Rashmi Nair

Drama

0.6  

Rashmi Nair

Drama

समय बदलता है

समय बदलता है

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सुमित्रा जब घड़े में पानी लेकर घर आई तो उसने देखा जो दाल की हांडी उसने चुल्हे पर दाल पकाने रख गई थी वो आगंन में पड़ी दिखाई दी। उसे इस तरह खानेपर गुस्सा निकालना अच्छा न लगा। वो जान गई कि ये काम उसके बाबाका ही था। क्योंकि वो अपने दामाद को पसंद नहीं करता था। जब कि सुमित्रा और देवेशने छुपकर ही सही पर मंदीरमें शादी थी। माना कि सुमित्रा अगर पिताको बता भी देती कि वो अपनी मर्जीसे देवेशसे शादी करना चाहती थी पर क्या वो उसकी इजाजत देता। वो जानती थी ,नहीं हरगिज नहीं देता। जब कि उसका बाबा अच्छी तरह जानता था कि देवेशके अलावा और किसीसे भी शादीके लिए वो नहीं मानेगी। वो बाबाके विरोधके बावजुद देवेशके साथ पत्नी होनेका धर्म अच्छी तरह निभा रही थी। वो अपने घरसे हर रोज सुबह चाय,नाश्ता ,दोपहर और रातका खाना बनाकर उसकेलिए ले जाती थी। सबसे पहले अपने बाबाको खिलाती और वो देवेशके साथ उसके घरमें खाना खा लेती।

उसका बाप कुछ कमाता तो नहीं था। पर बेटीसे शराबके पैसे जरुर ऐठता। जब देखो तब शराबके नशेमें पडा रहता और बेटी और दामादको गंदी गंदी गालियां देता रहता। देवेशकी सीर्फ एक कमजोरी थी कि पढा-लिखा होनेके बावजूदभी उसे कहीं अच्छी नोकरी नहीं मिल पाथी। ले-देकर उसकेपास सीर्फ एक पुराना पुश्तैना घर था। पर सुमित्रा खाली नहीं बैठी थी। वो दिनभर लोगोंके कपडे सीकर उसकी आमदनीसे तीनोंका पेट पाल रही थी। इस बातसे देवेशभीशर्मिंदा था पर नोकरी न होनेकी वजहसे वो भी मजबूर था।

एक दिन जमींदारके घरसे उसे मालकीनने बुलावा भेजा। उसके पहुँचनेपर मालकीनने उसे उसके बच्चेके जनमदिन पर पहननेकेलिए कुछ कपडे सिलाने दिये। सुमित्राने सोचा क्युँ न मालकीनसे देवेशकी नोकरीके लिए बात छेडी जाय। उनका कारोबार शहरतक फैला था। उनकी कुछ दुकानेभी थी। अगर कहीं भी काम मिल जाए तो उनकी जिंदगी बन जाये। उसने मालकीनसे बात छेडी। मालकीनको भी एक इमानदार नोकरकी जरुरत थी। वो मान गई। " अपने पतिसे बात करके देवेशको बुलावा भेजेगी। " कहकर उसे विदा किया।

घर लौटते समय उसे रास्तेमें चक्कर आ गया और वो गिर गई। कुछ औरतोंने उसे देखा। उसे रास्तेसे हटाकर वैदजीके घर ले गये। वहाँ उसे होशमें लाया गया। पता चला कि वो माँ बननेवाली है। सुनकर सुमित्रा खुश हो गई . घर आनेपर अपने बाबाको बतानेसे डरने लगी। क्योंकि वो तो उनकी शादीको पाप मान बैठा था। उसके बच्चेको भी वो पापही समझ न बैठे इसी डर से वो चुप हो गई। 

जब शाम को देवेशसे मिली तो उसने खुश खबरी उसे सुना दी। दोनों बहुत खुश थे। कुछ देरबाद वो घर लौटी और अपने कामोंमें व्यस्त हो गई। देवेश अब ज्यादा परेशान हो गया। वो जल्दीसे जल्दी उसे इज्जतसे अपने घर लाना चाहता था पर न1करी और हातमें पैसा न होनेके कारण परेशान हो गया । 

देवेश और सुमित्रा एकही गाँवके थे। जमींदारकी बीबी उसे अच्छीतरह जानती थी। इसलिये उसे नोकरी देनेकेलिये अपने पतिसे उसने सिफारिश की। जमींदारको भी वो भला लगा। तब उसने अपने नोकरसे उसे बुलावा भेजा। जमींदारके नोकरको अपने घरके सामने देखकर वो चौंक गया। नौकर ने सिर्फ इतना कहा कि " मालिक ने बुलाया है, साथ चलो। सुनकर पहले देवेश घबरा गया पर जमींदार के बुलावे को वो नजरअंदाज नहीं कर सकता था। दरवाजा बंद करके वो नोकरके साथ चल पडा।

वहाँ पहुँचने पर जमींदार ने उसकी पढाई–लिखाई के बारे में पूछा तो उसका डर थोड़ा कम हुआ। जो जो सवाल पुछे सारेके जवाब उसने सही दिये। जमींदारने खुश होकर उसे पुछा " हमारी दुकानमें काम करना चाहोगे ?" उसने सर झुका कर कहा,"जरुर मालिक अगर मिल जाये।" उसका जवाब सुनकर जमींदारने कहा "कलसे नुक्कडवाली दुकानमें आ जाना। " " जी मालिक, मेहरबानी आपकी। " कहकर वो वापस घर आया।

सुमित्राको पता चला तो, वो बहुत खुश हो गई। अपने होनेवाले बच्चेके भाग्य की सराहना करते हुए देवेश से बोली। "खूब जी-जान लगाकर काम करना, देखो, मालिक को कभी शिकायत का मौका मत देना। " हां ,सुमित्रा, बड़ी मुश्किल से आज अपने आने वाले बच्चे की किस्मतसे ये मौका मिला है। मैं बहुत ध्यान से रहुँगा। जल्दी ही मैं तुम्हें अपने घर सबके सामने ब्याहकर लाऊँगा। तुम्हें अब किसी बात की कोई चिंता करने की जरुरत नहीं। अब सब मैं देख लुँगा,तुम बस अपना और अपने होनेवाले बच्चेका खयाल रखना  " कहकर उसने उसे विदा किया।

तीन महिनेके बाद,वो अपने ससुराल आया। ससुरसे समित्राका हाथ मांगा। दोनों तरफसे खर्चा खुद करने की शर्तपर उसका ससुर मान गया। सारे गाँव के सामने बड़े धुमधाम से सुमित्रा को ब्याह कर हमेशा के लिए अपने घर ले गया। 


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