Shailaja Bhattad

Abstract

3.8  

Shailaja Bhattad

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समाधान

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"पिच्यासी की तो हूं अभी, कोई बुड्ढी थोड़े ही हूं, मेरी हड्डियां अभी भी मजबूत हैं, आराम से सीढ़ियां चढ़-उतर सकती हूं, लिफ्ट की जरूरत नहीं है मुझे।"

 सभी के द्वारा लिफ्ट से जाने के आग्रह पर किसी गांव से आई माताजी ने जवाब दिया।

"आप हर दो महीने में यहां योगपीठ में आकर एक महीना रहती हैं, माताजी आपका घर परिवार नहीं है क्या?"

" है क्यों नहीं, लेकिन वो सब मेरी सेवा तो नहीं करते न, फिर मेरी पेंशन का पैसा भी तो आता है, वह मैं यहां दे देती हूं जिससे मेरी पूरी सेवा होती है। योगा, मसाज आदि विभिन्न ट्रीटमेंट के कारण और शुद्ध सात्विक आहार के कारण मेरा तन-मन दोनों स्वस्थ रहते हैं, स्वर्ग में रह रही हूं, यहां आकर मेरा जीवन सार्थक हो गया है।"

"वाह माताजी आप बहुत समझदार हैं।"

"वह तो मैं हूं ही।" 

"जी (मुस्कुराकर), कौन कहता है कि वृद्धावस्था में वृद्धाश्रम में दुखी रहकर बचा जीवन काटने की आवश्यकता है, बल्कि योगपीठों में रहकर खुशी-खुशी सहज जीवन जिया जा सकता है, आप इसका बहुत ही सुंदर उदाहरण है माताजी।" 

माताजी की आंखें अब खुशी से चमक रही थी।


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