Poonam Singh

Tragedy Inspirational

3  

Poonam Singh

Tragedy Inspirational

सलाम इंडिया

सलाम इंडिया

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80


समय का चक्र ऐसे घूमा कि काल आज मुँह बाए सबकुछ निगल लेने को आमादा था। इंसान ने भगवान बनने की महत्वकांक्षा में प्रकृति को तहस - नहस कर बुद्धि का इस्तेमाल तो किया, किन्तु विवेक भूल गया। आज पूरी दुनिया त्राहि माम, त्राहि माम कर रही है। काल की विभीषिका, जिसे इंसान लड़ना नहीं, बल्कि भागना चाह रहा था। 

फिर भी जीवन चक्र तो चलना ही है। ऐसे विकराल समय में जहाँ सब लोग घरों में दुबके पड़े थे वहीं कुछ ऐसे भी थे जो अपनी जान की परवाह किए बिना अपना कर्तव्य पथ पर अग्रसर थे ।

अपना माईक हाथ में थामे हुए बेधड़क अपने शहर में कोरोना से ग्रस्त माहौल का मुआयना करने निकल पड़ी।

"क्या हुआ अम्मा ! ऐसे उदास क्यों बैठी हो? 

"क्या बताएँ बिटिया, हमारा घर वाला शहर में फैली बीमारी से बचने के लिए वहाँ से भागकर गाँव आया लेकिन दूसरे ही दिन अस्पताल में भर्ती हो गया। दो दिन के बाद ही बिटवा के बारे भी पता चला कि अब वह भी शहर के अस्पताल में भर्ती है। "

 उसके झुरिया में छुपी उदासीनता व निराशा का सन्नाटा साफ दिख रहा था। उनके कंधों पर दिलासा का हाथ रख के आगे बढ़ गई। 

"आप के घर तो ख़ुशियों का आगमन हुआ है फिर मुख पे ये उदासी कैसी ?"

 उसने अपनी डबडबाई आँखों से अपने नवजात शिशु की ओर इशारा करते हुए कहा, "टेस्ट पॉजिटिव आया हैं।"

 सुनते ही मेरी भी आँखें नम हो गई । मन ही मन बुदबुदाई, ' हे भगवान कम से कम इस बच्चे पर तो रहम कर।' 

वहां से निकल थोड़ी आगे बढ़ी ही थी कि कुछ लोगों की भीड़ देखकर रुक गई । उनसे जानकारी लेनी चाही , "जब सारा शहर बंद हो चुका है और कहीं आने जाने की सुविधाएँ भी नहीं है फिर आप लोग अपना सारा सामान लेकर कहाँ जा रहे हैं ? "

 "क्या करे मैडम शहर के लॉकडॉउन में भूख कों कैसे लॉक करे ? पहले भूख से बचेंगे तब तो बीमारी से लड़ेंगे। इसलिए गाँव जा रहे है। ये मेरी पत्नी और ये उसके गोद में हमारा डेढ़ माह बच्चा हैं।"

"समस्या क्या है और जाएँगे कैसे ?"

"हम दिहाड़ी मजदूर है। खाने के लिए पैसे कहाँ से लाएँ ? हमारे गाँव के बहुत लोग रिक्शा से, तो कुछ पैदल ही गाँव के लिए रवाना हो गए। हम लोग भी कुछ ऐसा ही करेंगे।"

उनकी आँखो में जिंदगी से ज्यादा भूख की चिंता दिख रही थी।


"आप तो सुखी संपन्न दिखती है मैडम, फिर आप क्यों घूम रही है? आपको इस महामारी से डर नहीं लगता ?"

 मैंने एक पल उसकी तरफ देखा फिर कहा , "डर...! , डर, लगता है ना, आप लोगो के जान की। तभी तो हम दिन रात घूम - घूम कर आपलोगों को इस महामारी के बारे में जागरूक करना अपना फ़र्ज़ समझते हैं। "


"जी मैडम, वैसे देखा जाए तो हम जैसे लोग अपनी जान बचाने की चाह में भागे जा रहे है। पर आपलोग अपनी जान की परवाह किए बिना जनता की सेवा में लगे डॉक्टर्स, नर्सेस, सफाई कर्मचारी, पुलिस और आप जैसे मीडिया कर्मी लोग बहादुरी और प्रशंसा के पात्र है। आप सब को सलाम मैडम।"

उसकी बातें उस वक़्त मुझे एक तमगे से कम नहीं लग रही थी।

मैंने मुस्कुराकर उसकी तरफ देखा और फिर से एक बार और वायरस के बारे में समझाती हुई आगे निकल गई।

कोई भूख की तलाश में इधर उधर भाग रहा है तो कोई जान बचाने के लिए परेशान था। तो कोई अपने कर्तव्य के निर्वाह के लिए। इन सबके बीच सिर्फ एक ही भाव पसरा हुआ था... उदासीनता व सन्नाटे का।



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