दसवीं बोर्ड !
दसवीं बोर्ड !


पता नही अब दूसरे स्कूल सेंटर जाते हैं या नही अलग स्कूल में, सेंटर सिर्फ लड़को का जाता था, लड़कियाँ अपने ही स्कूल में इम्तेहान देतीं थी।लड़कों के साथ भेद भाव का बड़ा ही सरल उदाहरण है ये ,
हमारी दसवीं के इम्तेहान का सेंटर फाजिलनगर जिला कुशीनगर गया था ,एक जीप बुक की गई दस बारह लोंगो के लिए पर हेड जाने कितना आया था याद नही पर सात बजे के इम्तेहान के लिए साढ़े पांच छै तक गोला बाजार पर सब जुटते ,अपनी अपनी दफ़्ती एडमिट कार्ड सँजोये ,रोज नहा के (इम्तेहान में न नहा के जाना भयंकर अपशगुन का एहसास कराता था शायद),रस्ते भर रटते याद करते सत्रह किलोमीटर यूँ ही गुज़रता ,नया सा स्कूल फाजिलनगर का रोल नम्बर खोज के बैठना ,कभी कोई जुगाड़ लगता कोई हैं फलाने कसया के वहीँ पढाते हैं जान पहचान भी हो जा
ये तो भी सब प्रेमचन्द की पंचपरमेश्वर से ही लगते ।
कर्तव्यनिष्ठ अनुशासित ,ई नही कि बच्चे की कोई एकाध मदद करा दे सवाल देर से दिमाग के किसी कोने में भी मौजूद नही है,जबाब बता दें ,ऊपर से उड़ाका दल ,क्या भोकाली टाइप के होते थे ,आँखों की पुतली देख के नकलची पकड़ते ,सी आई डी वाले ए सी पी प्रदुम्मन जैसे ।
जैसे जैसे समय बीतता ,स्पीड बढ़ती ,सही का सही लिखाता ,कभी थोड़ी सी चूक ,कभी पूरा आदि अंत सवाल का अंतरात्मा की आवाज से उसका स्लेवस या किताब कापी से दूर दूर का रिश्ता न होता ,सारे भगवान देवी देवता कितने अपने से लगते । लगता सम्भाल लेंगे
पेन स्केच पेन इंचपटरी,एडमिट कार्ड पर वो अमरदीप स्टूडियो की ब्लैक एंड वाइट् फोटो आज अचानक याद आया,सुना बोर्ड का इम्तेहान चल रहा है आजकल!