Arun Gode

Tragedy

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Arun Gode

Tragedy

शातिर चोर

शातिर चोर

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एक चतुर, चालाक, ज्ञानी और लालची बैंक कैशियर एक साधारण शहर में कार्यरत था। उसका सभी बैंक सहकर्मियों से अच्छे रिश्ते थे। वह व्यवहार से बहुत मिलनसार था। बैंक होने से बहुत सारे स्थानीय प्रभावशील दुकानदारों और व्यक्तियों से अच्छी जान-पहचान थी। शहर में बैंक का मुख्य कैशियर होने के कारण समाज में काफी इज्जत व रुतबा था। लेकिन कम समय में धनवान बनने की बहुत तीव्र इच्छा थी। रोज बैंक में पैसो का व्यवहार करने से उसे शीघ्र लखपति बनने की लालसा थी। वास्तविकता ऐसे होनी चाहिए थी कि रोज इतनी रकम के नोटों को देखकर आँखें तृप्त हो जानी चाहिए थी। अटकेगा सो भटकेगा। लालच ने उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो चुकी थी।

       जल्द से जल्द धनवान बनने की कोशिश में वो लगा था। उसके दिमाग में एक योजना घर कर गई थी। उस योजना को अगली-जामा पहनाने के लिए उसने काम करना शुरु किया था। लक्ष्य हासिल करने के लिए ओखली में सिर दे चुका था। सबसे मिलनसार रहने का वह ढोंग कर रहा था। ताकी सभी संपर्क में आने वाले लोग उस पर विश्वास कर सके। इसकी शुरुआत उसने अपने रहने के ठिकाने से की थी। सभी आस-पड़ोस के साथ अच्छा मिलनसार व्यवहार कर रहा था। वो अक्सर जब कभी गांव या कहीं बाहर जाता था। वो सामने के दरवाजे के ऊपर बाहर से पर्दा लगा देता था। घर के अंदर में बिजली का बल्ब शुरु रखता ताकि सबको पता चले की वह बाहर गया है। थोड़ी देर बाद रात में लौट आयेगा। पिछले दरवाजे को ताला लगाकर, बंद करके चला जाता था। इस तरह से वह घर में नहीं का संकेत आस-पास के पड़ोसियों को देता था।  

      बैंक में व्यवस्था थी कि स्ट्राँग रुम की चाबी बैंक मैनेजर के अलावा एक चाबी कैशियर के पास भी रहती थी। कैश रखने की तिजोरी की चाबी बैंक मैनेजर रखता था। मुख्य कैशियर होने से, मैनेजर और कैशियर में अच्छा समन्वय रहाना स्वाभाविक था। रोज बची हुई कैश की गिनती होने पर तिजोरी और स्ट्राँग रुम बंद कर दिया जाता था। चाबियां बैंक मैनेजर के पास रखी रहती थी। रोज का व्यवहार होने के कारण बहुत सारे अवसरों पर विश्वास के कारण मुख्य कैशियर को चाबियं बैंक मैनेजर दे दिया करता था। शहर में चेस बैंक न होने से, ज्यादा कैश होने पर भी वही बैंक में रखी रहती थी।

     इस चतुर , चालक, मिलनसार कैशियर ने उन सभी महत्वपूर्ण चाबियों की जैसे –जैसे मौका मिला साबुन पर छाप ले ली थी। इस प्रकार सभी चाबीयों के छाप, निशान उसके पास उपलब्ध हो चुके थे। अभी उसने घर में एक –एक करके कड़ी मेहनत से चाबीयां बनाना शुरु करा दिया था। नकली चाबीयां बनाते समय उसे रेती से घिस- घिसकर आकार देते समय जो भी बारिक-बारिक मटेरियल कणों या लोहे का बुरा जो नीचे गिरता था। उसे जमा करके रख दिया करता था। यह सब काम व रात के समय किया करता था। इसलिए मुहल्ले के सभी आस-पडोस के रहनेवाले ने ये मान लिया था कि इनका लाईट रात भर शुरु रहता है। वो समय आ गया जब लग-भग सभी चाबीयां तैयार हो चुकी थी। अभी इस शातिर चोर ने एक-एक करके सभी चाबीयों की जांच करना शुरु कर दिया था। जब-जब बैंक में स्ट्राँग रुम में जाता , मौका देखकर , उस वक्त नकली चाबीयोंसे उसे खोलने का प्रयास करता था। ऐसे कर-कर सभी नकली चाबीयों की जांच सफल हो गई थी। उसके पास सभी चाबीयों का संच तैयार हो चुका था। इन चाबीयों को बनाते समय जो लोहे बुरा उन चाबीयों गिरता था। उसे बहुत ही सावधानी पूर्वक संभाल के रखा था। अभी उसे योजना को अंजाम देना था।

       योजना को अंजाम देने में एक और साथी कि जरूरत थी। इसलिए उसने पहिले बैंक से छुट्टियां स्वीकृत कर ली थी। इसलिए अभी कैशियर की जिम्मेदारी किसी अन्य बैंक कर्मचारी को मिली थी। बैंक की चाबीयां अभी अन्य कर्मचारी को सुपुर्द कर दी गई थी। अभी पुराना शातिर कैशियर की जिम्मेदारी खत्म हो गई थी। अभी कुछ भी घटना बैंक में अगर घटती है, तो उसकी जिम्मेदारी बैंक मैनेजर और उस कैशियर की होगी।

     योजना के मुताबिक वह अपने छोटे भाई के घर ग्वालियर गया था। दोनों भाई एक ही थैली के चट्टे-बट्टे थे। उसे पुरी योजना समझाई थी। जिस दिन वह इस योजना को अंतिम रुप देनेवाला था। उसी दिन उसके भाई को ग्वालियर से उस गांव सुबह –सुबह पहुंचना था। बसों के कुछ स्टॉपेज गांव के बाहर भी रहते है। उसे वही उतरना था। इस योजना में शामिल होकर उसके भाई ने अपने पांव पर खुद ही कुल्हाड़ी मार ली थी।

         शातिर चोर अपने छुट्टियों के दौरान किसी मामूली काम से दोपहर बैंक गया था। सभी से मिला और वो किस काम के लिए आया है, सब को बताते फिरा। फिर शाम क समय मौका देखकर चुनी हुई जगह पर जाकर छुप गया। हमेशा की तरह बैंक बंद हुई थी। चाबी लेकर मैनेजर अपने घर, जो बैंक के ऊपर रहता था। ऊपर चले गयें थे। इस शातिर चोर का काम बन गया था। उसने धीरे –धीरे अपने काम को अंजाम दिया था। उस जमाने में लग-भग पांच लाख से ज्यादा की कैश तिजोरी में थी। वह एक बैग में रख दी। जाने के पहिले लोहे का बुरा तिजोरी के पास फैला दिया था। वहाँ सेंट छिड़क दिया था। वही सेंट अपने ऊपर भी छिड़क लिया। मौका देख कर, उसके भाई आने के समय के आस-पास बैंक से निकल गया था। शातिर चोर उस नियत स्थान पर पहुँच गया। उसके भाई ने दुसरा बैग लाया था। कैश पर प्रथम सेंट और कोई रासायनिक पदार्थ का छिड़काव किया गया। ताकि उससे कोई सुंघनेवाले पुलिस के कुत्तों कोई सुराग नहीं मिलना चाहिए। उस कैश को फिर दूसरे बैग में रखा गया। उसके पहिले उस में से शातिर चोर के लिए जो कपड़े लायें गये थे। उसे निकाल लिया गया। बाद में बैंक कैशियर ने वो पुराने पहने हुये कपड़े बदल दिये थे। तुरंत छोटे भाई को कैश के साथ वापिस भेजा गया था। बैंक कैशियर ने आवश्यक एहतियात लेते हुये पुराने कपड़े और बैग को रफा-दफा कर दिया था। खुद घर आकर, स्नान करके, घर में आराम कर रहा था।

          दूसरे दिन बैंक खुला। ग्राहक पैसा निकालने बैंक पहुँचे थे। जब बैंक की तिजोरी खोली गई तो उस में कैश नहीं था। बैंक कर्मचारियों में अफरा-तफरी मच गई थी। पूरा माहौल तनाव ग्रस्त हो गया था। कैशियर और बैंक मैनेजर को अपनी- अपनी नानी याद आ गई थी। चोरी की रिपोर्ट पुलिस थाने में की गई। तफतीश के लिए पुलिस बैंक पहुंची थी। आवश्यक कार्यवाही करने में पुलिस जुट गई थी। स्ट्राँगरुम का निरीक्षण करने पर वहाँ चोरों ने रात में चाबियां बना के तिजोरी खोली और कैश लेकर वे नौ-दो-ग्यारह हो गये ऐसा प्रतीत हो रहा था। क्योंकि उस शातिर कैशियर ने चाबी बनाते समय जो चाबी घिसने से जो लोहे बुरा निकला था। उसे वो साथ ले आया था। उसे वहाँ फैलाके चला गया था। पुलिस द्वारा सुंघनेवाले कुत्तों को लाया गया। कुत्तों ने उस जगह को सुंघकर पुलिस को बस स्टाँड तक ले गया था। क्योंकि उसका भाई कैश लेकर दूसरे स्थान पर चला गया था। शातिर कैशियर ने सुंघने वाले कपड़ों को उधर ही कही नष्ट करा दिया था। इसलिए पुलिस के कुत्ते उसी जगह आकर वापिस बैंक के पास आकर लौट जाते थे। कैशियर इस तरह पुलिस को चकमा देने में सफल हो चुका था।

            पुलिस थानेदार ने सभी बैंक कर्मचारियों आगाह किया था कि कोई भी कर्मचारी उसके अनुमति के बगैर शहर से नहीं जाएगा। इस पुछ-ताछ में नियमित शातिर कैशियर को भी बुलाया गया था। उसकी काफी पुछ-ताछ हुई थी। लेकिन वह छुट्टी पर होने से बड़ी मासूमियत से सवालों के जवाब दे रहा था। ठानेदार ने उसकी काफी पुछ-ताछ भी की थी। शायद उसे, उस पर अपने अनुभव के आधार पर चोरी करने की आकांक्षा थी। उसकी तस्वीर उसके आँखों बैठ गई थी। दो-तीन महीने बीत गये थे। नैव दिन चले ढाई कोस। कोई इस में अभी तक गिरफ्तार नहीं हुआ था।

           चार-पाँच माह लौट जाने पर, स्थानीय समाचार पत्र में एक खबर छ्पी थी। जो बहुत स्पष्ट नहीं थी। उस में बैंक चोरी की कैश प्राप्त होने की खबर छ्पी थी। इस खबर को पढ़कर शातिर कैशियर बेचैन हो गया था। उस जमाने में मोबाइल भी नहीं थे। इसलिए उसने अपने भाई के घर बैंक के छुट्टी के दिन जाने का तय किया था। वो बिना पुलिस के अनुमति से अपने भाई के घर गया था। वहाँ जाकर पूरे पैसे सुरक्षित होने की जानकारी लेकर उसी रात पहटियां अपने शहर को उतरने लगा। उसी समय वहाँ, वो ही थानेदार अचानक किसी काम से आया था। उसे देख कर उसे पसीना छुटा था। थानेदार ने उसे तुरंत पहचाना था। वही उससे पुछ-ताछ करने लगा था। उसने सवाल पुछा कहाँ से आ रहे हो। वो थोड़ा सा हिल गया था। उसने बताया भाई के गांव ग्वालियर गया था। फिर थानेदार ने उससे पुछा, आपने पुलिस चौकी को जाने अनुमति माँगी थी क्या ? उसने कहाँ नहीं साहब। वही उसे वो पिटने लगा। पुलिस स्टेशन लेकर गया। वहाँ कड़ी छान-बिन करने पर उसे पूरा यकीन हो गया था। उसे वह उसके भाई के घर ले गया था। उसके घर की पुरी तलाशी ली गई थी। उसके घर में पुराने जमाने में, जो गाने के शौकीन होते थे। वे कॅसेट जमा किया करते थे। उसे जान से भी ज्यादा सँभालकर रखते थे। ऐसे कॅसेटों को, उसके घर के रॅक में एक लाइन में सजा कर रखा था। उसकी जब छान-बिन की गई थी। तब कॅसेट के पीछे नोटों की गड्डियां सजाकर रखी थी। ताकी किसी को कोई शंका न आये। आधी छोड़ पूरी को धावे, आधी रहे ना पूरी पावे- इस तरह वो शातिर कैशियर पकड़ा गया था। तुरंत धनवान बनने के लालच में परिवार गया, नौकरी गई और जैल मिली।


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