाले हफ्ते में 2 बार उसका फोन उठा लेते थे!!
गांव के माहौल में प्रेम करना उतना ही मुश्किल है जैसे बिना खंबों के गांव तक बिजली पहुंचना!!
गांव भी हरियाणा के बीचों बीच रोहतक जिले में!!
जहां प्रेम का नाम लेना लड़कों के लिए भी मुश्किल था और लड़कियों के लिए वर्जित!!
त्रिलोक का घर ऋचा के घर के पास नहीं था।
त्रिलोक शहर में पला और ऋचा गाव में!!
त्रिलोक की बुआ की ससुराल के घर के पास ही ऋचा का घर था!!
त्रिलोक और ऋचा नजरों नजरों में ही एक दूसरे को दिल डे बैठे थे!
पर गांव के हर बड़े बूढ़े की आंखों में एक सीसीटीवी कैमरे होता है!!
इतनी निगरानी के बीच दो दिल मिलते भी तो कैसे!!
एक दिन ऋचा गाजर का हलवा देने के बहाने से त्रिलोक की बुआ जी के घर गई!!
संयोग से बुआ जी कपड़े धोने छत पर गई हुई थी तो त्रिलोक को आवाज़ दी -" बेटा!! डिब्बा किचन में रख देना और अंदर सिले हुए कपड़े तैयार रखे हैं वो थैला ऋचा को दे दो!!"
"ठीक है बुआ जी!!" - आज त्रिलोक पर तो जैस किस्मत ही मेहरबान हो गई थी!!
दोनों की नज़रे जो एक दूसरे को ढूंढा करती थी आज एक दूसरे को सामने देखकर , बस झुके ही जा रही थी!!
इतने में रेडियो पर गाना बजा " देखा है पहली बार, साजन की आंखों में प्यार!!"
त्रिलोक कुछ बोलता उससे पहले ही ऋचा ने कहा मुझे रेडियो पर संगीत सुनना बहुत पसंद है !!
शाम का फरमाइश प्रोग्राम रोज नियम से सुनती हूं!!
त्रिलोक ने कपड़े का थैला ऋचा को दिया और उसकी उंगलियों की छुअन ने त्रिलोक के रोम रोम को कंपा दिया!!
एक तो 18 साल की अबोध उम्र उसपर ये पहला प्यार!!
प्यार भी सामने और आसपास भी कोई नहीं!!
उसे तो ये किसी सपने से कम नहीं लग रहा था!!
अचानक बुआ ही कि आवाज़ आई -" थैला मिला या मुझे ही आना पड़ेगा नीचे!!"
ऋचा ने आवाज़ लगाई -" मिल गया चाची जी!! मां को भेज दूंगी पैसे देने!"
ठीक है मैं खुद ही आ जाऊंगी ; बुआ जी ने आवाज़ लगाई!!
जिस हाथ को त्रिलोक का हाथ छू गया उसे दुप्पटे के पल्लू में छुपाकर ऋचा झट से भाग गई।
पीछे मुड़कर बस कहा " रेडियो सुनना 5 बजे कल!!"
त्रिलोक तो अगली सुबह ही नहा धोकर रेडियो से सटकर बैठ गया!!
उधर ऋचा की नजरें भी बार बार घड़ी के कांटे पर और उंगलियां रेडियों स्टेशन का नंबर जाने कितनी बार मिला चुकी थी!!
प्रोग्राम शुरू हुआ , ऋचा ने फोन लगाया वहां से व्यस्त कि ध्वनि सुनाई दी!!
ऋचा जी सांस ही अटक गई!!
बार बार मिलाए जा रही थी!! गुस्से में फोन पटक दिया!!
मां ने कहा -" बावली हो गई है क्या!! पूरे पड़ोस में ये एक फोन है!! इसे भी तोड़ दे!!
ऋचा ने भगवान से मिन्नतें कि, प्रसाद भी बोल दिया कि एक बार फोन लग जाए रेडियो स्टेशन!!
उधर त्रिलोक भी इतना अधीर हो गया कि रेडियो को छत पर ले गया , छत से ऋचा के घर का आंगन दिखता था जहां रोज बैठकर वो रेडियो सुनती थी !!
आज ऋचा भी नजर नहीं आई।
ऋचा अंदर बैठक में फोन से मशक्कत कर रही थी अचानक फोन लग गया और ऋचा ने अपनी फरमाइश बताई।
रेडियो पर अगला गाना बजा " बहारों फूल बरसाओ मेरा मेहबूब आया है!!"
ये गाना आपने सुना ऋचा जी की फरमाइश पे!!
त्रिलोक को अब दिल की बात पहुंचने का जरिया मिल गया और अपने पहले प्रेम में हरी झंडी सा संदेश भी!!
गाना बजने के बाद ऋचा आंगन में आईं , छत पर पेहले से ही त्रिलोक खड़ा था!!
शर्माकर वापिस अंदर भाग गई!!
अब किसी मुलाक़ात के बहाने की जरूरत नहीं!! ना ही किसी के द्वारा प्रेम पत्र के पकड़े जाने का डर!!
अब रोज रेडियो पर फरमाइश के जरिए अपने दिल की बात पहुंचाई जाती!!
त्रिलोक छुट्टियां खत्म होने पर जैसे ही अपने घर गया तो ऋचा उदास हो गई!
आज रेडियो पर ऋचा ने कोई फरमाइश भी नहीं कि!!
तभी गाना बजा " चांद सी महबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था!! हां तुम बिल्कुल वैसी ही जैसा मैंने सोचा था!!"
ये गाना अपने सुना त्रिलोक जी की फरमाइश पर!!
ये सुनते ही ऋचा बावली सी हो गई, आंखों में आंसू लेकर रेडियो को चूमती रही।
ये संगीत वाला प्रेम यूं ही चलता रहा।

