भगौड़ी बहू

भगौड़ी बहू

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निर्मला की सास गजराबाई भी बडी अजीब औरत थी । सुबह से लेकर शाम तक सिर्फ राम राम ही करती रहती । उसके दिन की शुरुआत ही शिकायत से होती । उठते ही बोलती "राम राम , पांच बज गये न जाने बहू जाग गई या नहीं । यहां सब मुझे ही सब करना पड़ता है ।" बोलते–बोलते गुसल खाने में नहाने जाती । वहाँ गरम पानी,तौलिया,उसके कपड़े सब कुछ तैयार मिलते । बाहर फिर बडबडाती आती " हे राम, पता नहीं चाय भी बनी है या नहीं वरना जाकर मुझे ही बनानी पडेगी ।" पर कमरे में पहुँचते ही गरम-गरम चाय उसके बेड के सामने वाली मेज पर हाजिर रहती । इसके बाद उसे चिंता होती पूजा करने की ,कहती " पूजा करनी थी देर हो रही है, बहू ने पूजा की सामग्री तैयार रखी है । वहाँ पूजा के घर में सबकुछ तैयार ही मिलता । पर उसे बड़बडा़ते रहने की बहुत बुरी आदत थी । वो बड़बडा़ने से बाज नहीं आती ।


निर्मला घर का सारा काम निबटाकर हर रोज लंबा सफर तय करके ट्रेन में धक्के खाकर अपने काम पर चली जाती । उसके पहले सुबह का नाश्ता और दोपहर का खाना भी तैयार रखकर जाती । गजरा बाई दिन भर पडौसियों के साथ गप्पे लगातीं , बहू की बुराई करती या फिर रामनाम की माला लेकर बैठ जाती । यहाँ वहाँ के मंदीर जाकर भजन-कीर्तन में लगी रहती । घर में या घर के कामों में जरा भी ध्यान नहीं । जब इतनी ज्यादा उमर भी नहीं हुई थी । उसे लगता बहू है तो मैं क्युँ काम करुँ " शाम हो जाती और बहू के घर आने के समय कुछ न कुछ दर्द का बहाना बना कर पलंग पर पड़ी रहती । शुरु,शुरु में निर्मला को सच लगता था पर कुछ ही दिनों में उसकी पोल खुल गई । पर पति देव इस बात को कैसे माने ,उनको तो अपनी माँ साक्षात देवी लगती । उसे अपनी माँ ही प्यारी है न , फिर बीवी का सच भी उसे कड़वा लगता । 


रोज शाम को थकी हारी घर आते समय जरुरत की चीजों को बोझ ढो़ते आती और बिना एक पल गँवाये फिर शुरु हो जाती रात के काम की जंग,इसकी शुरुआत चाय से लेकर होती और पूरा खाना तैयार कर के सास और पति को खिलाने के बाद ,कपड़े बर्तन चुल्हे चौके आदि की सफाई के बाद कहीं वो खाना खा पाती । रोज उसके पति के लिये इस्त्री के कपडे़ तक तैयार रखने पडते । सब होते होते आराम से ग्यारह –साढे ग्यारह बज ही जाते । तब कहीं वो सो पाती । 


    यही हर रोज का कार्यक्रम रहता । इतवार और छुट्टी के दिन सिर्फ दफ्तर और सफर से छुटटी मिलती न घर के कामों से फुरसत मिलती न आराम । उपर से सास की तानाशाही भी चलती रहती । घर का वातावरण हमेशा बिगडा़ सा रहता ,पति इन सबसे बचने के लिये दोस्तों के साथ हर इतवार को कहीं न कहीं चला जाता और निर्मला यहाँ अशांत वातावरण में घुटकर रह जाती । पति को उसकी कोई चिंता ही नहीं। रोज सब काम अपने आप हो रहे थे । सबकुछ तैयार हाथ में मिल रहा था । उसे और क्या चाहिये ? जब तक उसके सारे काम आराम से हो रहे थे वो बहुत खुश था । 

एक इतवारको उसका पति हमेशा की तरह बाहर चला गया । रातको बहुत देर से सोने के कारण निर्मला की नींद देर से खुली । इतवार भी था तो उसने थोडा़ सुस्ताना चाहा । पर गजराबाई को चैन कहां ? न रुकनेवाली घंटी की तरह सुबह होते ही शुरु हो गई । लड़ना झगड़ना शुरु किया । बरदाश्त की हद गुजर जाने पर निर्मला ने भी अपना आपा खो दिया । गुस्से में उसकी जुबान भी चल गई । सास का पारा और चढ गया । उसने जाकर उसे धक्का दिया और दीवार से टकराकर गिर पडी़। शोर-शराबा सुनकर पड़ोस की कुसुम दीदी आई । देखा तो वो बेहोश हो गई थी । उसे उसने पानी मार के होश में लाया और उसकी सास को खरी –खोटी सुनाकर , निर्मला को डॉक्टर के पास ले गई, होश में आने पर उसे ससुराल जाने से डर सा लग रहा था । पर उसका सारा सामान वहीं पर था । तो वापस जाना पड़ा।


उसने घर लौटने पर देखा, सास अपने कमरे में गहरी नींद सो रही थी । पति अबत क घर लौटा नहीं था । उसने अपना सारा सामान पैक किया और सास और पति की गिरफ्त से भाग निकली । शाम को जब उसका पति घर लौटा तो उसकी देवी समान माँ ने बेटे से कहा " तेरी बीवी भगौडी़ निकली , वो भाग गई ।" सुनकर उसने कहा "अच्छा हुआ, मैं उसे घर से आज निकालने ही वाला था, तू फिकर न कर माँ, मैं तेरे लिए उससे भी बढिया बहू लाऊँगा!


 





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