बुद्ध !
बुद्ध !


बुद्ध को ज्ञान यूँ ही नहीं हुआ
बचपन जवानी बुढापा मृत्यु देख के हुआ
ये ज्ञान सबको नहीं होता
चलो लड़ते हैं ताउम्र सम्पत्ति
अहंम ,भोग,अगली पीढ़ी के लिए संचय के लिए
हम बुद्ध कहाँ ?
हम तो बस सामान्य से इंसान हैं
रूठते हैं अपनो से
मनाते हैं गैरों की दुश्वारियाँ बढें
खुश होते कि अगला जा रहा गर्त में
हम बुद्ध कहाँ ?
पर बड़ी ही सरलता से सीख गए वो बुद्ध थे
जीवन क्रम से चलता है
जन्म लिया तो सब भोगना होगा
बचपन जवानी रोग क्या बुढापा क्या
बड़ा सीधा सा नियम है ,वही ज्ञान है
जब आ जाये तब ही जीवन का अर्थ समझ आवे
पर हम बुद्ध कहाँ ?
हम तो हम ठहरे
एक सीधी लाइन में चलते
जिसमे छल लोभ स्वार्थ कपट सब शामिल
आदि से अनन्त तक,
बस लकीर के फकीर से जीते मरते
बुद्ध को ज्ञान यूँ ही नही हुआ!