Prahlad mandal

Others Children

4.0  

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ये आपका हैं तो वो भी आपका हैं

ये आपका हैं तो वो भी आपका हैं

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रमणी जल्दी करो जरा आज मुझे बहुत काम हैं ऑफिस में, और हां आज हो सकता हैं टिफिन टाइम देर हो जाय तो निक्की को लेते आना स्कूल से। 

" सुन्दर अपनी पत्नी से नाश्ते मांगते हुए कहता हैं। "

हाँ जी आ रही हूँ बस !! मैं छत पे कपड़े पसार के। 

"बाथरूम से निकलकर छत की सीढ़ियों में चढ़ते हुए रमणी ने सुन्दर से कहा "

सामने खड़ा निक्की बैग को पीठ पैर टांगकर जुते की डोरी की और इशारा करते हुए सुन्दर से कहता हैं,

'पापा जुते की डोरी बाँध दीजिए ना नहीं बांध पा रहा हूँ ' 

बात बात पर सुन्दर को गुस्साने का आदत था और रमणी उनके बात को काटते हुए कपड़े पसारने छत की ओर चली गयी थी इसलिए सुन्दर अपने आदत से इन छोटी सी बात पर भी गुस्सा हो गए थे।  वो तबतक लौट कर आती इससे पहले बस एक मौका मिल ही गया निक्की को टोकते ही उनको। 

और इस सुन्दर नाम में बहुत सारे असुंदर गुण भी मौजूद थे और होता तो सबके ऊपर ये असुंदर रूप बस सब जगह जगह पर उपयोग करते हैं लोग लेकिन इनके लिए सब जगह एक जैसा ही था 

      सो उसने निक्की का डोरी बांधने से इनकार तो नहीं किया लेकिन बांधते बांधते अपना एक दो प्रवचन { गाली } सुना भी दिया। 

जितना स्पीड से निक्की को वो गाली याद हो गया जैसे की मास्टर उनको होमवर्क में दिए हो , मन ही मन तो सोच ही रहा था की अपने बाप को ही दे दे फिर उन्हें प्रसादी भी मिल सकती थी इसलिए निक्की शांत ही खुद को रखना सही समझा। 

रमणी भी तबतक नाश्ते को लेकर आ गयी थी लेकिन सुंदर तो यहाँ और बड़ा असुंदर रूप को दिखाते हुए उनको भी गाली देकर घर से निक्की को लेकर निकल गए। 

और उनके हाथ में पकड़े नाश्ते के डिब्बे को भी मना कर दिया। 

रमणी को क्या पता की इतनी छोटी सी बात पर रूठ कर बिना नाश्ते लिए ही चला जाएगा और वो खुद को दोषी ठहराते हुए रोने लगी की आज मेरी ही वजह से नाश्ता नहीं ले गए। 

दोपहर का समय हो चूका था और वो खुद को कोष कर रो ही रही थी फिर उन्हें सुंदर ने कही हुई वो बात याद गयी , झट पट अपने आसुंओ को अपने आँचल से पोंछी और निक्की के स्कूल की और चल दिए। 

सारे बच्चे की छुट्टी भी हो चुकी थी हर जगह नजर फेर कर देख ही रही थी , अर्चना मेम ने रमणी को आवाज देते हुए कही 

" प्रिंसिपल ऑफिस में आपका निक्की हैं आप वही चल जाइये पता नहीं क्या काण्ड कर दिया है उसने सर पूरा गुस्सा रहे थे " 

अर्चना मेम रमणी के ही मोहल्ले की रहने वाली शिक्षिका हैं और उस स्कूल के साथ साथ निक्की को होम टूशन भी देती हैं इसलिए रमणी को पहले से पहचान रही थी। 

       रमणी अर्चना की बातें सुनकर प्रिंसिपल ऑफिस के पास खड़ी ही थी की निक्की का नजर रमणी पर पड़ते ही आवाज दिया

" मम्मी !" 

 इतना सुनते ही प्रिंसिपल सर का रमणी को अंदर की बुलाये। बगल में लगी कुर्सी में बैठने को कहा 

और बिलकुल सबके सब शांत हो गए। 

जिले की सबसे टॉप स्कूल में किसी भी महिला को उनके बच्चे की गलती के कारण डाँटना प्रिंसिपल सर को अच्छा नहीं लगा इसलिए रमणी को इतना कहा की कल निक्की अपना पिताजी के साथ आता हैं तो ही इनका स्कूल में प्रवेश होगा अन्यथा नहीं। 

इतना कहकर प्रिंसिपल सर ने उन दोनों को जाने को कहा। 

एक ही व्यथा रमणी के मन में रास्ते में चलते वक़्त सत्ता रही थी की पता नहीं ये कौन सा काण्ड स्कूल में कर दिया जो स्कूल में प्रवेश बंद करने की बात प्रिंसिपल सर ने कर दी और तो इसको पूछने से भी नहीं बता रहा हैं। 

रमणी तो एकदम से इस व्यथा में फंसकर अपना भूख भी भूल गयी सुबह बाप ने नखरे दिखाए थे और दोपहर में बेटा उलझन खड़ा कर आये थे। 

बीच में रमणी झेल रही थी। 

शाम के करीब आठ बज गए थे और सुंदर भी ऑफिस से आ गए। 

दिन भर की थकान ने गुस्से भी सुबह का पिघला दिए थे लगभग लगभग। 

रमणी कुछ कहती इससे पहले निक्की आकर ऐसे बोले जैसे कोई गुनाह ही नहीं हो उनका 

" पता हैं पापा कल आपको प्रिंसिपल सर बुलाये हैं , नहीं तो मुझे क्लास से कल भगा देंगे "

"लेकिन हुआ क्या हैं!!!! "सुंदर ने निक्की से पूछा 

"मुझे नहीं पता लेकिन बुलाये हैं आपको " निक्की ने स्पष्ट कह दिया। 

रमणी से पूछना कोई मतलब ही नहीं लगा सुंदर को इसलिए नहीं पूछा। 

सबने खाना पीना खाया और सो गए 

अगली सुबह सुंदर निक्की के स्कूल पहुंचकर प्रिंसिपल सर के ऑफिस गए वहां उनसे मैटर समझने की चाह ही रहे थे की सामने बैठे प्रिंसिपल सर गुस्से से आग बबूला होकर सुंदर को कहने लगे.. 

" आज तक मेरे स्कूल के क्लास रूम में कोई विद्यार्थी ऐसा शब्द का उपयोग नहीं किया होगा जो आज आपके बेटे ने पूरे क्लास रूम में एक शिक्षक को जो गाली कह दिया उनके हाथ उठाने से यही संस्कार हैं आपके बेटे में पूरी क्लास में बेइज्जत कर दिया एक शिक्षक को "

 इतनी बातें कहने के बाद प्रिंसिपल सर के गुस्से का आग कुछ कम नजर आ रहे थे। 

 सुन्दर भी कुछ कम था नहीं उसने भी प्रिंसिपल सर को लपेटे में लिए कह दिया

" संस्कार की बात हमको कह रहे है दो साल से यही पढ़ा रहा हूँ अपना बच्चा को आप अगर संस्कार दिए रहते तो मुझे बुलाना नहीं पड़ता अभी।"

प्रिंसिपल सर मन ही मन सोच ही रहे थे की ये ही जब बत्तमीज है तो जायज हैं इनका बच्चा होगा ही लेकिन स्पष्ट नहीं कर पा रहे थे। 

तब तक सर कुछ बोलते उनसे पहले वही घर वाला गाली जो उसने निक्की को जुते पहनाते दिया था वही गाली कहते हुए सुंदर निक्की को कह रहा था ,

" कहाँ से सीखी तुमने गाली गलौज करना। ...."

अभी जो शुरुआत में कही इनसे ये कोई भगवत गीता में लिखा हुआ श्लोक नहीं हैं , और ये आपका बेटा हैं और संस्कार अभिभावक से ही आते हैं। विद्यालय में शिक्षा ग्रहण कराया जाता हैं संस्कार आपको ही देना होगा। 

प्रिंसिपल सर ने समझाते हुए कहा सुन्दर को कहा। 

सुंदर को प्रिंसिपल सर ये बातें समझ आ गया की " ये आपका हैं तो वो { संस्कार } आपका ही हैं "

और शर्मिंदगी से मौन ही रहना सही समझा सुंदर ने..

इसलिए अपने बच्चों के सामने उच्च नीच { गाली गलौज } बात मत करें क्योंकि ये सब बातें बच्चे को जल्द ही याद में रह जाते हैं जिसके वजह से आपको सर झुकाना ना पड़े। 

धन्यवाद। .....



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