वसीयत प्रॉम्प्ट नं 31
वसीयत प्रॉम्प्ट नं 31
रेल की पटरियों सा समांतर चलने जैसा संबंध रहा लिजा और पीटर का। पैतृक सम्पत्ति किसी और को न मिले, इसलिए चचेरे भाई-बहन को घर के बड़ों ने वसीयत के कागजों में पति-पत्नी दिखाया गया था।जिसे मन से दोनों ने कभी स्वीकार नहीं किया।फिर भी नदी के दो किनारों की तरह बह कर दोनों ने ज़िन्दगी गुज़ार दी। जिस पर सेतु का काम किया नन्हें प्रिंस ने।जो लिजा और पीटर ने सैरोगैसी प्रक्रिया से पैदा किया।
जीवन के अंतिम क्षणों में कैंसर से जूझते हुए लिज़ा ने यही वसीयत की थी कि सारी जायदाद का मालिक नन्हा प्रिंस और उसकी माँ बने।प्रिंस की मां न जाने कहाँ गुम हो गई थी। पीटर नन्हें प्रिंस को लेकर नगर-नगर, द्वार-द्वार घूमा, पर वह कहीं नहीं मिली।
अंत में सारी जायदाद का मालिक प्रिंस ही बना।न जाने क्या मानसिकता थी बड़े-बूढ़ों की, इस वसीयत को बनाने की, कि दो जीवन समांतर पटरियों पर ही गुज़र गए।