सही फैसला

सही फैसला

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आज नन्हे जय ने ऊषा से वो सवाल पूँछ ही लिया, जिसके बारे में छह साल पहले उसकी सहेली रागिनी ने आगाह किया था। 

ऊषा चौबीस साल की थी। स्नेह सदन में पल कर बड़ी हुई थी। माता पिता कौन थे, उसे नहीं पता था। बस स्नेह सदन के उसके साथी और सिस्टर मारिएटा ही उसके लिए सब कुछ थे। पर मन के एक कोने में अपने परिवार की चाहत छिपी हुई थी। 

ऊषा ने कुछ ही दिनों पहले एक स्कूल में प्राइमरी टीचर के तौर पर काम करना शुरू किया था। इस नौकरी के कारण स्नेह सदन भी छूट गया था। वह एक वर्किंग वुमन हॉस्टल में रहती थी। 

स्कूल में काम करते ‌हुए छह महीने बीत गए थे। एक दिन उसने स्टाफ रूम में एक नई सूरत देखी। उसकी सहेली रागिनी ने बताया कि उसका नाम अभय है। वह पीटी टीचर के तौर पर स्कूल में ‌आया है। 

अभय का व्यवहार बहुत ही दोस्ताना था। उसे सबसे जान पहचान बनाते देर नहीं लगी। पर ऊषा से उसकी जान पहचान जल्दी ही दोस्ती में बदल गई। 

किसी के साथ के लिए तरसती ऊषा के लिए अभय की दोस्ती किसी तोहफे की तरह थी। ऊषा इस तोहफे को पाकर बहुत खुश थी। वक्त के साथ धीरे धीरे ये दोस्ती प्यार में बदल गई।

ऊषा अक्सर अभय के घर जाकर मिलती थी, जहाँ वह किराए पर अकेले रहता था।‌ वहीं पर ऊषा ने उसे दिल में दबी अपने परिवार की इच्छा भी जताई थी। 

अभय ने उससे कहा था कि वह भी उसके साथ जीवन बिताना चाहता है। पर उसे अपने परिवार वालों को समझाने के लिए कुछ वक्त चाहिए। ऊषा उस वक्त का इंतज़ार करने लगी जब अभय अपने घरवालों को उनके रिश्ते के लिए राज़ी कर लेगा। 

पर एक दिन उसे पता चला कि उसकी कोख में जीवन ने सांस लेना शुरू कर दिया है। अब वह और नहीं रुक सकती थी। उसने अभय से बात की। अभय ने उसे जल्द ही विवाह का आश्वासन दिया। वह अपने घर चला गया।

ऊषा अभय के लौटने की राह देखने लगी। पर कई दिन हो गए। अभय लौट कर नहीं आया। उसका फोन भी नहीं लगा। करीब पच्चीस दिन बाद उसका इस्तिफा स्कूल के प्रिंसिपल को मिला। 

ऊषा को पता चला कि अभय पहले से ही शादीशुदा था। रागिनी ने उसे समझाया कि वह उसके धोखे के खिलाफ आवाज़ उठाए। पर अभय के धोखे ने उसका मन खट्टा कर दिया था। उसने कुछ ना करने का फैसला किया।

रागिनी ने उसे समझाया कि यदि अभय के साथ उसकी शादी नहीं हो सकती है तो फिर बच्चे को जन्म देने की ज़रूरत नहीं। बिना पिता के बच्चे को समाज चैन से जीने नहीं देगा। कल जब तुम्हारी संतान अपने पिता के बारे में पूँछेगी तो क्या बताओगी उसे।‌

लेकिन ऊषा बच्चे को गिराना नहीं चाहती थी। भले ही अभय ने उसे छोड़ दिया था। पर अपनी कोख में पल रही संतान से उसका कभी ना टूटने वाला नाता जुड़ गया था। उसने बच्चे को जन्म देने का निर्णय लिया।

जय पाँच साल का हो गया था। उसने जब अपने पिता के बारे में पूँछा था तो ऊषा ने यह कह कर टाल दिया था कि वह भगवान के पास चले गए हैं। पर आज स्कूल से लौट कर उसने पूँछा।

"मम्मी पापा का नाम क्या था ? उनकी फोटो कहाँ है ?"

ऊषा ने फिर बहलाने का प्रयास किया तो वह बोला,

"मेरे क्लास में रिंकी है। उसके पापा भी भगवान के पास चले गए हैं। पर उसके पास अपने पापा की फोटो है। उसे नाम भी पता है।"

ऊषा ने जय को जैसे तैसे समझा कर सुला दिया था। पर अब उसे जय के जिज्ञासू मन के लिए सही उत्तर ढूंढना था।

ऊषा उलझन में अवश्य थी। किंतु उसे जय को जन्म देने का अपना फैसला गलत नहीं लग रहा था। यदि जय ना होता तो वह अभय के धोखे के गम में घुल कर खत्म हो चुकी होती।


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