सिमटती दूरियां
सिमटती दूरियां


आभा आज सुबह से ही देख रही थी आलोक के बदले हुए स्वरूप को जिस तरह से वह देख रहा था कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था ऐसा लग रहा था जैसे कि वह कुछ कहना चाह रहा पर शब्द नहीं जुटा पा रहा है सुबह से ही आभा के आगे पीछे भंवरे की भांति मंडरा रहा था ।
आभा और आलोक की शादी हुए मुश्किल से अभी 6 महीने ही हुए पर ऐसा लगता था जैसे कुछ खालीपन सा आ गया हो।
आलोक अपने माता-पिता की इकलौती संतान है। माता पिता आलोक को कुछ ज्यादा ही प्यार करते थे और शायद आलोक की मां ललिता देवी अपने बेटे को आभा के साथ बांट नहीं सकती थी उनकी ऐसी सोच थी की शादी के बाद उनका बेटा उनसे छिन जाएगा और शायद यही कारण था कि आलोक की मां ने कभी दिल से आभा को स्वीकार नहीं किया।
ललिता देवी ने तो आभा से यहां तक कह दिया था कि हमारे यहां ससुराल में बहू सबके सामने अपने पति से बात नहीं करती इस कारण आभा को आलोक से पूरे दिन में बात करने का कोई मौका नहीं मिलता और दिन में भी वह अपने कमरे में नहीं जा पाती। क्योंकि सासु मां का कहना था कि तुम दिन में मेरे साथ बैठा करो।
अब यहीं से शुरू होती है आभा के जीवन में ग़लतफहमी की दीवार क्योंकि ललिता देवी आभा के साथ कुछ और ही खेल खेल रही थी। आलोक तो सुबह से अपनी ड्यूटी पर चला जाता और शाम को लौटता तो आलोक से यही कहा जाता कि,
"बेटा तू तो अपनी ड्यूटी पर चला जाता है लेकिन तेरे पीछे बहू हम लोगों से अच्छा व्यवहार नहीं करती।"
यह सुनकर शुरू में तो आलोक का माथा ठनका पर वह आभा से तो अभी कुछ ही दिन पहले जुड़ा लेकिन अपने मां-बाप को तो वह बचपन से जानता है वह सोच भी नहीं सकता था की मां झूठ बोल रही हैं।
रात में भी जब आलोक सो जाता तब आभा को कमरे में आने की फुर्सत मिलती और आलोक के उठने के पहले ही वह उठकर अपने घर के कामकाज में लग जाती इसीलिए आलोक को भी आभा से ज्यादा बात करने का टाइम नहीं मिल पा रहा था।
इसीलिए आलोक थोड़ा सा आभा से दूर सा होता चला जा रहा था एक अजीब सी बेरुखी और सन्नाटा पसर गया था दोनों के रिश्ते पर, आभा तो निश्चल थी वह तो सभी की सेवा उसी भावना के साथ कर रही थी लेकिन उसके मन में यह बात थोड़ा थोड़ा खटकती जरूर थी कि आलोक इस कदर उससे दूर क्यों होता जा रहा है।
पर कहते हैं ना कि ईश्वर के घर देर है अंधेर नहीं अब जब से 21 दिन का लॉक डाउन शुरू हुआ और आलोक भी वर्क फ्रॉम होम कर रहा था तो उसने यही देखा कि आभा तो सारे दिन मुस्कुराते हुए सारे काम सहजता पूर्वक करती है यहां तक कि अगर ललिता देवी कुछ चिड़चिड़ा भी देती तो वह हँसकर टाल देती और चुपचाप मुस्कुराते हुए खुशी-खुशी सारा काम करती।
यह देखकर आलोक की ग़लतफहमी धीरे-धीरे दूर होती चली गई तथा वह अपने किए हुए व्यवहार पर शर्मिंदा हो रहा था अब वह यही सोच रहा था कि किस प्रकार आभा से माफ़ी मांगे। और अपने प्यार के सागर में उसको डुबो दे जो इतने दिनों से उसने जबरन मां के बहकावे में आकर रोक कर रखा हुआ था लेकिन आभा के निश्छल प्यार में इतनी ताकत थी कि बिना कुछ नुकसान हुए उसका प्यार उसे हासिल हो गया।
दोस्तों अधिकतर परिवार में अभी तक ऐसी सोच रहती है की शादी के बाद बेटा हमारा नहीं रहा इसी सोच के चलते घर के बड़े बुजुर्ग नव दंपतियों के मन में बहुत सारी गलतफहमियां भर के उनके रिश्ते को दूर करने की कोशिश करते हैं जबकि यह वह समय होता है कि परिवार के सदस्यों को एक साथ मिलजुल कर नए रिश्ते को प्रगाढ़ता प्रदान करना चाहिए।