arun gode

Tragedy

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arun gode

Tragedy

शरारत

शरारत

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एक युवा दसवीं बोर्ड कि परीक्षा उत्तीर्ण होने के बाद अपनी किस्मत अजमाने, सफलता की बुलंदीयों को छूने के विचार से पास के जिला स्तर के कनिष्ठ महाविद्यालय में 11 वीं में अडमिशन लेता है। यह कनिष्ठ महाविद्यालय, सायंस महाविद्यालय का ही भाग था। भव्य सायंस महाविद्यालय देखकर अंदर से वो डरा हुआ था। वह उलटे बाँस बरेली को, कार्य करने जा रहा था। उसकी आर्थिक परिस्थिति बहुत अच्छी नहीं होने के कारण रोजाना अपने गांव से रेलवे से जाना-आना करता था। सफलता पाने के लिए रोज एड़ियाँ रगड़ रहा था।  

    उस जमाने में बहुत कम विद्यार्थी बाहर पढ़ने जाते थे। लेकिन एक दुबली-पतली, गोरी-चिट्टी, साधारण ऊंचे कद की लकड़ी उसके गांव के और आगे के गांव से कुछ प्रशिक्षण लेने शहर में आना-जाना करती थी। रोज उसके साथ देखा-देखी हो जाती थी। वो लड़का उम्र में उससे कफी छोटा था। अभी तो उसके दूध के दाँत भी नहीं टूटे थे। कुछ शरारती, मनचले लड़के उसके अगल-बगल में डेरा डाला के शाब्दिक छेड़खानी करते थे। वैसे वह लड़की बहुत फ्राँक थी। कुछ लड़के उसे बात भी कर लेते थे। वह पहिले से ट्रेन में सवार होकर आती थी। इसलिए उसके पास बैठने के लिए जगह रहती थी। वो लड़का दिखने पर उसे बैठने के लिए आँखों से इशारा कर देती थी। वो उसके कभी सामने तो कभी बगल में बैठ कर अपनी किताब या होमवर्क किया करता था। यह उसका दैनिक कार्यक्रम था। कभी- कभी वह कुछ बातें या पुछ -ताछ कर लिया करती थी। इस तरह वह उसकी एक प्रवासी सहेली बन चुकी थी। दोनों एक ही नाव में सवार थे। 12 वीं बोर्ड में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए वो बहुत जीन-जान से मेहनत कर रहा था। क्योंकि अच्छे अंक प्राप्त होने पर ही उसे इंजीनियरिंग में प्रवेश मिल सकता था।  उलटी गंगा पहाड़ चली, उसने असाध्य कार्य करने की ठान ली थी। उस वक्त सिर्फ गिने-चुने सरकारी ही इंजीनियरिंग कॉलेज हुआ करते थे।  

    लेकिन बहुत ज्यादा शारीरिक श्रम होने के कारण उसकी अंतिम परीक्षा के समय, शिकारी के कुत्ते की तरह प्रकृति खराब चलने लगी थी। कुछ दवा-दारु करके अपना स्वास्थ्य संभालने का वो प्रयास कर रहा था। स्वास्थ्य पिछले दो साल से ही खराब चल रहा था। ऊपर से पढ़ाई, प्रायोगिक भी करना पड़ता था। खाने-पीने में कोई नियमितता नहीं रही थी। शायद किसी बड़ी बीमारी की और बढ़ रहा था। इलाज करने के बावजूद भी स्वास्थ्य साथ नहीं दे रहा था। ओखली में सिर दिया तो मूसल क्या डरना, वह अपने मंजिल की और बढ़ना चाहता था। अंतिम परीक्षा के वक्त स्वास्थ्य ने साथ नहीं दिया था। कैसे तो भी इंतिहान पूरे कर लिए थे। उसने परीक्षा देकर अपना सिर ओखली में दिया था। । नतिजा अपेक्षित ही था। किसी इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश नहीं मिला था। अच्छे डॉक्टर से बाद में इलाज करने जाने पर उसने किसी बडे अस्पताल में जाकर दिखाने को कहा था। वहाँ जाने पर उसे कई टेस्ट करने को कहा गया था। टेस्ट रिपोर्ट देखने पर डॉक्टरों के समूह ने उसे इलाज के लिए भर्ति होने को कहाँ था। वहाँ उसका इलाज किया गया था। छुट्टी देते समय डॉकटरने साल भर कम-से कम बहुत परिश्रम न करने की सलाह दी थी। यह सुनकर उसके पाँव तले की जमीन खिसक चुकी थी। उसे अभी विश्राम की बहुत जरूरत थी। पढ़ाई से थोड़ा ध्यान भटक चुका था।

    उसने फिर प्रथम वर्ष सायंस स्नातक में प्रवेश लिया था। अभी परिस्थितियां बदल चुकी थी। उसके साथ उसके पुराने मित्रों ने भी अडमिशन कराया था। कुछ और भी विद्यार्थियों ने 12 वीं सांयस में अँडमिशन कराया था। एक और एक ग्यारह होते हैं, अभी हमारा जाना-आना करने वाला एक बडा सा ग्रुप बन गया था। सभी लड़के -लड़कियां अपना ग्रुप बनाकर आना-जाना किया करते थे। अभी उसकी उस दीदी से बहुत कम मुलाकात, ना के बराबर होती थी। वो जाना-आना करने वालों में कॉफी वरिष्ठ पुराना, अनुभवी विद्यार्थी था। इसलिए समूह में और अन्य समूह में भी उसकी अच्छी साख थी। वो डाल-डाल चलता। उसके साथी पात-पात, अन्य चलते थे। जब कभी गाडियां लेट चलती, तब बहुत समय रहता था। बहुत अनुभव होने के कारण वो ऊंची -ऊंची फेंकता था। अपने मुंह मियाँ मिट्ठू बनता था। उन्हें भी समय काटना रहता था, उसे भी समय बिताना रहता था। वे, उसकी बातें बड़े चाव से सुनते थे। वे उन बातों, चुटकुलों का मजा लेते थे।

     एक दिन हम सभी ग्रुप के लड़के एक साथ प्लाटफार्म पर खड़े थे। महफिल जमी थी क्योंकि हमारी ट्रेन काफी लेट चल ही थी। बाते करते, सभी ऊंची-ऊंची बातें उसके साथ फेंक रहे थे। बड़ी -बड़ी साहस की बातें सुना रहे थे।  हम सब देख रहे थे की एक लड़की बहुत देर से किसी अंजान लड़के से हंस-हंस कर बातें कर रही थी। वो उसे जानता था कि वह, वही दीदी है। लेकिन उसके बारे में कभी किसी को कुछ नहीं बताया था। बातों-बातों में उसने हँसी –मजाक में कहाँ, अरे तबसे बहुत फेंक रहे हो। किस में कितना दम हैं, अभी अजमाते है। जो यह शर्त जीत जाएगा उसे उसके तरफ से दालवडे, जीतने चाहेगा, खिलाऊंगा!। दोस्त कहने लगे, करना क्या है। उसने कहा सामने जो एक लड़की, एक अच्छे खासे तगड़े लड़के के साथ सामने वाले प्लाटफार्म खड़े है। उनके बीच में से जाना है। उस लड़के को देखकर यह साहस करने की कोई भी हिम्मत नहीं जुटा रहा था। उन्हें डर था कि लड़की के साथ लड़का भी उसे बुरी तरह से पिट सकता है। सब डर गये थे। कोई भी यह शिव धनुष उठाने को तैयार नहीं था। वो अपने दोस्तों के उड़े हुये चेहरे को देखकर मंद-मंद हंस रहा था। उसकी हंसी के कारण वे आग बबूला हो रहे थे। फिर भी उन्होंने एक दांव फेंका कि अगर वो ये कर देता है। तो हम सब उसे जीतने चाहे उतने दाल-वडे खिलायेंगे। उन सभी को पक्की उम्मीद थी कि ये ऐसा नहीं कर पायेगा !। और गलती से कर भी लिया, तो वो लड़का इसको बुरी तरह पिटेगा कि यह दाल-वडे तो क्या कुछ खाने के लायक ही नहीं रहेगा। वे सभी मुंगेरीलाल के हसीन सपने देख रहे थे।  वे सोच रहे थे कि वो अक्ल के पीछे लठ लिए फिरना चाहता है।

        उसने यह शिव धनुष उठाने की हामी भरी थी। वो एक-एक करके सभी पटरियों के ऊपर से छलांग लगा कर अपनी मंजिल को मुकम्मल करने की और बढ़ रहा था। जैसे ही वो दीदी की और अपने कदम बढ़ रहा था। उसे देखकर बीच -बीच में वह स्मित हास्य कर रही थी। दीदी के स्मित हास्य कारण उसके साथ वाला लड़के ने उसे भी दो-तीन बार उधर आते हुये देखा था। शायद वो समझ गया कि वो इसे अच्छे से जानती है। लेकिन इधर मेरे दोस्त सोच रहे थे कि ये आधी दूर तक जाएगा, और लौट आयेगा। लेकिन जब मैं सामने वाले प्लाटफार्म चढ़ा। तो उनका आत्मविश्वास डगमगाने लगा। उन्हें लगा ये तो अब बुरी तरह से पिटने वाला है। उस जमाने में मोबाइल नहीं थे। अगर होते तो वे इस तैयारी में थे कि जनाब का पिटते हुये वीडिओ बनाते। लेकिन जैसे वो दीदी के करीब पहुंचा। उसने दीदी से कहा। अरे, आप तो ईद का चाँद हो गई। दीदी बहुत दिन बाद उसे देख रही हो। उसने सिर हिलाकर बोला, तो क्या मुझसे इतने कष्ट लेकर मिलने आये हों, ऐसे ही समझो दीदी। लेकिन दीदी मैंने अपने दोस्तों से शर्त लगाई है। कि वो आप दोनों के बीच में से जा के बताऊंगा ! तो उसने कहाँ चले जाओ, और जीत लो अपनी शर्त। वो, उन दोनों के बीच में से गया।  और अपने प्लाटफार्म पर सही सलामत वापिस आया था। उसने और दोस्तों ने मिल के खूब दाल वडे खायें और उन्होंने उसे खूब सराहा था मानो उसने उलटी गंगा बहाई है। दूसरे दिन दीदी ने कल का पूरा वाकया अन्य सब आना-जाना करने वाली लड़कियों को बताया था। उन लड़कियों ने और उसके दोस्तों ने पूरे कॉलेज में ढिंढोरा पिट दिया था। उसकी एक साहसी विद्यार्थी की प्रतिमा बन चुकी थी। उसे जानने वाली सभी लड़कियां अचरज में पड़ गई थी। ये इतना सरल लड़का ऐसा कैसे कर सकता है। उसके बाद कुछ लड़कियां उससे आँखों-आँखों में खेलने लगी थी। उन्हें लगा था कि अभी वो जवान हो चुका है। लोहा गरम है। इश्क के फांसे फेंके जा सकते है। अभी हम सब उसके साथ शरारत भी कर सकते है।

     लेकिन उसे उस दिन बहुत बुरा और यातना हुईं थी। जब उसे पता चला की दीदी, अपने गांव से, चलते गाड़ी में बैठने का उसका प्रयास में असफल होने से वह नीचे पटरी में खिसक गई थी। उस भयानक हादसे में उसकी दोनों पैर कट गये थे। वह एक हंसती-खेलती, मनचली, खुले दिमाग वाली लड़की थी। जिसका बहुत बड़ा सपना था। वो अपना सपना पूरा करने के काफी नजदीक पहुंच गई थी। अस्सी के दशक में वह एकमात्र लड़की थी जो कुछ हासिल करने के लिए आना-जाना करती थी, जिंदगी के बीच सफर में ही वह अपाहिज हुई थी। प्रकृति ने एक सक्षम लड़की, जो आगे चल कर कई अपाहिजों की मदद कर सकती थी। उसे ही असक्षम बना दिया था। उसने तो उसके साथ हँसीं-मजाक वाली शरारत की थी। लेकिन किस्मत ने जो शरारत दीदी के साथ की थी। ऐसी मजाक या हादसा कोई फिर किसी दुश्मन के साथ में भी ना करे !।



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