Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy Inspirational

सीजन 2 - मेरे पापा (7)

सीजन 2 - मेरे पापा (7)

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उस संध्या, मम्मी जी का एक उपन्यास पढ़ने में मन लगा हुआ था। उन्हें विघ्न दिए बिना, मैंने डिनर भोज्य तैयार करना शुरू किया था। तब पापा मेरी सहायता के लिए रसोई में आ गए थे। 

पापा जिन्होंने, अपने आरंभिक जीवन में समाज और परिवार में पुरुष की प्रधानता देखी थी, वे जीवन से सीखने और अपने विचारों को परिष्कृत करते जाने के अपने स्वभाव के कारण, अब तक ‘अच्छे से’, ‘बहुत अच्छे’ व्यक्ति बन चुके थे। जीवन मंच पर, पुरुष के बराबर पहुँचने की ‘आज की नारी में ललक’ को वे पारिवारिक तथा सामाजिक न्याय निरूपित करते थे। 

उन्हें रसोई में आया देख, मैंने कहा - पापा, मैं कर लूँगी, आप परेशान मत होइए। 

पापा, अच्छा सोचते तो थे ही, कहते उससे भी अच्छा थे। निश्चित ही वे जिनके साथ होते थे उन्हें, अपने सहयोग और शब्दों से अच्छा बनने को प्रेरित कर देते थे। पापा ने कहा - बेटी, मेरे लिए यह परेशानी की बात नहीं है। तुम्हें रसोई तैयार करते देखना, मेरे लिए सीखने का अवसर है। 

मैंने कहा - मैं भाग्यशाली हूँ, अपने पापा को खो चुकने के बाद, इसी जीवन में आपके रूप में ‘मेरे पापा’, मुझे फिर मिल गए हैं। 

पापा, अपने पास किसी का कुछ नहीं रखते हैं। उन्होंने, मेरे शब्दों से बढ़कर लौटाया था, कहा - रमणीक, इसे मेरा सौभाग्य कहो कि इस उम्र में, मुझे ईश्वर ने तुम्हारे रूप में, पली पलाई एक बुद्धिमान बेटी दे दी है। 

हममें बातें होती रहीं थीं। आज, मैं पापा की पसंद का, विशेष ध्यान रखकर रसोई बना रही थी। जिसे बाद में टेबल पर, सबके साथ मम्मी ने न केवल ग्रहण किया था बल्कि भूरि-भूरि प्रशंसा भी की थी। 

मैं, बिस्तर पर जब पहुँची तो मेरा मन प्रफुल्लित था। मैं, सुशांत के कॉल की प्रतीक्षा करते हुए, विचारों में खो गई थी। मैं सोच रही थी कि अभी हमारे विवाह को छह माह भी पूरे नहीं हुए हैं। तब माँ बनने की मुझे इतनी उतावली क्यों मची है, जो मैं प्रेगनेंसी टेस्ट किट ले आईं हूँ? मुझे गर्भ ठहरा या नहीं, वैसे भी तो कुछ दिनों में पता चल ही जाना है। 

वास्तव में मैंने डिंपल चीमा के बारे में पढ़ा था, मेरी उतावली का कारण यही था। डिंपल, दुर्भाग्य से विक्रम बत्रा जैसे अत्यंत साहसी एवं बलिदानी पुरुष की, प्रेयसी बस रह पाईं थीं। यह दुर्भाग्यजनक था कि औपचारिक रूप से उनका विवाह नहीं हुआ और डिंपल, विक्रम के संयोग से, उनके अंश को अपनी गर्भ में पाल कर देश को, विक्रम जैसे ही साहसी पुत्र या पुत्री देने से वंचित रह गईं थीं। 

मैं सोच रही थी कि - सुशांत भी भारत माता के एक अत्यंत वीर पुरुष हैं। ‘युवती’ जो सुशांत के बच्चे को जन्म दे सकती है, वह सौभाग्यशाली एकमात्र मैं ही हो सकती हूँ। 

मेरे मन में तब जो विचार आया, उसकी कल्पना किसी भारतीय पत्नी के लिए अत्यंत पीड़ादाई होती है। मैं सोच रही थी कि ना हो कभी, मगर ऐसा हुआ कि विक्रम बत्रा जैसा बलिदान, सुशांत की भी परिणति हुई तो!, इस कल्पना की भीषण वेदना से, मेरे नयनों से अश्रु की धार बहने लगी थी। बह रहे मेरे अश्रुओं से तकिया गीला हो गया था। मैं सोच रही थी कि यही कारण है जो प्रेगनेंसी टेस्ट के लिए मुझे उतावला कर रहा है। सुशांत से वियोग की कल्पना मेरे लिए असहनीय थी। तब भी संभावनाओं पर विचार रख, मैं उनके अंश से (हमारे) बच्चे को शीघ्र से शीघ्र जन्मता देखने की व्यग्र अभिलाषी थी। 

तब सुशांत के कॉल की रिंग सुनाई दी थी। मैंने अश्रुओं से भीग गए तकिये को अलग हटाया था। उठकर वॉशरूम गई थी। अपने आँखों पर पानी के छींटे मारे थे। दर्पण में सुनिश्चित किया था कि मैं उदास तो दिखाई नहीं पड़ रही हूँ। तब मैं शयनकक्ष में वापस आई थी। मैंने मोबाइल उठाकर देखा तो पाया कि रेस्पोंस न मिलने से, व्यग्रता में सुशांत, चार बार कॉल कर चुके थे। मैंने उन्हें कॉल किया था। उन्होंने पहली रिंग पर ही कॉल रिसीव कर लिया था। चिंतित स्वर में पूछा - 

निकी, कोई परेशानी है क्या?

मैंने सप्रयास मुखड़े पर मुस्कान सजाते हुए उत्तर दिया - नहीं जी, मैं वॉशरूम में थी। 

तब हममें प्यारी प्यारी अनेक बातें हुईं थीं। मैंने प्रेगनेंसी टेस्ट को लेकर, सुशांत को कुछ नहीं बताया था। मैं नहीं चाहती थी कि अपनी माँ बनने की व्यग्रता बता कर पतिदेव पर अपने बच्चे को लेकर, अनायास कोई तनाव या दबाव निर्मित कर दूँ। मैं चाहती थी कि मेरे सुशांत हमेशा प्रसन्न रहें, उनके मुख पर सदा वह मुस्कान रहे जो उनकी सुंदरता में चार चाँद लगाती है। 

कॉल खत्म होने के बाद, एक शंका (Probability) ने कि टेस्ट अगर नेगेटिव आया तो, क्या हाल होगा मेरा!, मेरी आँखों से निद्रा को कोसों दूर कर दिया था। 

फिर देर रात, नींद तो लग गई थी मगर टेस्ट की जिज्ञासा ने पाँच बजे ही, मुझे जगा दिया था। मैं शीघ्रता से किट लेकर वॉशरूम में गई थी। टेस्ट रिजल्ट पाँच मिनट में आता है लेकिन कार्ड पर मेरी दृष्टि लगातार बनी हुई थी। अंततः परिणाम आया था। 

कार्ड पर सिर्फ कंट्रोल वाली लाइन आई थी। टेस्ट वाली दूसरी लाइन नहीं आई थी। मेरे लिए घोर निराशा की बात थी। यह प्रेगनेंसी, नेगेटिव होना दर्शा रहा था। मन की शक्ति क्षीण होने से तब मुझे लगा कि मैं चक्कर खा कर गिर पड़ूँगी। मैं वॉशरूम की दीवार से टिक गई थी। फिर मेरे घुटने मुड़ने लगे थे। दीवार से टिकी हुई मैं फर्श पर बैठ गई थी। ऐसे ही कुछ मिनटों बैठे रहकर, मैं सोच रही थी कि क्या मेरी मानसिक पीड़ा किसी से कहना उचित है? या इसे मुझे अकेले ही सहना चाहिए? 

सुशांत से बताकर उन्हें दुखी करना ठीक नहीं होगा सोचते हुए, मैं साहस बटोरकर खड़ी हुई थी। अगले आधे घंटे अनमने ही मैं नित्य क्रिया में व्यस्त रही थी। दाँत और जीभ साफ कर लेने के बाद, मैं शयनकक्ष में आई तो अशक्त अनुभव कर रही थी। मैं बिस्तर में पड़ गई थी। बिना आवाज किए मैं सिसक रही थी। अश्रु बहते रहे थे, फिर मेरी नींद लग गई थी। 

दरवाजे पर नॉक किए जाने के शोर से मेरी नींद टूटी थी। वॉल क्लॉक पर दृष्टि गई तो 9.15 बज रहे थे। सामान्यतः 9 बजे के पूर्व मैं रसोई या/और डाइनिंग रूम में पहुँच जाया करती थी। बिस्तर से उठी तो मेरा सिर चकरा रहा था। जैसे तैसे दरवाजा खोला तो सामने पापा को खड़े पाया। वे पूछ रहे थे - क्या, बात है निकी तबियत तो ठीक है। 

कहने के साथ उन्होंने अपनी हथेली, मेरे माथे पर रख दी थी। फिर कहा - बेटे, तुम्हें तो तेज ज्वर है। 

सहारा देकर उन्होंने वापस मुझे बेड तक लाकर बैठाया था। फिर कहा - निकी, मैं क्रोसिन लाता हूँ उसे खाने से फीवर उतर जाएगा। फिर जाकर डॉक्टर से जाँच करा लेंगे। 

वे वापस गए थे। वापस आए तो उन्होंने एक गिलास में जल के साथ मुझे टेबलेट दी थी। उसे मैंने निगल लिया था। पाँच मिनट पीछे, मम्मी जी ट्रे में चाय और ब्रेड स्लाइस ले आईं थीं। पापा सामने कुर्सी खींचकर बैठ गए थे। मम्मी जी, बेड पर ही बैठ गईं थीं। सबके बीच ट्रे रखकर हम तीनों ने चाय ब्रेड ली थी। फिर मम्मी ने मुझे लेट जाने कहा था। मैं लेटी तब मुझे, पापा ने ओढ़ा दिया था। बेडरूम से जाते हुए उन्होंने कहा - 

रमणीक, बॉस को कॉल करके छुट्टी की सूचना दे दो। मैं नहा लेता हूँ फिर तुम्हें क्लिनिक लिए चलूँगा। 

मैंने जी हाँ कहते हुए मोबाइल उठा लिया था। पापा तैयार होकर आए थे तब ज्वर उतर गया था। मैंने कहा - पापा, आज क्रोसिन से ही देख लेते हैं। लाभ नहीं हुआ तो कल डॉ. को दिखा देंगे। 

पापा ने थर्मामीटर से चेक किया तो 98.6 आया था। पापा ने कहा - ठीक है आज तीन बार टेबलेट ले लेना ठीक रहेगा। 

फिर ज्वर नहीं आया था। ली गई सिक लीव का प्रयोग उस दोपहर, मैंने लेटे हुए विचार मंथन के लिए किया था। मैं सोच रही थी कि निश्चित ही विक्रम बत्रा महान वीर पुरुष थे। उनके किए जैसे साहस के उदाहरण बिरले ही हैं। भारत भूमि की रक्षा में उन्होंने अपने प्राण न्यौछावर किए हैं। फिर भी विक्रम की तरह साहसी और उनके जैसे बलिदान देने के साहस रखने वाले और भी वीर सपूत भारत में होते हैं। जिन्हें ऐसे कठिन मोर्चे पर लड़ने के अवसर नहीं मिलते हैं। वे ऐसे चरम बलिदान नहीं दे पाने से परमवीर चक्र नहीं पाते हैं। तब स्व-विवेक ने, मेरे घबराए मन को समझाया था। हर वीर सेनानी चरम बलिदान न देते हुए भी महावीर होता है। पूरा जीवन जीते हुए भारत की रक्षा और भारत के लिए, दुश्मन एवं बुराइयों के समक्ष अदम्य साहस से खड़ा रहता है। 

इस मंथन ने मुझे विश्वास दिलाया था कि सुशांत की परिणति भी विक्रम जैसी ही होगी यह कोई नियम नहीं है। मेरा मन विश्वास करने को हो रहा था कि ‘मेरे सुशांत’, अवसरों पर अदम्य साहस का परिचय देते हुए मेरे लिए पूरा जीवन जियेंगे। 

पहले मैं एक भारतीय पत्नी की तरह पतिदेव के जीवन पर आशंकाओं की कल्पना से भयाक्रांत हो रही थी। फिर मैंने आशाओं का दामन थाम लिया था। लेटे लेटे दोनों हाथों की मुठ्ठियाँ भींच मैं दृढ़ता अनुभव कर रही थी। मैं सोच रही थी, नहीं! नहीं! मैं, पतिदेव के जीवन के लिए, सती सावित्री की तरह जूझना पड़ा तो जूझूँगी। तब मैं निराशा से उबर गई थी। 

मन को जीतते ही मैं स्वस्थ हो गई थी तथा डिनर तैयार करने के लिए किचन में आ गई थी। मम्मी जी के मना करने पर भी मैं उनके साथ किचन में सक्रिय हो गई थी। 

फिर रात जब फोन आया तो सुशांत बता रहे थे - 

मालूम है निकी, बहुत से बातें सार्वजानिक नहीं की जाती हैं मगर उनका अस्तित्व होता है। उस दिन मेरे द्वारा, फ्लाइट को खतरे से निकालने की घटना, एयर ट्रैफिक कंट्रोलर्स से होते हुए, प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुँची थी। आज मुझे प्रधानमंत्री हस्ताक्षरित प्रशस्ति एवं बधाई पत्र, हमारे वायुसेनाध्यक्ष के हाथों समारोहपूर्वक प्रदान किया गया है। 

मैंने पूछा - जी, यह बताइये कि आप, अपनी अच्छे कामों को अंजाम देने वाले कारनामों को छुपाते क्यों हैं?

सुशांत ने हँसकर कहा - हाँ निकी, मेरी पहचान छुपाने से तुम्हें अनुभव होने वाले गर्व बोध से तुम्हें वंचित तो अवश्य होना पड़ता है, मगर हम वीर सेनानी ऐसी पहचान सार्वजानिक करके, देश में एवं देश के बाहर के दुश्मन के निशाने पर आने से, अपने परिवारों को बचाते हैं। मैं ‘विंग कमाण्डर अभिनन्दन वर्धमान’ की तरह खतरे से खेलने का हौसला रखता हूँ। मैं नहीं चाहता कि कोई मेरा हौसला तोड़ने के लिए तुम या पापा-मम्मी, किसी पर ही बुरी दृष्टि रखे। 

मैंने पूछा - अशोक, कीर्ति और शौर्य चक्र प्रदान करके सरकार द्वारा, आर्मी के वीरों की पहचान सार्वजानिक की जाते, मैंने देखा है।

सुशांत ने कहा - यह अपवाद होता है, हजार वीरता के कारनामों में से कुछ ही इस तरह पुरस्कृत होते हैं।  

यह बात मुझे समझ आ गई थी। 

रात करवटें बदलते हुए फिर एक बार, मैं पतिदेव को लेकर अपने मन में बैठी आशंकाओं से विचलित हो रही थी।


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