अंतिम छोर
अंतिम छोर
अंतिम छोर ही दिख रहा था रास्ते का शायद नजदीक से। निकलने की वज़ह से ये रास्ता चुनना पडा था।
बिल्कुल घने जंगलों के बीच हम और केशव खड़े थे। और रातें भी बहुत अंधेरी हों चुकी थी ।आगे का रास्ता धुंधला इतना था कि कुछ भी नहीं के बराबर दिख रहा था।
तभी तो मेरे पास मोबाइल भी नहीं था कि टाॅर्च उसी से भी जला लेते,लेकिन हां केशव के पास एक नोकिया सेट का सबसे पुराना माॅडल वाला फोन तो था लेकिन जिसमें सांप वाला गेम चलता था और वो गेम खेलकर चार्ज खत्म कर दिया था ,स्विच ऑफ खोलता पांच मिनट जलता फिर ऑफ.. फिर खोलते फिर ऑफ ...
अब तो वो फोन भी दम तोड़ दिया...
इस अंधेरे में फोन के सांसे रूकने के बाद अब हम दोनों के भी सांसें अटकने ही वाला था
इतना घनघोर जंगल और अंधेरी रात डर भी माहौल ...
मुसीबत तों पहाड़ बनकर खड़ा था वो भी बिन पत्थरों के
एक ही आवाज था वो भी किसी जानवर का ही लग रहा था जो पहली बार सुने हुए थें मन तो था कि जाकर देखने की कोशिश करें कौन सी जानवर का हैं क्योंकि जिस रास्ते से आये थे उधर से भी आवाज हों रही थी।
लग तो रहा था कोई बड़े जानवर की ही आवाज हैं और सुनकर हालत ,बेहालत होते जा रहा था।
फिर हमने सोचा ना अगर लग रहा हैं हमले करने वाले जानवर निकला और देखने जाएं तो मुसीबत बढ़ सकती हैं और ऊपर से मुसीबत ये जंगलों में फंसकर मुसीबत में पहले से थे...
फिर उन्हीं अंधेरी रात में आगे चलने का फैसला किया हमने और अधेरों में चल दिए.. आखिरकार हमें एक रास्ता मिला और हमें जहां पहुंचना था पहुंच भी गए।
( मुसीबत और परेशानी हर किसी के जिंदगी में कुछ ना कुछ रहती है लेकिन फिर भी जहां लग रहें हों कि यहां अधिक मुसीबत हैं वहां से निकल लेना सबसे उचित होगा क्योंकि आगे की मुसीबतें काट लोगे तो मंजिल जरूर मिलेगी लेकिन पीछे की पड़े मुसीबत के बारे में सोचोगे तो उलझ कर ही रह जाओगे....)
