HARSH TRIPATHI

Drama Romance Thriller

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HARSH TRIPATHI

Drama Romance Thriller

श्री कृष्ण-अर्जुन --भाग- 1

श्री कृष्ण-अर्जुन --भाग- 1

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श्री कृष्ण-अर्जुन -- भाग - १



धर्म क्या है ? गीता में कहते हैं भगवान, कि जो धारण किया जाये वही धर्म है। महान धनुर्धर ने चरणों में बैठे हुए कर-बद्ध हो, निवेदन किया "प्रभु ! कृपया स्पष्ट करें, क्या धारण करने को धर्म कहा जाये?........और क्यों?......मार्गदर्शन करें प्रभु"। नटनागर बोले "पार्थ मानवता के कल्याण के लिए, सम्पूर्ण मानवजाति के हित कार्य के लिए जो भी कुछ धारण किया जाये, उसे ही धर्म कहते हैं। आज मानवता तेरी ओर देख रही है वत्स !

वह देख रही है कि अन्याय का प्रतिकार यह कुंती-पुत्र कैसे करता है?.......और करता भी है या नहीं?.........अन्याय का प्रतिकार न करना सदैव उस अन्याय को और आगे बढ़ाता ही है। मानवता देख रही है कि अर्जुन क्या करता है ? वह अन्याय के विरुद्ध शस्त्र उठाता है या नहीं? यदि वह शस्त्र नही उठाएगा तो आने वाली पीढ़ियां सदैव उसे इसी रूप में याद रखेंगी कि मानवता के दीर्घकालिक कल्याण को तिलांजलि देकर कुंती-पुत्र अर्जुन ने अपने अल्पकालिक लोभ को वरीयता दी। न्याय का पक्ष छोड़ कर अन्याय की सहायता की। याद रख अर्जुन!!..... न्याय और सत्य का पालन करने का अर्थ यह कदापि नहीं है कि तू न्याय औरअन्याय, सत्य और असत्य के बीच खड़ा दिख रहा है और किसी का पक्ष नहीं ले रहा है, बल्कि हर स्थिति में तुझे न्याय और सत्य की प्रतिष्ठा हेतु, उन्ही के पक्ष में और सदैव अन्याय व असत्य के विरोध में ही खड़ा दिखना चाहिए। इतिहास यही कहेगा कि जिस समय अपने धर्म के पालन की सर्वाधिक आवश्यकता थी, अर्जुन ने अपने धर्म का निर्वहन नहीं किया। वह अनैतिक व दुर्बल व्यक्ति की तरह भाग खड़ा हुआ। पाण्डु-पुत्र ! !............शस्त्र उठाकर युद्ध करना ही आज तेरा धर्म है"।


उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत

आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः



टीवी पर सुबह में समाचार आ रहे थे। 27 साल की अरुणा यूनिवर्सिटी और १६ साल का उसका भाई लेनिन स्कूल जाने के लिए निकल रहे थे कि उनके जार्जटाउन स्थित घर का लैंड लाइन फोन घनघना उठा। उनके पापा विजयराज ने फोन उठाया। बच्चों की माँ गीतिका बच्चों के साथ बाहर ही खड़ी अपने पति का इंतज़ार कर रही थी। विजय ने २ मिनट में बात ख़त्म की और तेजी से बाहर की ओर निकले। बच्चों को देर हो रही थी।

"यार हद है...... देर हो रही यहां पर, और तुमको फोन निपटाना ज़्यादा ज़रूरी लगता है" गीतिका ने तुनक कर उलाहना दिया। विजय हमेशा की तरह मुस्कुरा कर बोले "अरे यार ! !, किसी का भी हो सकता है न फोन,.....चलो जल्दी बैठो गाड़ी में"। "मम्मी, पापा सुधर नही सकते, आप कुछ कर लो" लेनिन ने मज़े लेने शुरू कर दिए। कुछ सेकेंड्स बाद ही सफ़ेद रंग की होंडा सिटी बच्चों के स्कूल की ओऱ निकल चली। विजय और गीतिका आगे ही बैठा करते थे, और बच्चे हमेशा पीछे।

आज़ादनगर के सिविल लाइन्स मोहल्ले में स्कूल के गेट पर लेनिन को छोड़कर मियाँ-बीवी यूनिवर्सिटी की ओर निकले, जहां अरुणा को ड्रॉप किया, और फिर अपने दफ्तर की तरफ चल दिए।

उनका दफ्तर आज़ादनगर के सिविल लाइन में ही पत्थर वाले गिरिजाघर से आगे कुछ दूर जाकर रेलवे स्टेशन के पास ही था। दफ्तर पहुँचते ही गीतिका ने देखा कि दफ्तर में बाहर से ही खूब सजावट का काम चल रहा है। दफ्तर के स्टाफ से कहीं ज़्यादा दफ्तर के आस-पास के लोग थे जो सजावट कर रहे थे। गाड़ी को देखते ही दफ्तर का प्यून नीरज ज़ोर से चिल्लाया "बाबूजी और मैडम जी आ गए",और तेजी से चिल्लाता हुआ अंदर की ओर भागा। अंदर जाकर कई बार चिल्लाया फिर बाहर की तरफ भागा। तेजी से भागते हुए गाड़ी के पास पहुंचा और गाड़ीके बोनट पर जोर से हाथ मारा। उसकी सांस फूल रही थी लेकिन खुशी उसके चेहरे पर चमक रही थी। गीतिका ने डांटा उसको गाड़ी के अंदर से ही "अरे नीरज ! पागल है क्या ?"। इतने में विजय ने शीशा नीचे करके मुस्कुराते हुए बड़े आराम से कहा "ओ थम जा नीरज,।थम जा, .........अब तो ऑफिस आ ही रहे हैं,..........आने तो दे। गीतिका ये सब देख कर हतप्रभ थी और उन्हें कुछ समझ नहीं आ रही थी। इतने में दफ्तर के आस-पास जिनके घर थे, उन लोगों ने और उनके बच्चों ने गाड़ी को घेर लिया। शोर इतना ज़्यादा था कि गीतिका ने अपने कानों पर हाथ रख लिए और ज़ोर से विजय से कहा "निकालो यार यहाँ से गाड़ी .......पता नही क्या तमाशा है सुबह सुबह ?" हमेशा की तरह विजय के चेहरे पर मुस्कान थी और वो धीरे-धीरे गाड़ी आगे बढ़ा रहे थे। नीरज ज़ोरसे फिर चिल्लाया "तमाशा-वमाशा नही मैडम जी!.........हमारे ऑफिस का बड़ा नाम हो गया है..........इंडिया में नहीं मैडम,पूरी दुनिया में..........पूरी दुनिया में!!!...................टीवी चिल्ला चिल्ला कर बता रहा है..............न्यूज़ नहीं देखे क्या मैडम आप?" गीतिका केवल उसका चेहरा देख रही थी। आस-पास के लोग शीशे पर हाथ मार मार के बोल रहे थे "बधाई हो ! !........बधाई हो ! ! !हमारे मोहल्ले का नाम टीवी पर आ गयाटीवी चैनल वाले यहां भी आएंगे ..........बधाई हो ! ! !"

इस कान फाड़ शोर के बीच नीरज धीरे-धीरे भीड़ को गाड़ी से परे हटाकर रास्ता बनाने लगा "साइड हो जाइये आप लोग सब !........गाड़ीको जाने दीजिये,......बाबूजी को जाने दीजिये,भीड़ मत लगाइये भाई सब लोग यहाँ पर!! .......हटिये,हटिये आप लोग।" धीरे-धीरे गाड़ी उस छोटी सी, पुरानी सी तीन-मंज़िला बिल्डिंग तक जा पहुंची। गाड़ी में से हमेशा की तरह चेहरे पर मुस्कान लिए और हाथ जोड़े विजय बाहर निकले जो मामूली सा, भूरे रंग का सूती कुरता व सफ़ेद पैजामा पहने हुए थे जबकि हल्के हरे रंग की साड़ी पहने जब गीतिका उतरी तो उनके चेहरे की हवाइयां उड़ी हुई थी।

ऑफिस में स्टाफ सेक्रेटरी जोशी जी ने विजय को बाहों में भर लिया और पीठ ठोंकते हुए कहा "आप दोनों की इतने सालों की मेहनत रंग लायी विजय, ये कमाल जो हुआ है, आप दोनों की ही वजह से हुआ है। दुनिया में आपके काम को पहचान मिली हैऔर हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि आपके इस काम में हम भी आपके साझीदार हैं, चाहे छोटे ही सही"। दोनों लोग अलग हुए तो विजय ने कहा "अकेले केवल हम दो तो कभी कुछ नहीं कर सकते थे जोशी जी। ये सब आप लोगों के हमारे साथ आने, हम दोनों पर, हमारी नीयत पर, भरोसा करने का नतीजा है, और आप लोग छोटे साझीदार नहीं,दरअसल आप ही लोग तो सब कुछ हैं", और विजय ने फिर से जोशी जी को गले लगा लिया।

गीतिका बुरी तरह परेशान हो रही थी, झल्लाकर बोलीं "अरे मुझे भी बताएगा कोई कुछ?.......बात क्या है?। ये सब चल क्या रहा है यहाँ पर?" ऑफिस की सीनियर स्टाफ कमला मैडम ज़ोर से हँस कर बोली "झूठ बोलना तो आपसे सीखे कोई मैडम,......ऐसे बोल रहीं हैं जैसे कुछ पता ही नहीं,लेकिन एक बात बोलें मैडम, आपको ढंग से झूठ बोलने की एक्टिंग करना भी नही आता", और फिर पूरा स्टाफ हँस पड़ा। गीतिका गुस्सा करते हुए बोलीं "मै कसम खा कर बोलती हूँ कमला दीदी । मुझे कुछ भी नहीं पता ये हो क्या रहा है सब यहां", फिर वो विजय के कंधे पर हाथ मार के बोलीं "यार बताओगे भी कुछ?" कमला मैडम ने हँस के कहा "मैडम जी!.....अब ये न बोलना कि आप दोनों को मैगसेसे अवार्ड मिला है और आपको कुछ पता नहीं है"। गीतिका ने आश्चर्य से कहा "क्या कहा कमला जी?........कौन सा अवार्ड?........फिर से बोलना?" फिर कमला जी ने गीतिका का चेहरा अपने दोनों हाथों से प्यार से पकड़ कर कहा "अरे गीतिका मैडम ! !........किसानों के लिए दिन-रात काम करने के कारण आपकी, हमारी संस्था 'अन्नदाता इंडिया' को इस साल का मैग्सेसे अवार्ड मिला है। आज सुबह ५ बजे से ही हर न्यूज़चैनल पर आप ही आप हो और आप कह रहे हो कि आपको पता ही नहीं। आप देखो, विजय जी को सब पता है कि नहीं"। आश्चर्यचकित गीतिका ने विजय की ओर देखा, विजय ने मुस्कुरा कर बड़ी शान्ति से जवाब दिया "वो घर से निकलते टाइम,........ फोन आया था एक............मनीला से था वो.........उन्होंने यही जानकारी देने के लिए फोन किया था...........मै बता नहीं पाया तुमको जल्दीबाज़ी में,..........तो..............वही है ये"। इतने में एक न्यूज़चैनल की ओबी वैन ऑफिस की तरफ धीरे-धीरे आती दिखी। नीरज चिल्लाया "वो देखिये बाबूजी,सब लोग आ रहे हैं ! ! !"

गीतिका को कुछ भी बोलने के लिए शायद शब्द ही नहीं मिल पा रहे थे। वह एकदम भाव-विह्वल हो उठी। जब व्यक्ति अनअपेक्षित रूप से बहुत खुश हो जाता है तो वह कुछ बोल नहीं पाता, तब उसके मन की सारी बात उसकी आँखों के ज़रिये झर-झर निकल पड़ती है। ऐसा ही कुछ गीतिका के साथ भी हुआ उस वक़्त उसने अपने होंठों को दांतों में दबा लिया और आंसुओं की धारा आँखों से बह निकली। कमला जी ने उनको गले लगाया और कहा "रोने का समय नहीं है गीतिका जी........पाठक जी ने और कृष्णा बाबू जी ने जो मिशन शुरू किया था, जो सपना देखा था, कि हमारे मुल्क के किसान की बेहतरी के लिए हम लोग अपना जीवन स्वेच्छा से समर्पित करें, और किसानों की हालत में सुधार हो,....... आज उनकी आत्मा जहां कहीं होगी, जहां कहीं से भी आप दोनों को देख रही होगी, भरपूर संतुष्टि व् प्रसन्नता का अनुभव कर रही होगी। एक बार फिर से हार्दिक बधाई हो ! ! !........मुझे शुगर है ज़रूर लेकिन आज तो मैं खूब मिठाई खाउंगी, घर पर एक गोली ज़्यादा खा लूंगी, बस !" गीतिका ने भावुक होकर कहा "दीदी, आप लोग के बिना कुछ भी नहीं हो सकता, आप ही लोग हमारे सब कुछ हो.........ये पुरस्कार हमें नहीं, असल में ये आप सबका ही पुरस्कार है"। इतना कहकर गीतिका कमला जी से फिर गले लग गयी। स्टाफ में से किसी ने ठिठोली की "अरे मैडम!! कोई और भी है आपके साथ ! !" सभी ज़ोर का ठहाका लगा कर हॅंस दिए, और गीतिका पास में खड़े विजयराज जी के दाएं बाज़ू से बेहद शर्माते हुए और सिर नीचे किये हुए लिपट गई।

विजय राज जी ने ५ किलो मोतीचूर के लड्डू मंगवाए तो गीतिका भड़क उठी "दिमाग ख़राब है तुम्हारा विजय बाबू ? मैग्सेसे अवार्ड और ५ किलो लड्डू?..........शर्म आती है कि नहीं तुमको?..........तुम यार रह गए वैसे के वैसे ही..........एकदम चिरकुट,.........कंजूस"। विजय ने उसको शांत कराया "यार, तुमको पता तो है, इन सब में मेरा हिसाब-किताब सही नहीं है,........जो तुम बोलो, मंगवा दें अभी"। गीतिका के कहने पर पूरे स्टाफ और प्रेस के लोगों के लिए सिविल लाइन्स की कामधेनु स्वीट्स से २-२ समोसे और रस मलाई आर्डर की गयी।

अब तक कई सारे न्यूज़ चैनल्स की गाड़ियां आ गयी थीं। रिपोर्टर्स में होड़ लगी थी विजयराज और गीतिका जी की बाईट लेने की, उनसे सवाल पूछने की। कोई उनके ऑफिस के प्यून नीरज से ही बाईट लेने लगा तो कोई स्टाफ के दूसरे लोगों से। कोई आस-पास के मोहल्ले वालों से, जो वहाँ बड़ी संख्या में थे उनसे ही सवाल पूछने लगा। अजीब-अजीब से सवाल जैसे "....जी.....चाय के साथ विजयराज जी क्या पसंद करते हैं?""...........गीतिका जी कौन से गाने ज़्यादा सुनती हैं?....................विजयराज जी किस तरह के कपड़े ज़्यादा पहनते हैं? .........."क्या आप कुछ गा कर सुनना चाहेंगे?....................क्या आप लोग डांस करना चाह रहे हैं?.........". पूरा दिन भर रिपोर्टर्स को बाईट देने में ही निकल रहा था। दुनिया भर से बधाई सन्देश के लिए फोन आ रहे थे। ऑफिस का फोन की घंटी जैसे आज बंद ही नहीं हो रही थी। गीतिका और विजयराज जी का फोन पर बात करते-करते बुरा हाल हो रहा था। शाम तक उन दोनों के मोबाइल फोन की बैटरी भी जवाब दे रही थी। रोज़ ४ बजे निकल जाते थे वो दफ्तर से और बच्चों को स्कूल से लेते हुए घर आते थे। बच्चों की छुट्टी ४ बजे होती थी। आज ५ यहीं बज गए थे। स्कूल के प्रिंसिपल को फोन करके बता दिया था की आज काफी व्यस्त हैं, बच्चे को एक घंटा रोक लीजियेगा स्कूल में छुट्टी के बाद। उलटे प्रिंसिपल साहब ने कहा "कोई बात नहीं तिवारी जी, इतनी बड़ी बात हुई है।इतना बड़ा सम्मान मिला है, आपका भी तो स्टाफ होगा ही,।आप आराम से आइयेगा। बच्चा सेफ हैं यहां तब तक"। अरुणा को फोन करके बता दिया था कि आने में देर होगी, यूनिवर्सिटी से अपने घर खुद ही चली जाये। बेटी ने फोन पर चीखते हुए ख़ुशी से कहा "मम्मी,.................पापा,.............. कॉन्ग्रैट्स!!.................मुझे कॉलेज आकर पता चला...............फ्रेंड्स ने बताया,आई एम् सो हैप्पी। आज तो पार्टी होगी कैसे भी करके,.............................आज तो पापा बच नहीं सकते"।

लगभग ६ बजे वो गाड़ी लेकर वे स्कूल पहुंचे, साथ में १ किलो मिठाई भी। प्रिंसिपल साहब रुके हुए थे तब तक लेनिन के लिए। विजय और गीतिका ने उनका आभार व्यक्त किया, उन्हें मिठाई दी और बच्चों के साथ घर की तरफ निकल चले। घर जाने से पहले वो कामधेनु स्वीट्स पर फिर से रुके, जो सिविल लाइन्स ही नहीं पूरे आज़ादनगर ज़िले की मिठाईयों की मशहूर दूकान थी। माँ-बाप लेनिन को लेकर अंदर गए जब तो विजय ने पूछा "बोलो लेनिन,।क्या लोगे आज?"। लेनिन की समझ नहीं आयी की पापा इतने दरियादिल कब से हो लिए। विजय ने फिर कहा "आज जो लेनिन बोलेगा, वही मिठाई लेंगे", लेनिन ने हॅंस कर कहा "क्यों पापा? लाटरी खुली है क्या कोई?", विजय ने भी हँस कर जवाब दिया "ऐसा ही समझ लो"। फिर लेनिन ने कहा "अच्छा तो ठीक है फिर।दीदी के लिए मिल्क केक, मेरे लिए रस मलाई और हम दोनों के लिए एक-एक फालूदा कुल्फी पैक करवा लीजिये, बाकी आपकी जो मर्ज़ी"।कई सारी मिठाइयां लेकर, वो अपने घर पहुंचे जहां पड़ोसी बड़ी तादात में जमा थे। सभी ने विजय और गीतिका को हाथो-हाथ ले लिया। अरुणा अंदर से उछलती हुई आई और गीतिका से लिपट गयी "आई एम प्राउड ऑफ़ यू मम्मी ! ! !",और गीतिका के गाल पर एक प्यारा सा चुम्बन किया। फिर वो विजय के गले लग कर खुशी से बोली "यू आर सिम्पली अमेजिंग पापा"। लेनिन इतने में बोला "दीदी,तुम्हारे लिए आज खूब सारा मिल्क केक आया है"। अरुणा ने लेनिन के माथे पर चूमा और फिर वो चारों पड़ोसियोंसे विदा लेकर अंदर जाने लगे। पड़ौसी बच्च्चों से कह रहे थे "बेटा,आपके मम्मी पापा ने अकबराबाद का नाम रोशन किया है पूरी दुनिया में...................आपको भी यही करना है"। धीरे-धीरे पड़ोसी चले गए और विजय और उनका परिवार अपने घर में आ गया। बच्चे मिठाई के डिब्बे लेकर अपने कमरों में और गीतिका और विजय अपने कमरों में कपड़े बदलने चले गए।

शीशे के आगे साड़ी बदलते, और खुद को देखते हुए हुए गीतिका ने कहा "सुबह से हालत ख़राब हो गयी यार ! ! और दिन ऐसा कभी नही होता था। इतनी थकान नही लगती थी। आज तो जैसे चूर हो गयी मै..........बिलकुल जान नही है अब बची हुई"। विजय पीछे से आये और धीरे से गीतिका को पकड़कर, अपनी ठोढ़ी उसके दाएं कंधे पर रख कर,शीशे में देख कर शरारतपूर्ण लहज़े में बोले "जान तो बहुत बची है तुम में...........इस उम्र में भी" और हंसते हुए गीतिका की गर्दन पर प्यारा सा चुम्बन कर दिया। गीतिका ने झटका दिया उनको और हँसते हुए बोली "दिमाग ठिकाने पर है मिस्टर?" । विजय ने मुस्कुराते हुए कहा "अब इतनी सुन्दर, इतनी दिमागदार महिला,।वो क्या बोलते हैं?..........हाँ,............ब्यूटी विथ द ब्रेन,...........जब ऎसी कोई ब्यूटी और वो भी ऐसे कपड़ों में सामने खड़ी हो, तो दिमाग ठिकाने पर कहाँ रहता है मैडम?" गीतिका हँसते हुए आगे बढ़ी और विजय से लिपट गयी। विजय की गर्दन पर धीरे से चूमते हुए कहा "कैसी ब्यूटी, कैसा ब्रेन?.......सब तुम्हारा ही तो दिया हुआ है, वरना इंसानों को तो हमने भी देखा ही हुआ है। एक भी ऐसा रिश्ता नहीं बचा जिसको हमने बर्बाद होते नहीं देखा, लेकिन तुम्हारी वजह से मै और अरुणा आज इस हालत में हैं.......वरना मै तो गंदा खून हूँ"। विजय ने उसका माथा चूमते हुए कहा " अपने नाम के जैसे ही तुमने आकर मेरे जीवन को भी संगीतमय कर दिया गीतिका। मेरी वजह से नहीं हुआ है कुछ भी, बल्कि होता तो ये कि मुझे मारकर मेरी लाश को भी किसी नाले में फेंका होता किसी ने। मै तो कितना कमज़ोर था, मै तो कुछ भी नहीं कर सकता था। तुम्हारी वजह से आज मेरा अस्तित्व है........और गन्दा खून नहीं हो यार तुम........ऐसे बिलकुल न बोला करो "।

वो दोनों एक दूसरे को बड़ी खामोशी से देख रहे थे,और उनके चेहरे एक दूसरे के नज़दीक आ रहे थे।एक-दूसरे की साँसों की गरमी को वो साफ़ महसूस कर रहे थे। विजय और गीतिका एक दूसरे में गुम हो जाना चाहते थे। शीशे के सामने विजय ने गीतिका को छेड़ा था "जान तो बहुत बची है तुम में.........इस उम्र में भी", वैसे तो यह बात उन्होंने मज़ाक और ठिठोली में ही कही थी लेकिन हक़ीक़त में ग़लत तो कहीं से नहीं कही थी। वास्तव में पचपन की इस उम्र में भी गीतिका बहुत सुन्दर दिखती थी। अपना ध्यान तो सभी रखते ही हैं, कि वे अच्छे ही दिखें लेकिन कुछ लोग होते हैं जिनको भगवान बनाता ही सुन्दर है। गीतिका शायद ऐसी ही थी। या फिर ऐसा भी हो सकता था कि उसकी बौद्धिक और चारित्रिक सुंदरता उसकी शारीरिक सुंदरता से मिल गयी हो और इन सबसे उसका सम्पूर्ण व्यक्तित्व बेहद निखर के सामने आता हो। अकबराबाद विश्वविद्यालय उन दिनों उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे भारत के कुछ चुने हुए विश्वविद्यालयों में से एक था जहां पढ़ने के लिए लोग लालायित रहते थे कि किसी तरह दाखिला मिल जाये वहाँ। इसी अकबराबाद विश्वविद्यालय से गीतिका ने फर्स्ट क्लास में बी.ए. किया था जिसके बाद 'समाज कल्याण' विषय में एम.ए. में दाखिला लिया था। फर्स्ट क्लास एम.ए. के बाद उसने इसी विषय में एम. फिल. भी ७५ प्रतिशत अंकों के साथ पास की। इसके बाद इसी संस्थान के विधि विभाग में एल.एल.बी. में दाखिला लेकर वहाँ भी फर्स्ट क्लास पास किया था। इसी बीच उसने अकबराबाद हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू कर दी थी। अपनी पढ़ाई लिखाई के विषय के अनुरूप ही वह किसानों, और मज़दूरों,महिलाओं से जुड़े मुक़दमे काफी लड़ा करती थी। उसकी तरफ से अक्सर इन मामलों में जनहित याचिकाएं दायर की जाती थीं। साथ ही वह अखबारों, पत्रिकाओं आदि में इन विषयों पर जुड़े लेख, आलोचनाएं भी काफी लिखा करती थी। पिछले २० सालों से ज़्यादा वक़्त से वह इन वर्गों के हित में काम कर रही थी। विजय से शादी के बाद इन दोनों ने मिलकर संस्था "अन्नदाता इंडिया" बनाई और इसके माध्यम से किसानों की बेहतरी के लिए गीतिका लगातार सक्रिय रहा करती थी। पति, और बच्चों के बाद भी ये सिलसिला रुका नहीं था बल्कि अपने बच्चों को भी वह किसानों, महिलाओं, मज़दूरों की समाज में अहमियत के बारे में बताती थी और उन्हें इस दिशा में सोचने को प्रेरित करती थी। अरुणा के इकोनॉमिक्स में बी.ए. , एम. ए., एम. फिल. करने के पीछे शायद यही कारण था। प्राकृतिक सुंदरता संभवतः गीतिका की बौद्धिक व कार्यात्मक सुंदरता से मिल गयी थी जिस से वह और भी प्रभावशाली लगती थी। फिर एक कारण तो था ही यह कि विजय को गीतिका हमेशा से सुन्दर लगती थी। और फिर हो भी क्यों नहीं? इतनी शानदार महिला से शादी हो तो कोई भी बेहद खुश ही रहेगा।

विजय और गीतिका के इस बेहद रूमानी पल के बीच अचानक तभी दरवाज़े पर खटकन सुनाई दी, अरुणा ने आवाज़ दी, "मम्मी, पापा,बाहर आइये जल्दी, सरप्राइज़ है आपके लिए"। एक-दूसरे से अलग होकर उन्होंने जल्दी से कपड़े बदले और बाहर आये। बाहर दोनों बच्चे घर का बना केक लेकर खड़े हुए थे। विजय ने आश्चर्य से पूछा "अरे।ये क्या है।ये कब किया?" लेनिन ने बोला "दीदी ने बनाया है एप्पल ओटमील केक, बिना एग का है जिस से आप लोग खा सको"। गीतिका ने अरुणा को बाहों में भर कर चूम लिया और बोली "इसकी क्या ज़रूरत थी पागल? हम तो खुद ही इतनी मिठाइयां ले आये हैं.......ये सब ज़हमत क्यों उठाई बेटा?" अरुणा बोली "ज़हमत नहीं मम्मी,।बड़े मन से बनाया है। यूनिवर्सिटी आज जब पहुंची और फ्रेंड्स ने बताया तो मै ख़ुशी से पागल हो गयी। जो भी टीचर लेक्चर लेने आये, पहले मुझे खड़ा किया कि गीतिका पाठक जी की बेटी कौन है?.......फिर हर टीचर ने मुझे बधाई दी। मुझे इतना अच्छा लग रहा था कि मै क्या बोलूं? ।फिर लास्ट क्लास में पता लगा कि टीचर नहीं आएंगे, तो जल्दी से मै भागी-भागी घर आई और ये सोचते हुए आई कि आज तो मै कुछ बनाउंगी ही"। फिर वो विजय से बोली "पापा,इसमें चीनी भी कम ही रखी है थोड़ा, मैदा बिलकुल भी नहीं है,......आटे और ओट्स का है ये,आप भी खा लोगे, कोई दिक्कत नहीं है"। विजय ने उसे गले लगाते हुए कहा "बेटा,दिक्कत हो या न हो, आज मेरी बेटी ने इतने प्यार से बनाया है केक।आज तो मज़े से खाएंगे ही"। फिर लेनिन चाकू ले आया अंदर रसोई से और गीतिका और विजय ने साथ में केक काटा। अरुणा ने अपने फोन पर फोटो लेकर जल्दी से व्हाट्सएप्प स्टेटस अपडेट किया।

गीतिका ने फिर हंसकर कहा "मिठाई-मिठाई सुबह से चल रही है आज लेकिन दाल-रोटी-सब्ज़ी के बिना काम नहीं चलेगा हम लोगों का, तो मै जल्दी से खाना बनाती हूँ"। अरुणा ने हँसते हुए कहा फिर "मम्मी, दाल और सब्ज़ी बना दी है मैंने,।केवल रोटी बनानी होगी आपको,।मेरी रोटी तो खायेगा नहीं कोई"। "कोई नहीं बेटा, कौन सा रोटी बनाने का प्रमाण पत्र मिलना है तुझे?, रोटी बनाने के लिए भरपूर उम्र पड़ी है अभी.........अभी रोटी की चिंता मत कर। जिसकी चिंता करनी चाहिए अभी, केवल उसी की किया कर " विजय ने कहा।

खाने के बाद बच्चे सोने चले गए, और विजय और गीतिका अपने कमरे में आ गए। बिस्तर के सिरे पर विजय बिलकुल शान्ति से बैठ गए और पीठ के पीछे तकिया लगा ली। अपना चश्मा उतार कर दायीं तरफ बगल वाली स्टूल पर रखा और दाएं हाथ की बीच वाली ऊँगली और अंगूठे से आँखें मींजने लगे। "कितनी बार बोला है कि ऐसे आँखें मींजा मत करो" ये कहकर गीतिका ने उनका हाथ आँख पर से हटा दिया और खुद उनके सीने पर सर रख कर उनसे लिपट गयी। "आँख में चुभन हो रही थोड़ी" विजय ने कहा लेकिन अपने हाथों को आँख पर नहीं लगाया, गीतिका को अपने अंदर समेटे ही रहे। गीतिका ने कहा "तो आईड्रॉप डाल लो", विजय ने कहा "फिर तुमको कैसे देखेंगे?"। गीतिका ने हँसते हुए उनके सीने पर हलकी सी थपकी दी "चुप ही रहो तुम ! !" थोड़ी देर हँसते हुए गीतिका उठी और बोली "थोड़ा बताना,।किस आँख में चुभन है?" विजय ने हंसकर कहा "दोनों"। गीता ने मुस्कुराते हुए बहुत धीरे से, बारी-बारी से विजय की दोनों आँखों को कुछ देर के लिए अपने होंठों के आगोश में रखा। विजय ने गीतिका की गर्दन हलके से चूमते हुए कहा "अब दूर हो जाएगी चुभन,......यही आईड्रॉप चाहिए था"। गीतिका फिर से शर्माते हुए विजय से लिपट गयी।

थोड़ीदेर तक दोनों बिलकुल चुप-चाप इसी तरह बैठे रहे। फिर गीतिका ने सिर ऊपर उठा कर देखा तो विजय विचारमग्न होकर शून्य में ही देख रहे थे। गीतिका ने उनको हिलाया और हँस कर पूछा "अरे ! ! क्या सोच रहे विजय बाबू?", विजय ने गंभीरता से, लम्बी साँस छोड़ते हुए जवाब दिया "सोच रहा हूँ, कि पचीस साल पहले हम कौन थे?और किस हाल में थे?.....फिर क्या-क्या हुआ?........और फिर आज हम यहां हैं। मुझे लगता है कि बड़ा विचित्र भाग्य लिखा था शायद विधाता ने हमारे लिए"। गीतिका हंसते हुए बोली "विचित्र भाग्य ?"फिर वह भी गंभीर हो गयी "विचित्र भाग्य नहीं विजय, मुझे तो लगता है कि असल में हमारा भाग्य ही नहीं लिखा गया था। जब ईश्वर के दरबार में भाग्य लिखा जा रहा होगा न, तो हम दोनों सबसे पीछे ही खड़े होंगे"। विजय ने कहा "नहीं। अगर ऐसा होता तो आज हम उस स्थिति में नहीं होते जिसमे आज हम खुद को पा रहे हैं"। दोनों फिर चुप हो गए। गीतिका फिर से विजय के गले लग गयी और बोली ".....लेकिन एक बात ज़रूर है, जब पति बँट रहे होंगे न, तो मै पक्का बहुत आगे खड़ी होउंगी"। विजय ने हॅंसकर कहा "ग़लतफ़हमी पालने का बेहद शुक्रिया ! !" गीतिका भी मुस्कुराकर बोली "हां तो ठीक है, मुझे ग़लतफ़हमी में ही जीने दो"। विजय ने उसके गालों को चूम कर उसे फिर से बाहों में भर लिया। गीतिका ने फिर शिकायती लहज़े में शरारत करते हुए पूछा "सुबह जब फोन आया था , तो तुमने बताया क्यों नहीं?.......जाओ मै नाराज़ हूँ तुमसे,.....चलो मनाओ मुझे ! !"

अब गीतिका विजय का चेहरा देख रही थी और देख कर बड़ी आनंदित हो रही थी। दरअसल उसके "मै नाराज़हूँ, मुझे मनाओ" सवाल पर विजय का चेहरा एकदम उतर जाता और वो भिखारी जैसे दिखने लगते। ऐसा पिछले २० साल से लगातार हो रहा था। दरअसल विजय ज़रा भी रूमानी नहीं थे। वो इतनी सादगी, और इतने साधारण तरीके से रहते और सोचते-समझते थे कि अपनी प्रेमिका किस बात पर और क्यों रूठ जाती है और रूठी हुई प्रेमिका को मनाया कैसे जाता है, उनको इसका कुछ भी अता-पता नहीं था। उनको ये सब फ़िल्मी बातें लगतीं थीं, जो कि असल में थीं भी, लेकिन जो इत्तेफ़ाक़ से दुनिया की हर लड़की के दिमाग में चलती ही चलती हैं। हर लड़की या पत्नी ये चाहती है कि कोई वजह हो या न हो उसका प्रेमी या पति उसे मनाता रहे, दुलारता रहे। गीतिका भी इसका अपवाद नहीं थी। विजय को इस तरह की कोई समझ नहीं थी, और ये बात गीतिका अच्छी तरह जानती थी। यही वजह थी कि गीतिका अक्सर उनको "मै नाराज़ हूँ, मुझे मनाओ " बोलकर निरुत्तर कर देती थीं। उनको पता था कि ये सामने वाला इंसान इतना दिमाग चला ही नहीं सकता। इसी कारण ये बोलकर गीतिका विजय का चेहरा देखा करती थीं और ये देख कर विजय के खूब मज़े लेती थी। विजय को भी पता था कि ये गीतिका का ब्रम्हास्त्र है जो अक्सर उनके ऊपर इस्तेमाल किया जाता है। विजय ने बेबसी से कहा "यार नाराज़ मत हुआ करो, सुबह जल्दी में थे, देर हो रही थी लेनिन को स्कूल की, तो बता नहीं पाए"। हमेशा की तरह गीता ठहाका लगाकर हँसी और कहा "चलो......माफ़ किया मैंने तुमको, वैसे तुमको शुक्र मनाना चाहिए कि ऐसी बीवी है तुम्हारी, जो इतनी आसानी से मान जाती है"। विजय ने भी हँसकर कहा "ये शुक्रिया मै हर रोज़, हर पल मनाता हूँ"। उसके बाद वो फिर से एक-दूसरे से लिपट गए।

थोड़ी देर बाद गीतिका को अपने बाएं कंधे पर कुछ ज़्यादा वज़न महसूस हुआ। गीतिका ने धीरे से बोला "विजय ! !, विजय ! !" , कोई प्रतिक्रया नहीं मिली। गीतिका समझ गयी कि विजय अपने चिरपरिचित अंदाज़ में, बैठे-बैठे ही सो गए हैं। विजय अक्सर काम करते-करते कुर्सी पर ही सो जाया करते थे। गीतिका ने धीरे से विजय का सिर कंधे पर से हटाया और विजय को बिस्तर पर बिना नींद टूटे लिटाने लगी "हाँ.......विजय,......हाँ, ऐसे........हाँ...... बस, .......सिर थोड़ा नीचे,........बस बस"। गहरी नींद में थे विजय और वो सो गए। गीतिका भी बगल में ही लेट गयी लेकिन उसे नींद नहीं रही थी। थोड़ी देर बाद वह विजय की ओर करवट घूम कर लेट गयी। फिर कुछ देर बाद अचानक उठी और अपनी दाएं हाथ की कुहनी को मोड़कर,सिर को हथेली पर टिका लिया और एकटक सोते हुए विजय के चेहरे को देखने लगी और उनके चेहरे को अपने हाथ से हल्के से सहलाते हुए सोचने लगी "कितना निर्मल, कितना निश्छल है ये इंसान ! इसको इतना सोचने में ही दिमाग पर बल पड़ते हैं कि अगर बीवी बोले "मै नाराज़हूँ, मुझे मनाओ",तो उसे मनाया कैसे जाये। मैग्सेसे जैसा पुरस्कार जीतने की खबर अपने बीवी,बच्चों तक को नहीं बताता जब तक वो ऑफिस और स्कूल नहीं पहुँचते। उसके दिमाग में पुरस्कार नहीं, बच्चे स्कूल के लिए लेट न हो जाएँ,यह चलता है। इतनी बड़ी ख़ुशी पर वो ५ किलो लड्डू मंगवा रहा था, रस मलाई और समोसे के लिए बीवी को बोलना पड़ा।

कपड़े वगैरह पहनने के मामले में भी विजय एकदम फिसड्डी थे। और ऐसे वो आज या कल से ही नहीं, बल्कि अपने यूनिवर्सिटी वाले दिनों से ही थे। बी.ए. में वो गीतिका के बैचमेट थे और गीतिका ने उनको शुरू से देखा था। वो इंसान कुछ भी पहन लेता था, और अब भी काफी हद तक वो वैसे ही थे। कहीं आने-जाने के लिए उनके कपड़े अभी भी गीतिका ही चुनती थीं। शादी के बाद गीतिका को बड़ी मेहनत करनी पड़ी थी विजय के दुनियावी तौर-तरीके बदलने के लिये। लेकिन अपनी सभी इन दुनियादारी वाली कमियों के बावजूद वह गीतिका के लिए दुनिया का सबसे प्यारा, और शायद एकमात्र सबसे अच्छा इंसान था जिस पर भरोसा किया जा सकता था। गीतिका की बर्बाद होती दुनिया में वो एक देवदूत की तरह आया था।

आज जो 57 साल का इंसान यहां सामने इतनी खामोशी से सो रहा है, कभी अकबराबाद यूनिवर्सिटी का बेहद आक्रामक, कट्टर, फायरब्रांड युवा हुआ करता था। फर्स्ट क्लास में बी.ए करने के बाद उसने पोलिटिकल साइंस एंड इंटरनेशनल रिलेशन में प्रथम श्रेणी में एम.ए. किया। फिर इसी विषय से फर्स्ट क्लास एम.फिल. और फिर यूरोपियन स्टडीज़ में पी.एचडी की। पढ़ाई-लिखायी में यूनिवर्सिटी के टॉप क्लास स्टूडेंट्स में एक था विजय और कोई भी ऐब उसे छू तक नहीं गया था। उसके अति साधारण कपड़ेऔर अत्यंत मिलनसार स्वभाव के कारण कोई भी काफी दिनों तक जान भी नहीं पाया कि वह स्थानीय विधायक का लड़का था। अपनी लोकप्रियता के कारण ही दोस्तों के कहने पर बीच में एक साल वह अति प्रतिष्ठित अकबराबाद यूनिवर्सिटी छात्र संघ का चुनाव भी लड़ा और उपाध्यक्ष निर्वाचित हुआ। छात्र संघ के उपाध्यक्ष के तौर पर उसके काम और रवैया ऐसा था कि लोग अध्यक्ष को भी उतना नहीं जानते थे जितना विजय को। वह यूनिवर्सिटी के हॉस्टलों की स्थिति, महिलाओं की सुरक्षा, कमज़ोर वर्ग के छात्रों के हितों को लेकर काफी सक्रिय रहा। यही नहीं, यूनिवर्सिटी के बाहर के किसानों, मज़दूरों, विकलांगों व पेंशनधारियों के मुद्दों को लेकर भी वह बराबर कार्य करता रहा। पी.एचडी में उसे फुलब्राइट छात्रवृत्ति भी मिली जिस पर वह एक साल के लिए अमेरिका भी पढ़ने गया था। लेकिन वहाँ की टॉप यूनिवर्सिटीज़ से मिले मोटी तनख्वाह की नौकरी के ऑफर उसने ठुकरा दिए और वापस भारत आ गया था। यूनिवर्सिटी में छात्र मज़ाक में बात करते थे, कि ऐसी कोई चीज़ बताओ जिसके बारे में विजय को जानकारी न हो। किसी भी विषय पर डिबेट करने में तो जैसे उसका कोई सानी नहीं था, और उसकी भाषण-कला कौशल के तो क्या ही कहने? लेकिन कॉलेज का ये लड़का लड़कियों से हमेशा ६ फ़ीट की दूरी बना कर ही रखता था। किसी लड़की के साथ विजय का नाम कभी सुनने में नहीं आया। बल्कि अगर उसने कभी किसी भी लड़की से कोई भी बात कर ली तो यह यूनिवर्सिटी के छात्रों में खबर बन जाती थी, और विचित्र बात ये थी कि वो लड़की सबको ये बताती फिरती थी कि आज विजय ने उस से बात की है।

शादी के बाद भी विजय ने अपनी आवाज़ समाज के कमज़ोर,बेसहारा तबके के लिए उठानी जारी रखी। उनकी "अन्नदाता इंडिया" किसानों और मज़दूरों के लिए लगातार कार्य कर रही थी। विजय के इस रेडिकल व्यक्तित्व की एक ही कमी थी कि वह नहीं जानते थे कि रुकना कहाँ है, इसी वजह से अपने जीवन में बहुत बड़ी क़ुर्बानियां उन्हें देनी पड़ीं। शुक्र ये था कि उन्हें गीतिका जैसा जीवनसाथी मिला जिसने उनका भरपूर साथ दिया।

आज लगभग २५ साल बाद, इतनी बड़ी कामयाबी पर गीतिका के अंदर विजय के लिए प्यार का सागर उमड़ने लगा, वो उसके चेहरे की ओर धीरे धीरे झुकने लगी। उसके होंठ विजय के होंठ के बिलकुल पास पहुँच गए थे। विजय के शरीर में कोई हलचल नहीं थी। फिर गीतिका ने थोड़ा और झुक कर विजय के होंठों पर अपने होंठ धीरे से रख दिए। विजय अभी भी शान्ति से सो रहे थे। कुछ पलों के बाद गीतिका ने अपने होंठ खोले और विजय के होंठों को बहुत धीरे से अपने होंठों में दबा लिया। विजय अब भी सो रहे थे।

कुछ समय बाद गीतिका ने अपने होंठ विजय के होंठों से अलग किये। विजय को देखते-देखते गीतिका का दिमाग कुलांचे भरता हुआ पीछे की तरफ जाने लगा, और सोचने लगा इस सफर के बारे में जो इस ज़िंदगी ने उनसे करवाया है। अपनी मर्ज़ी से तो ऐसा सफर कभी कोई नहीं करता, लेकिन अपनी मर्ज़ी से ये सफर किया जाये ऐसा कोई विकल्प भी तो नहीं होता।

गीतिका सोचने लगीं, अपने पुराने शहर अकबराबाद के बारे में...... २५ साल पुराने अकबराबाद के बारे में......जैसे बस कल ही की बात हो सब.........


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