समागम
समागम
हर हर का भयंकर गर्जन करते हुये उसने प्रियतम से मिलने को आतुर हो अपनें पित्रगृह से प्रस्थान तो किया पर उसे मालुम न था कि अपने प्रवाह के वेग से बड़े बड़े प्रस्तर खण्डों को उखाड़ फेंकने व संग में बहाने की क्षमता रखने वाली के शान्ति से जीने की चाह के जोर पकड़ते ही मामूली से दिखने वाले अपशिष्ट उसकी निर्मलता का नाम उठा अपनी दुर्गन्ध वहाँ फैला देंगें । आज उसी अपशिष्ट की वजह से पनपने वाली काई व गन्दगी के बढते ही उससे अजीब सी दुर्गन्ध आने लगी थी। जिसकी शीतलता के स्पर्श मात्र से ही तन मन शुद्ध हो जाता था आज दुर्गन्ध की वजह से सांस लेना भी मुश्किल होने पर वह असीम वेदना से रो पड़ी। तभी एकान्त की तलाश में घूमते युगल की निगाह उस पर पड़ी। उसकी पीड़ा को समझ अपनें साथियों को एकत्र वहाँ स्वच्छता अभियान चला कर पहले तो वहाँ अपशिष्ट का आना बन्द कराया जिससे आधी गन्दगी तो अपने आप ही साफ हो गयी बाकी को सबने मिल कर साफ कर दिया । जहाँ पहले लोग दुर्गन्ध की वजह से आने से कतराते थे आज प्रेम दिवस पर वहाँ युगल जोड़े निश्चिंती के साथ भ्रमण करते नजर आ रहे थे ।और आते भी क्यों न उनकी प्रिय नदी की धारा भी अब दुर्गन्ध युक्त ठहरा हुआ पानी मात्र नहीं थी वह निरंतरता के साथ सागर से समागम को आतुर बहती हुई जलधारा थी।