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Rashmi Nair

Abstract

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Rashmi Nair

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शराफत का नाटक

शराफत का नाटक

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नंदिता अपनी भाभीकी मदत करने कीचनमें गई तब तक रात का खाना बन चुका था। विधीने कहा- "सबकुछ हो गया है बस् टेबलपर लगाना है। वो भी अभी हो जायेगा।" ऐसेमें डोरबेल बजी। नंदिताने कहा, "आप रुको भाभी, मैं देखती हुँ।"कहकर वो दरवाजा खोलने गई। सामने भैयाको देखा तो खुश होकर मुस्कुराई। धरमभी अचानक उसे देखकर चौंक गया। " चल अंदर चल "कहकर वो अंदर आया एक अजीबसी गंध उसके नाक से टकराई। पर वो कुछ नहीं बोली। नंदिताभी दरवाजा बंद करके अंदर आ गई।  

भाभी कीचनमें व्यस्त होनेके कारण उसने पानी लाकर भैयाको दिया। गिलास लेते हुए वो बैठ गया और पानी पीनेके बाद वो फ्रेश होने चला गया। वापस आनेतक टेबलपर खाना लग चुका था। विधीने सबको बुलाया, सब आ गये। बच्चे जो अब तक बुआ के लाये हुए खिलौनोंसे खेल रहे थे ,पापाको दिखाने वो ले आये। जिसे देखकर धरम भी खुश हो गया। नंदितासे उसने पुछा "तु कब आई ?" उसने कहा "बस् कुछ ही देर हुई।" "चल तूभी खाना खाने साथ बैठ जा।" " नहीं भैया, हम दोनों बादमें आरामसे खायेगे ,

अब ननद और भाभी खाना खाने बैठ गये। दोनोमें बातें भी होती रही। नंदिताने भाभीको छेडते हुए कहा, "क्या बात है भाभी, आज भैया बडे मूडमें नजर आ रहे थे।" "अरे कुछ नहीं, ये तो आज तुम आई हो इसलिये इन्होने आज शराफतका मुखौटा पहना है। वरना कहां ऐसे मेरे नसीब ,कि ये आदमी अच्छी तरह पेशभी आये।"

क्युँ भाभी ? क्या भैया तंग करते हैं?नंदिताने पूछा। विधी क्या कहती,खामोश थी।जितना कहा उसपर पछताने लगी क्योंकि अगर विधीने जुबान खोली तो कयामत तो उसीपर आनी है कि उसने घरकी बातको नंदितासे क्युँ कही। इसी बातको लेकर धरम हंगामा खडा करता। फिर वही उसका शराब पीकर आना, गाली गलौच करना, उसके साथ मारपीट करना और बच्चे बीचमें आये तो उनको भी करारी मार खानी पड़ती। इसलिये वो जहांतक हो सके ऐसे हालात पैदा होनेही नहीं देती। नंदिता सब समझ गई उसने ज्यादा कुछ नहीं कहा। पर उसे अफसोस हुआ कि वो अपनी भाभीकी तकलीफ दूर नहीं कर सकती। .

उसे तो यही सोचकर हैरानी हुई कि आदमी शराबके नशेमें मारपीट,गाली-गलौच और हाथापाई करता है उसके भाईके शरीफ होनेके नाटक को देखकर हैरान रह गई।धरम आज पीकर आया था पर उसे देखकर बिल्कुलभी ऐसा नहीं लग रहा था। उसका मूडभी बहुत अच्छा था। उसे अपनी बहनको देखकर एक से एक बचपनके किस्से याद आने लगे। जिन्हें वो एक के बाद एक सुना रहा था। अपनी बहनका रोबीलापन , उसकी शरारतें आदि सबका हूबहू वर्णन करने लगा। उस समयकी बातें सुनकर नंदिताको अच्छा भी लगा जैसे वो वापस अपने बचपनमें चली गई हो। साथमें कुछ मजेदार किस्से भी जिसने नंदिता को खूब हसाया। 

हले आप और बच्चे खाना खाले हम, यही बैठकर बातें करते हैं 

इन सब बातोंके बीच बच्चेभी मजे ले रहे थे। उनका खाना भी हो गया पर धरमकी बातें होती रही। वो बादमें बोर होकर चले गये। कुछ देर बाद उसका खाना भी हो गया और अपनी वीवीसे कहा "नंदिता का खयाल रखना ,"और लडखडाकर उठकर हाथ धोकर अपने कमरेमें आकर बिस्तरपर ढेर हो गया। 

अब ननद और भाभी खाना खाने बैठ गये। दोनों में बातें भी होती रही। नंदिताने भाभीको छेडते हुए कहा, "क्या बात है भाभी, आज भैया बडे मूडमें नजर आ रहे थे।" "अरे कुछ नहीं, ये तो आज तुम आई हो इसलिये इन्होने आज शराफतका मुखौटा पहना है। वरना कहां ऐसे मेरे नसीब कि ये आदमी अच्छी तरह पेशभी आये।" क्युँ भाभी ?क्या भैया तंग करते हैं?नंदिताने पूछा। विधी क्या कहती,खामोश थी।जितना कहा उसपर पछताने लगी क्योंकि अगर विधीने जुबान खोली तो कयामत तो उसीपर आनी है कि उसने घरकी बातको नंदितासे क्युँ कही। इसी बातको लेकर धरम हंगामा खड़ा करता। फिर वही उसका शराब पीकर आना, गाली गलौच करना, उसके साथ मारपीट करना और बच्चे बीचमें आये तो उनको भी करारी मार खानी पडती । इसलिये वो जहां तक हो सके ऐसे हालात पैदा होनेही नहीं देती। नंदिता सब समझ गई उसने ज्यादा कुछ नहीं कहा। पर उसे अफसोस हुआ कि वो अपनी भाभीकी तकलीफ दूर नहीं कर सकती।

 उसे तो यही सोचकर हैरानी हुई कि आदमी शराब के नशे में मारपीट,गाली-गलौच और हाथापाई करता है उसके भाईके शरीफ होनेके नाटक को देखकर हैरान रह गई।


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