Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Savita Gupta

Tragedy

3.3  

Savita Gupta

Tragedy

स्मार्टफ़ोन

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2 mins
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कम पढ़ा लिखा होने के बावजूद जीतन राम बहुत समझदार था।पान की गुमटी से उसका गुज़रबसर ठीक से हो जाता था।समझदारी से उसने हम दो हमारे एक के सिद्धांत को अपनाया।परिवारमें बस तीन लोग जीतन,पत्नी और बेटी लक्ष्मी।बेटी ,पर माँ सरस्वती की कृपा थी।

बारहवीं की परीक्षा देने वाली थी...कोरोना के कारण लॉकडाउन हो गया...

_पान की गुमटी भी बंद ...

कुछ दिनों तक घर  में रखे अनाज के सहारे ...फिर कभी रहम का पका खाना मिल जाता ...तोकभी सूखा अनाज ...दो किलोमीटर दूर उसी  स्कूल में बँटता,जहाँ लक्ष्मी पढ़ने ज़ाया करती ।अब लक्ष्मी कभी अनाज ,कभी किरासन तेल लेने लम्बी लाइन में खड़ी रहती ,कभी धूप में तो कभी बारिश में ...।देने वाले  सरकारके नुमाइंदे या कभी संस्था वाले होते थे ,मुस्कुराते हुए साथ में फ़ोटो खिंचवाते और मानो एहसान कर रहें हो...

लक्ष्मी शर्म से गड़ जाती लेकिन कोई चारा न था ,बेबस।

एक महीने बाद सब बंद...ना संस्था वाले ना सरकार....

जीतन ,रोज़ सुबह घर से निकल जाता यह बोल कर -सुने हैं !आज फलाने जगह अनाज वितरण होगा।एक जन का खाना बचाने के लिए ...पत्नी और लक्ष्मी सब समझती लेकिन जीतन के ज़िद्दके आगे हथियार डाल देती।

आज ,सोमरा को गुमटी का चाभी बिस्तर के नीचे से ढूँढने में कुछ वक्त लगा और काँपते हाथों से मुखिया के बेटे रमेश को पकड़ा दिया।बदले में रमेश के चमकते चेहरे से टपकता एहसान का मुखौटा जो उसने एक पुराना स्मार्ट फ़ोन और दस हज़ार रूपये जीतन को देते हुए लक्ष्मी से कहा...लक्ष्मीया ,”अब तोर पढ़ाई ना रुक पाई।”तेरे वास्ते स्मार्टफ़ोन ला दिए हैं।



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