Sheel Nigam

Tragedy

3.3  

Sheel Nigam

Tragedy

अंतिम विदाई

अंतिम विदाई

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430


राजू बी. ए. पास होते हुए भी टैक्सी चलाने का काम करता था.एक दिन राजू किसी सवारी को सेन्ट्रल जेल तक छोड़ कर वापसी कर रहा था, एक वृद्ध महिला उसके पास आई और एक पता लिखी चिट थमा कर उसे उसपते पर ले चलने के लिए कहने लगी.राजू ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा.फटी धोतीमें लिपटी थी वो,बगल में एक पोटली भी दबा रखी थी.राजू ने उसे प्रश्नसूचकनज़रों से देखा, मानो वह उसके दिल की बात समझ गयी, झट से बोली, "किराये कीचिंता न करो बेटा. मेरे पास पैसे हैं." अपनी मुट्ठी में से मुडे़-तुड़े नोट दिखाती हुई बोली.

राजू ने उसे टैक्सी में बैठने का इशारा किया.वह जल्दी से आकर पीछे की सीट पर बैठ गयी,जैसे उसे पहुँचने की बहुत जल्दी थी. राजू चिट में लिखे पते से वाकिफ़ था. कमला नगर कालोनी के मकान नंबर २१ के सामने ही टैक्सी रोकी. मकान के बाहर एक कबाड़ वाला अपने ठेले पर पुराना सामान लाद रहा था. एक खूबसूरत औरत घर के अंदर से सामान ला-ला कर उसके सामने पटक रही थी.जैसे ही वो सामान भर कर वहाँ से जाने को हुआ उस औरत ने भड़ाक से दरवाज़ा बंद कर दिया.

तभी ठेले पर से एक ब्रीफ़-केस नीचे गिर कर खुल गया.ठेले वाला बिना कुछ जाने, आगे बढ़ गया.टैक्सी में बैठी वृद्धा अब तक हैरान-परेशान सी यह नज़ारा देख रही थी. जैसे ही ब्रीफ़- केस गिरा वह दौड़ कर गयी, उसपुराने ब्रीफ़-केस से शायद पुरानी पहचान थी उसकी.बिखरे हुए कागज़ों को ब्रीफ़-केस में डाला और वापस टैक्सी में आ कर बैठ कर सारा सामान देखने लगी. 

बुढ़िया को कागज़ों में उलझा देख कर राजू से रहा नहीं गया वो बोल उठा,"उतरना नहीं है क्या माता जी?आपका घर आ गया है."कागज़ो में से एक प्रमाण-पत्र दिखाते हुए वह बोली, "किसका घर बेटा?" उनकीमौत हो चुकी है ."किसकी?"राजू पूछ बैठा."मेरे पति की. अब वो इस दुनिया में नहीं रहे." कहते कहते वह अपने फटे आँचल से आँसू पोंछने लगी.राजू ने अपनी पानी की बोतल उसे देते हुए पूछा, "अब कहाँ जाना है अम्मा जी ?" "'अपने बेटे के घर. बहू का हाल तो तुमने देख ही लिया कितनी बेरहमी से मेरेपति का सामान फेंका है.अब मैं यहाँ कैसे रह पाऊँगी?"बोतल से दो घूँट अपने गले के नीचे उतारते हुए वह बोली."तीन बेटियाँ हैं मेरी .चलो उनमें से किसी के घर? इस डायरी में पते है उनके."ब्रीफ़-केस में से एक डायरी में लिखे पते दिखाते हुए वह बोली.

राजू ने डायरी में लिखे पते देखे.पहला पता वहीँ आस-पास का था. जैसे ही वो वहाँ पहुँचा,मकान नंबर दस से एक युवती को बाहर निकलते देखा. राजू ने पता दिखा कर जानने की कोशिश की, कि वो सही जगह पर आया था कि नहीं,पर उस युवती ने पता देखते ही बता दिया कि उस मकान में रहने वाले सभी लोग छुट्टियाँ मनाने गोवा गए थे वो तो उनकी नौकरानी थी जो घर की देखभाल करती थी.

 राजू टैक्सी लेकर दूसरे पते पर पहुँचा.यह एक ऊँची बिल्डिंग थी वो हाथ में डायरी लेकर अकेला ही अन्दर चला गया.फ्लैट नंबर २०१, पहले माले पर हीघर था. दरवाज़े की घंटी बजाने पर एक नौजवान व्यक्ति ने दरवाज़ा खोला.

राजू ने उसे बताया , नीचे उसकी टैक्सी में एक वृद्घ महिला बैठी है जो उससे मिलना चाहती है.

 वह नौजवान शायद नींद से उठा था आँखें मलते हुए राजू का साथ हो लिया.जैसे ही उसने टैक्सी में उस महिला को देखा उसका पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया.वो गुस्से में थरथराते हुए बोला, "तुम शान्ति?मीना की माँ?तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमसे मिलने की?"फिर राजू की ओर मुड़ कर बोला, "ले जाओ इसे वहीं, जहाँ से लाये हो.मैं नहीं चाहता कि इस ख़ूनी औरत का साया भी मेरे घर और मेरे बच्चों पर पड़े."

राजू हक्का- बक्का रह गया.उसने शांति की ओर देखा वो सिसक-सिसक कर रो रही थी.उसे समझ में नहीं आया कि वो क्या करे .उसने इधर उधर देखा .सामने एक चाय की दुकान थी.

 वह जल्दी से गया ओर दो गिलास चाय ले आया.एक गिलास शांति को देते हुए बोला,"शांत हो जाइये अम्मा जी, चाय पी लीजिये. जी हल्का हो जायेगा." दूसरा गिलास खुद ले कर राजू टैक्सी की ड्राइविंग सीट पर बैठ गया.आखिर उससे रहा नहीं गया और पूछ ही बैठा, "वह नौजवान शायद आपका दामाद था.उसनेआप को ख़ूनी क्यों कहा?आपको देख कर ऐसा नहीं लगता कि आपने कोई खून किया होगा."

"हाँ बेटा, श्रीकांत मेरा दामाद है वो सच ही कह रहा था. मैंने खून किया था. आज ही चौदह साल की सजा काट कर जेल से आ रही हूँ."राजू को विश्वास नहीं हुआ पर उसे विश्वास करना पड़ा.शांति ने खुद ही अपनी कहानी उसे सुना दी.

शांति ने बताया कि आज से करीब चालीस साल पहले उसका विवाह हुआ था. पति सिंचाई विभाग में इंजीनीयर थे.ज़िदगी बहुत सुखमय थी.शादी के बाद जल्दी-जल्दी चार बच्चे भी हो गए .एक बार उसके पति का तबादला उनके अपने शहर में हो गया जहाँ उनकी पैतृक हवेली थी.उन्होंने सोचा कि सरकारी मकान में रहने की बजाय अपनी हवेली में ही रहा जाए.

पूरा परिवार सारा सामान लेकर सीधा हवेली पहुँच गया. वहाँ पहुँच कर देखा तो रिश्तेदारों ने पूरी हवेली अपने कब्जे में कर रखी थी.बड़ी मुश्किल से रहने के लिए दो कमरे मिले.

पति चाहते थे कि रिश्तेदार हवेली खाली कर दें पर वह संभव नहीं हुआ.उल्टे वे लोग यह चाहते थे कि हमारा परिवार ही हवेली छोड़ कर वहाँ से चला जाये. इस विषय में उन लोगों ने काफी धमकियाँ भी दीं.जब उन्हें लगा कि हम लोग हवेली नहीं छोड़ने वाले तो एक दिन उन्होंने कुछ गुंडे भेजे. 

उस समय घर में शांति अकेली थी अपनी सबसे छोटी बच्ची के साथ.बाकी बच्चे स्कूल और पति दफ़्तर में थे.

बच्ची सो रही थी,गुंडों ने आते ही घर का सामान उठा-उठा कर फेंकना शुरू किया.शांति ने बहुत कोशिश की उन्हें रोकने की.पर गुंडे उसी के साथ अश्लीलता करने को उतारू होने लगे.

वहाँ उसकी अस्मत बचiने वाला कोई नहीं था.जब उसे कुछ न सूझा तो उसने पास पड़े सिल के बट्टे को एक गुंडे के सिर पर दे मारा.वह गुंडा वहीँ पर ढेर हो गया.बाकी सब लोग भाग खड़े हुए.फिर तो पुलिस,कत्ल का मुक़दमा और जेल. कोई भी उसके पक्ष में गवाही देने नहीं आया.उसके पति ने काफी कोशिश की उसे बचाने की ,पर वे कुछ न कर सके.उन्हें सदा इस बात का मलाल रहा कि, वो क्यों अपने परिवार को उस पैतृक हवेली में लाये?

उन्होंने वहाँ से अपना तबादला करवा लिया.अकेले ही दूर की किसी मौसी की सहायता से बच्चों का पालन पोषण किया. मौसी भी अब इस दुनिया में नहीं है.पिछले वर्ष तक उसके पति जेल में मिलनेआते रहते थे ,पर बच्चों को उसने वहाँ कभी न आने दिया.एक साल से वो बहुत बीमार चल रहे थे इसलिए उनका मिलना नहीं हुआ. उसे खबर न थी कि उनका देहांत हो चुका है.अगर यह प्रमाण-पत्र न मिलता तो वह न जान पाती,कि अब वो इस दुनिया में नहीं रहे.कहते कहते वह ज़ोर से खाँसी. 

खाँस-खाँस कर उसका दम घुटने लगा.राजू जो अब तक यह सब सुनता जा रहा था और टैक्सी चलाये जा रहा था, अचानक रुक गया उसने पीछे मुड़ कर देखा.शांति रुक- रुक कर कह रही थी, "बेटा मुझे अस्पताल ले चल, मेरी तबियत ख़राब हो रही है." संयोग से पास ही सरकारी अस्पताल था.राजू ने टैक्सी वहीं मोड़ ली.अस्पताल में स्ट्रेचर पर डालने से पहले ही शांति दम तोड़ चुकी थी.उसे दिल का दौरा पड़ा था.राजू ने ही अस्पताल की सारी औपचारिकताएँ निभाईं.

श्मशान घाट पर शांति की तीनों बेटियाँ मौजूद थीं पर उसकी चिता को आग देने वाला कोई नहीं था.बेटा वतन से दूर था और दामाद उससे घृणा करता था तो कैसे आता?तभी राजू शांति की पोटली लेकर वहाँ आ पहुँचा.उसने पोटली बेटियों को थमा दी.पंडित जी ने बेटे को शांति के शव को मुखाग्नि देने के लिए पुकारा.राजू सीधे पंडित जी के पास पहुँचा और शांति की अंतिम क्रिया की सारी रस्में निभाईं.


लौटते समय राजू की आँखों में आँसू थे मानो वह अपनी माँ का अंतिम संस्कार करके आ रहा हो.




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