पुनीत श्रीवास्तव

Abstract

3.0  

पुनीत श्रीवास्तव

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सन्डे स्पेशल !

सन्डे स्पेशल !

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बी०एच०यू० एम कॉम के दौरान अपने हॉस्टल में मेस की व्यवस्था थी बड़ी मेज बेंच ,सब खाते एक साथ बड़की मेज पर ।

वैसे तो हॉस्टलों का खाना सब जानते हैं कितनी भी कोशिश कर ले मेस महाराज हम लोगों के बीच का ही मैनेजर भी डांट डपट के ,पर सबके जतन के बाद भी काम चल ही जाता था और अब घर जैसा खाना भी हॉस्टल में मिलना मुश्किल है पर एक संडे का दिन होता जिसको सारे हॉस्टल के लड़के इंतजार करते क्योंकि उस दिन होता स्पेशल खाना !!!

वेजिटेरियन भी स्पेशल नॉन वेजिटेरियन भी स्पेशल !!

वेजिटेरियन में पनीर वनीर होता था रसगुल्ला भी और नॉन वेजिटेरियन के लिए चिकन लाल लाल मसालेदार ग्रेवी वाला !!!

जिस दिन स्पेशल खाना होता उस दिन शाम को मेस बंद रहती ,एक समय की छुट्टी महाराज और वहां काम करने वाले लड़कों के लिए होती हम लोग भी दिन में स्पेशल खाना खाने के बाद शाम को लंका चले जाते जिसका जैसा मन होता खा पी लेता जो नही जाता उसका खाना आ जाता नकद ही लेनदेन होता या किसी का कोई लेन देन पहले का हो तो वो भी इसी में सधाया जाता ,सब ऐसे ही चलता था

पर उसमें लगी होशियारी !!!!

हमारी होशियारी, हम अपने पार्टनर दिनेश को बोले ,"यार ऐसा करते हैं हम लोग खाना देर से खाया जाएगा मतलब की अगर दोपहर के दो से ढाई के बीच खाते हैं तो तीन बजे तक खाया जाए और खूब खींच के खाया जाएगा तो रात में हम लोग को भूख लगेगी नहीं और हम लोग का रात का खर्चा लंका वाला बचेगा!!"

एक दूसरे होशियार थे मित्र दिनेश ,बोले

"हां बे लाला सही बोले तुम!!"

ठीक यही काम किया गया सब प्लान के हिसाब से ,फिर तान के सो गए शाम को पता चला सब लोग जा रहे हैं लंका खाने उस समय तक वाकई में हम लोग को भूख नहीं लग रही थी हम लोगों ने मना कर दिया किसी ने पूछा भी कुछ लेते आएं तुम लोगों के लिए तो भी हमलोग गरिया के मना कर दिए

....खाना लाएंगे .. भाग यहाँ से !!!! 

होशियार तो हम लोग थे ही ,समय कटता गया भूख नहीं लगी जो लंका गया वो भी खा पी के लौट आया , सब अपने समय पर सो गए लेकिन मेस की पतली पतली रोटी और चिकन रात के बारह एक बजते ही दगा दे गया

और लगी भूख वो भी जबर वाली !!!

लेकिन दोनों सोए पड़े ना नींद आए ना चैन फिर अचानक हम ही बोले  

"का बे दिनेश भूख लग रही है यार !!"

"वो बोला हमको भी बे !!!"

दोनों चौकी पर सोए सोए बोले क्या किया जाए एक से ऊपर बज रहा है !!!

हमको ख्याल आया अलमारी में चिउड़ा पड़ा था ,दिनेश ही लाया था घर से ।

हम कहे "चिउड़ा होगा ना बे !!"

बिजली जली ,अलमारी खुली बरसाती में पैक चिउड़ा निकला और शुरू हुई एक दूसरे को कोसते हुए खवाई, साथ मे बहस भी

" तुम ही होशियार बने थे !!!"

" तब तुम ही काहे नही चले गए लंका !!!"

सब सो रहे थे ,हम लोग लड़ भी रहे थे झगड़ भी रहे थे हँस भी रहे थे अपनी अपनी होशियारी को याद कर कर के!

बीच बीच मे आवाज भी आ रही थी कुरुर..कुरुर ...सूखे चिउड़े की जो दो होशियार खा रहे थे रात के दो ढाई बजे !!


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