शहर बदला इश्क़ नहीं
शहर बदला इश्क़ नहीं
बारहवीं की परीक्षा एकदम सर पर चढ़ा हुआ था।
मात्र दो ही महीने बचे थे... जनवरी महीना चल रहा था और बारहवीं की अंतिम परीक्षा मार्च में होनी थी .. नंदिता और अक्षम प्रेम की डोर में इतने करीब से बंध चुके थे जितने की परीक्षा की तिथि सुनते ही बारहवीं कक्षा में उत्तीर्ण होने हेतू पढ़ने वाले के साथ साथ वो विद्यार्थी भी किताबों और नोट्स से चिपक जाते हैं जो क्लास करने वक्त में भी कुछ अलग ही क्लास ,क्लास में बैठे -बैठे करते हैं।
दोनों के दोनों पढ़ाई के मामले में विदूर थें यहीं वज़ह भी थी कि दोनों इतने करीब हों पाएं थे ।साल भर कोचिंग सेंटर और काॅलेज में होने वाले साप्ताहिक टेस्ट परीक्षा हों या महीने की टेस्ट परीक्षा या फिर कोई अध्याय खत्म होने के बाद की टेस्ट परीक्षा हर जगह यही दोनों का बोलबाला था । कभी अक्षम प्रथम अंक लाता तों कभी नंदिता प्रथम अंक लाती , दूसरे अंक कभी कभार ललित ले आता था लेकिन ललित तीसरे स्थान पर अधिक रहता था । पहले और दूसरे इन दोनों के हाथ से जल्दी से कभी छूटते नहीं थे ।ललित जब भी नंदिता से बातें करता.. नंदिता अपनी हरी अदाओं और होंठों की मुस्कान के साथ जबाब देती और उनसे भी बातें कर लेती ..कभी पढ़ने के लिए ललित नोट्स मांगता ...नंदिता दोस्त की भावनाओं से नोट्स दे देती।
जितनी नजदीक परीक्षा की तिथि आ रहीं थीं उतनी ही नजदीक आकर प्रेम में नंदिता और अक्षम डूबना चाह रहे थे। अब मोबाइल फोन से बातें होते-होते अब शहर के पार्क में घूमने और होटल में चाय ,काॅफी पीने की लालसा जाग रहीं थीं।अक्षम एक शाम काॅफी पर शहर के सबसे नामी काॅफी कैफे पर बुलावा दे ही दिया...अब नंदिता भी कैसे मना कर सकती थी फिर भी एक शर्त के साथ हां में हां मिलाते हुए बोली अभी ठंड का समय है और मेरा हाॅस्टल शाम छः बजे के बाद लाॅक कर दिया जाता हैं इसलिए ध्यान रहे शाम चार बजे तक होटल आ जाना हैं ।हम्म!! जरूर, कहकर अक्षम ने फोन रख दिया ।इतने उत्सुक थे दोनों कि चार कि जगह अक्षम शाम साढे तीन बजे और दस मिनट बाद ही यानि तीन चालीस में नंदिता भी पहुंच गई ।दोनों अंदर होटल की तरफ गए ..अंदर प्रवेश करते ही बैठ ही रही थी वहां पे लगी टेबल पर कि एक लडका नंदिता की ओर देखते हुए फोन निकाला और किसी को फ़ोन लगाते हुए बोला भाई - भाई!!तेरी गर्लफ्रेंड किसी लड़के के साथ काॅफी पर आयी हैं..सुनते ही अचानक से सारे सपने जैसें एकझटके में टूटकर बिखर गए हों वैसी ही नज़रों से" धोखेबाज " इशारें में अपने गुस्से भरी नजरों से नंदिता को बिना पूछे- समझे कह ही दिया था अक्षम ने, बस सिर्फ मुंह से आवाज नहीं निकाला था ..लेकिन नंदिता एकदम अवाक और हैरान थी।
धमकियां पर धमकियां दिए जा रहे थे ना नंदिता को समझ आ रहा था और ना ही अक्षम को!!ना जाने वो कौन था जिनका जिक्र करके वो लड़का अक्षम की ओर उंगली करके बता रहा था आज तेरा खैरियत नही.. "नंदिता खुद ना समझ पा रही थी क्योंकि अक्षम से पहले कोई बॉयफ्रेंड था ही नहीं !!!
ये सब बातें मन में घुम ही रहा था नंदिता के कि तबतक आठ दस लड़कों की टीम और वहां पहुंच गयी ...उसे देख के नंदिता का एक पल के लिए होश उड़ गया क्योंकि वो लड़का ओर कोई नहीं ललित था..ललित के अंदर आते ही उनके टीम के लड़के ने अक्षम को घेर लिया..
उनका काॅलर पकड़ने ही वाला था उन लोगों ने..... कि नंदिता ने ललित के पीछे से उसका शर्ट खींचते हुए एक चाटा लगाते हुए थोड़ी ऊंची आवाज में.....ठहरो अगर कोई अक्षम को छू भी लिया तों समझ लेना मैं एक को बकसूंगी..और तुम्हे.. ललित किस एंगल से लगा कि मैं तुम्हारी गर्लफ्रेंड हूं और तुमसे प्यार करती हूं ..मैंने तो कभी तेरे बारे में सोचा तक भी नहीं हूं फिर तू सोच कैसे लिया..सभी लड़कों के बीच ललित का बेइज्जती हो रहा था इसलिए खुद को बचाने के लिए सभी लड़को को लेकर ललित निकल गया क्यूंकि ललित एकतरफा प्यार था.. और सबको बताया फिरता था हम नहीं नंदिता मुझमे मरती हैं। ......
अक्षम भी नंदिता को बिन कुछ कहे जाने लगा...
नंदिता पीछे-पीछे भागती हुई अक्षम के दाहिने हाथ को पकड़ कर खींचते हुए मुस्कुराते हुए बोली -
"मैं नहीं जाऊंगा क्या ? बिन कहें ही जाने लगें और अभी तेरे काॅफी वाला ख्वाहिश पूरा कहां हुआ साहब!!""मुझे नहीं कोई ख्वाहिश करनी है तेरे साथ ..ना जाने कहां कहां मुंह फेर चुकी हैं ...आज से ना तू मुझे काॅल करेगी ।"नंदिता को बिन समझे ही अक्षम ने कितना कुछ सुना दिया गुस्से में ... और अक्षम अपने हाथ को नंदिता के हाथ से छुड़ाते हुए वहां से निकल गया।
उसके बाद ना कभी दोनों ने बात करने की कोशिश की। .....
साल बीतते गए अक्षम बारहवीं के बाद इंजिनीयर की तैयारी में निकल गया और नंदिता मेडिकल के दूसरे शहर। ..
एक शाम अपने ही शहर के बाजार में नंदिता की सहेली से भेंट अक्षम को हो जाता हैं उसी क्रम में वो सारी सच्ची घटनाये बताते हुई बोली आज भी दूसरे शहर में रहकर याद करता है तुम्हे। .. अगर मेरी बातो को सही मानते हो तो प्लीज एक बार इस नंबर में कॉल जरूर करना।
"नंदिता का फ़ोन नंबर देते हुए मीनू (नांदिया का सहेली ) बोली "
फ़ोन में अक्षम का नंबर देखकर नंदिता खुशी से इतना रो पड़ी जैसे अचानक कोई जयदा दिन से बाँध नदी में खुल गया हो.........