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Rashmi Nair

Abstract

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Rashmi Nair

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संगीत की चाह

संगीत की चाह

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आज कालेजमें वार्षिक महोत्सवमें रागेशके गानेने धुम मचा दी। सबको उसका गाना इतना पसंद आया कि तालियाँ रुकनेका नाम ही नहीं ले रही। दर्शकोंकी तालियाँ और उनका उत्साह देखकर वो भी खुश हो गया कि उसे अपने परफार्मेंसपर और मेहनत पर भी विश्वास हो गया था कि वो भविष्यमें ऐसाही परॉफामेंस देगा ऐसा उसने अपने आपसे वादा किया।

उसे बचपनसे गानेसे बहुत लगाव था। पर बदकिस्मतीसे उसे संगीत सीखनेका अवसर नहीं मिला। स्कुलमें पढते समय उसने देखा कि, स्कुलके बच्चे हर सुबह स्कुल शुरु होनेके पहले प्रार्थना करते थे जिसमें रोज कुछ बच्चे प्रार्थना गाते थे। जब भी वो उनको देखता उसे भी उनके साथ मिलकर प्रार्थना गानेका मन होता था। पर क्या करें वो नहीं जानता था।

एक दिन उसने अपने टीचरसे बात की तो उसकी टीचर बहुत खुश हो गई। एक बार टीचर ने फ्री पिरियड में गाने के लिये कहा। उसने एक बहुत खूबसूरत गाना गाया। क्लास के बच्चों ने खूब तालियाँ बजाकर उसका उत्साहवर्धन किया। उसके टीचरको भी उसकी आवाज बहुत पसंद आई। उसने भी उसे संगीत सीखनेकी सलाह दी। तब उसने कहा " मुझे कौन सिखायेगा " टीचर समझ गई और बोली "तु इसकी चिंता मत कर बेटा। मैं अपने स्कूल के संगीतके गुरुजीसे बात करती हुँ। "कहकर उसे दिलासा दिया।

टीचरने भी अपना वादा निभाया। संगीतके गुरुजी स्कूल आनेपर रागेशको संगीतके गुरुजीसे मिलाने स्टाफ रुममें भेजा। वहां संगीतके गुरुजी हारमोनियमपर कोई धून बजाते पाये गये। उस धूनको पकडकर उस गानेके बोल गाते हुए स्टॉफ रुममें दाखिल हुआ। पर न जा जाने क्या हुआ उसकी ये बात गुरुजीको खल गई। " कौन है ये बदतमीज ? कहकर अपने साथीसे पूछा। जनमसे नेत्रहीन होनेके कारण वे देख नहीं पा रहे थे, इसलिये हमेशा काला चश्मा हमेशा लगाये रहते थे। अतꓽ उनके साथीके बतना पडा। तब उसके साथी ने कहा "सर ये रागेश है, जिसके वारेमें वीणा बहनजी अब आपको बोलकर गई थी। " तब गुरुजीने कहा " अच्छा, तुम हो, रागेश, आओ इधर सामने खडे होकर अब इस धूनपर गाओ, कहकर दूसरी धून बजाई वो बोल पकडकर गानेही वाला था कि अचानक धून बदल दी। उसके सुरके साथ बोल भी बदल गये। तब उसे बेसुरा है और कभी संगीत नहीं सीख सकेगा कहकर वापस कक्षामें भेज दिया। बेचारा रागेश जिस आशा से संगीत सीखने गया वो अधूरी रह गई। उपरसे सर का अचानक बिनाकारणके गुस्सा होना इन बातोने उसके अंदरके कला बुरी तरह ठेस पहुँचाई। इसके बाद वो किसी भी गुरुके पास संगीत सीखने जानेकी हिम्मत न कर सका। उसके मनमें हमेशाके लिए एक डर सा बैठ गया।

जब उसकी टीचरको ये बात पता चली तो उसे भी बहुत बुरा लगा,क्योंकि वो स्टाफ रुमसे बाहर थी पर वहीं खडी होकर सब सुन रही थी। वो रागेशकी प्रतिभासे प्रभावित हो गई थी। तब उसे पहली बार इस बात का अफसोस हुआ कि वो संगीत की टीचर नहीं थी। उसे ऐसा लगा कि काश ! वो रागेश को अपने विषयके साथ संगीत भी सीखा सकती। पर उसने रागेशको निराश नहीं होने दिया। उसने उसे हर तरहसे सहायता की। सबसे पहले उसने उसे एकलव्यकी कहानी सुनाकर उसका उत्साहवर्धन किया। उसने एक सरस्वती की फोटोके साथ छोटासा टेप रिकार्डर और कुछ प्राथमिक शास्त्रीय संगीतके कॅसेट उसे दिये। रागेश ये सब देखकर बहुत खुश हो गया। वीणा टीचरने उसे कहा -"बेटा,मैं चाहकरभी तुम्हें संगीत नहीं सीखा सकती हुँ। पर मैं, तुम्हें संगीतकी देवी, माता सरस्वती की प्रतिमा दे रही हुँ। तुम उनको ही अपना गुरु मानकर बहुत लगनसे और मेहनतसे संगीतका अभ्यास करना। मुझे आशा ही नहीं बल्कि पुरा विश्वास है कि तुम जरुर कामयाब हो जाओगे।मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है और रहेगा।

इसके बाद रागेशने बहुत लगन और मेहनतमें कोई कमी न रखते हुए पुरा अभ्यास किया। धीरे-धीरे उसने मंदरमें भजन गाने लगा,उसका भजन बहुत कर्णप्रिय और सुरीला हुआ करता था। सब इसे बहुत सराहते।

कॉलेजके बाद ट्रॉफी लेकर वो अपनी वीणा टीचर को दिखाने उसी स्कुलमें वापस आता है। वीणा टीचर उसकी ट्रॉफ देखकर बहुत खुश होती है। उसे वो सलाह देती है कि उनके स्कूल में एक संगीत शिक्षक की जगह खाली है और वो

आवेदन पत्र जल्दीसे दे दे। इसे सुन कर रागेश बहुत खुश होता है और तुरंत लिखकर देता है। जो बच्चे संगीतमें रुचि रखते हैं उनका सफल गायक बननेका सपना पुरा करने अपने बचपन सारी कडवाहट भूलाकर अपना सारा जीवन बच्चों के संगीत सीखाने में समर्पित कर दिया।


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