प्रोम्प्ट 24
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नंदन अभी तक नीली आंखों के जाल में उलझा हुआ था। उसे विश्वास नहीं हुआ कि सराह उसे सदा के लिए छोड़ कर अपने देश चली गई थी। हालांकि उसके कान अभी तक झनझना रहे थे, "तुम क्या समझे कि मैं यहां अपनी जिंदगी गुजा़रने आई थी।"
'तो क्या वह केवल 'भारत-दर्शन' के लिए आई थी, उससे प्यार का नाटक करती रही।बलि का बकरा बना वह जो घरवालों की मर्जी़ के खिलाफ़ जाकर उससे शादी कर ली।'
नंदन सोच ही रहा था कि सराह का वाट्स एप पर संदेश आया।'बहुत मज़ा आया नंदन, तुम्हारे देश में घूमने के साथ शादी-शादी खेल खेलने का। तुम्हारी अमानत साथ ले जा रही हूं, अगर नहीं चाहते अनाथों के साथ पले तो मुझसे आ कर ले जाना।'
नंदन मानो आसमान से खाई में जा गिरा। 'सराह के लिये यह शादी केवल एक खेल थी?' सोशल मीडिया पर हुई दोस्ती का दंश उसकी नसों को ज़हरीला कर गया।चार महीने पहले जब सोशल मीडिया पर सराह का दोस्ती का संदेश मिला था तो नंदन को की रग-रग में रक्त तेजी से ठांठे मारने लगा था। सराह किसी विदेशी कंपनी में रिसेप्शनिस्ट थी। उसने फ़ौरन दोस्ती स्वीकार कर ली और मन ही मन में सराह को नीलाक्षी नाम दे दिया था।
अगले ही हफ्ते सराह ने भारत आने का कार्यक्रम बना लिया। नंदन ने अपने आफिस से अवकाश ले लिया। दोनों एक महीने तक देश भर में घूमते रहे।
न जाने कब दोनों प्यार में पड़ गये और नंदन ने सराह की नीली आंखों में झांक कर शादी के लिए प्रपोज किया और आज उसका परिणाम सामने आ गया।
'नहीं, अपने बच्चे को अनाथों के साथ नहीं पलने दूंगा।' सोच कर नंदन ने सराह को संदेश भेजा, 'आऊंगा, जरूर आऊंगा। मेरी अमानत में ख़यानत न करना। लौटा देना।