मंदिर का सच

मंदिर का सच

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संपुर्णा दफ्तर से लौट रही थी। रास्ते में साई बाबा का सुंदर बड़ा मंदीर था। ज़मीन से कुछ ऊँचाई पर ही मंदिर था। नीचे के परिसर में पूजा के सामग्री की दुकानें थी। सीढ़ियों पर लम्बी कतार देखकर वो चौक गई। बहुत देर तक उसे समझ ही नहीं आ रहा था इतनी लंबी कतार क्यूँ है ? फिर कुछ देर बाद याद आया कि ओह! आज तो गुरु पुर्णिमा है। जैसे ही याद आया वो कुछ कदम पीछे आई और पूजा का सामान लेकर अन्य लोगों की तरह लाइन में खड़ी हो गई। मन ही मन साई बाबा का ध्यान करने लगी। कुछ ही देर में उसके पीछे भी काफी लंबी लाइन हो गई। संपुर्णा के मन में बचपन से शिरडी के साई बाबा के लिये विशेष स्थान था। वो हर गुरुवार को उपवास भी करती आज भी गुरुवार था। साई बाबा के दर्शन करने की उसकी इच्छा भी थी। उसने भूख-प्यास की चिंता छोड़ दी और अपनी बारी का इंतजार करने लगी ।


 बहुत देर के इंतजार के बाद उसे मंदिर में प्रवेश मिला। उसने अंदर देखा बाहर से ज्यादा मंदिर में भीड़ बहुत थी। लोग पूजा-प्रसाद के बाद भी थोड़ी देर मन की शांती के लिए बैठते। पर वहाँ के स्वयंसेवकों को यह बात नहीं सुहाई। वो भक्तों को धक्के मार जल्दी-जल्दी भगा रहे थे। एक ओर पुरुषों की कतार थी दूसरी ओर औरतों की कतार थी। जिसकी देखरेख पुरुष और महिला व स्वयंसेवक कर रहे थे। पुरुष स्वयंसेवक पुरुषों को यह कहकर भगा रहे थे कि निचली मंज़िल पे आज साई भजन संध्या का आयोजन है सब वहाँ जाइए। स्वयंसेविकाएँ औरतों को यह कहकर नीचे हल्दी कुंकुम का समारोह आयोजित हो रहा है । सब औरतें वहाँ जाइए ।

संपुर्णा ने दर्शन किए,चढ़ावा चढ़ाया और नमस्कार कर रही थी कि एक स्वयंसेविका ने संपुर्णा का हाथ पकड़ कर खींचा और जल्दी बाहर लाकर कहा, "निचली मंज़िल पर जाइये वहां, हल्दी कुंकुम का आयोजन है वहीं पर प्रसाद भी मिलेगा। नाराज़गी से ,संपुर्णा ने हाथ छुड़ा लिया, पर न जाने क्यूँ और कैसे उसे इस बात का विश्वास हुआ कि, हो सकता है, शायद वो स्वयंसेविका सच कह रही हो। उसे साई बाबा पर इतना विश्वास था तो उनके स्वयंसेवकों पर विश्वास था कि वो झूठ नहीं बोलेंगे। यही सोचकर वो सीढ़ियों से उतरती हुई निचली मंज़िल पर आई।

यहां आकर देखा तो उसे आश्चर्य हुआ। न भजन संध्या थी और न ही कोई हलदी कुंकुंम बल्कि वो लोग थे जिन्हें उसी तरह झूठ बोलकर भेजा गया था। जैसे उसे भेजा गया था। उसके अलावा अगर कुछ था तो एक दीवार पर शिरडी के साई बाबा की कुछ पुरानी तस्वीरें लगी थी। जिनके सामने दिये जल रहे थे।अगरबत्ती का धुआँ एक तरफ से उठ रहा था। सब लोग यहां वहां घूम रहे थे। कुछ लोग भजन संध्या ढूंढ रहे थे और कुछ हल्दी कुंकुम । मंदिर का झूठ देखकर संपुर्णा का विश्वास टूट कर बिखर गया ।

 



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