संदेश
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घूमते घूमते नासिर कबाइलियों के कस्बे में जा पहुँचा।
आज का ही दिन बचा था उसके पास अपनी ज़िन्दगी को भरपूर जी लेने का। कल उसे अपने मिशन पर जाना था।
अपनी मर्ज़ी से वह आतंकवादी नहीं बना था। गलती से दुश्मन देश की सीमा पार कर गया और पकड़ा गया। अब उसे अपने ही देश में आत्मघाती दस्ते के साथ जा कर बम धमाके करने का हुक्म मिला था।
न तो वह इस हुक्म को मान सकता था और न ही वहाँ से भाग सकता था। रिमोट से उसकी हर हरकत पर नज़र रखी जा रही थी। फ़िर भी उसने मरने से पहले कुछ कर गुज़रने की सोची।
कस्बे में गोदना गोदने वाले को कागज़ में अपने देश की भाषा में दुश्मन की योजना का स्थान, वक्त और तारीख़ लिख कर एक चित्र बना दिया और उसे अपने हाथ पर गुदवा लिया।
अगले दिन आत्मघाती दस्ते के साथ गुपचुप सीमा पार करते समय, एक गाँव में पानी पीने के बहाने नासिर नल के पास गया। जहाँ कुछ लोग पानी भर रहे थे। उसने इशारे कर के अपना गोदना दिखा कर उन्हें संदेश दिया।
बस फ़िर तो आनन फ़ानन में पूरे आत्मघाती दस्ते को गिरफ़्तार कर लिया गया।
नासिर को सेना में भर्ती करके सर्वश्रेष्ठ सैनिक की उपाधि दी गई। इनाम की भी घोषणा की गई।
उसने पुरस्कार की धनराशि न लेते हुए केवल इतना कहा, "मैंने सिर्फ़ अपनी मातृभूमि के प्रति अपना कर्तव्य निभाया है।"