शाहीनबाग़ - उसने कहा था ...

शाहीनबाग़ - उसने कहा था ...

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शाहीन बाग़ धरने के समय के, लगभग 20 साल पहले मेरे परिवार ने, बँगला देश से हिंदुस्तान में घुसपैठ की थी। मेरे अम्मी-अब्बू के तब से यहाँ दिल्ली में रहते ही, आने के बाद मेरा जन्म हुआ था। मैं, 18 वर्ष की चुकी थी। यहाँ दिल्ली आकर भरपूर मेहनत के बल पर स्लम में मेरे अब्बू ने एक कमरा भी खरीद लिया था। जिसमें मेरे सहित हम 3 भाई बहनों का परिवार रहता था। मेरे अब्बू यहाँ ऑटो रिक्शा चलाते हैं, एवं मेरी अम्मी कमरे में ही टेलरिंग कर ठीकठाक कमाई करती हैं।

मेरे अब्बू-अम्मी ने अपढ़ रहने से, जिंदगी को ज्यादा मुश्किल पाया था इसलिए हम भाई-बहन, जिनमें मै बड़ी हूँ, की पढ़ाई के लिए खर्चे में कोई कमी न करते हुए वे हमें पढ़ने को प्रेरित करते थे। दिल्ली सरकार ने शासकीय शालाओं के स्तर में अच्छा सुधार किया था, जिसके लाभ हम ले रहे मैं तब कक्षा 11 की, विध्यार्थी थी और अपनी कक्षा में प्रथम स्थान से उत्तीर्ण होती थी। मैं अपनी शिक्षिकाओं की चहेती भी थी। स्लम में रहते हुए भी हमारे परिवार का व्यवहार-कर्म बेहद शालीन था। हमारे दोस्तों एवं परिचितों में, पढ़ने में अच्छी एवं शिष्टाचार से पेश आने के कारण, मैं बेहद पसंद की जाती थी।

उन दिनों, भारत सरकार ने नागरिक संशोधन कानून पास किया। घर में अब्बू और अम्मी के बीच बातों से मुझे पता चला कि यह कानून मुस्लिम विरोधी है। इस क़ानून से हम पर, परेशानियाँ आएँगी। हमारे स्कूल में भी इसी कानून पर चर्चा होती थी। उसमें मुझे यह पता चला था कि कानून में मुस्लिम विरोध जैसा कुछ नहीं था।

यह कानून पड़ोसी देशों से गैर संवैधानिक घुसपैठ को रोकने तथा घुसपैठिये जो देश में रह रहे हैं उनकी पहचान कर उन के विरुध्द कार्यवाही करने के लिए लाया गया है। इस क़ानून में मुस्लिम एंगल यह था कि पाँच छह वर्षों से ज्यादा समय से ऐसी घुसपैठ करने वाले, अन्य संप्रदाय को तो यहाँ की नागरिकता प्रदान करना था, जबकि मुस्लिम घुसपैठियों को नागरिकता देने के प्रावधान नहीं थे।

मैं और मेरे भाई बहन तो भारत में जन्मे थे। ऐसे में हमारे परिवार के साथ क्या होगा मुझे स्पष्ट ज्ञात न हो सका था। पास पड़ोस के लोग नहीं जानते थे, मगर हमारे घुसपैठिये होने की बात हमारे परिवार में हम सभी जानते थे। अब्बू ने हम सभी के आधार कार्ड और अन्य कागजात भी बनवा रखे थे। हमारा जन्म प्रमाण पत्र भी बना था। ऐसे में मेरे मन में आशंका हुई कि क्या हमें इस देश से बेदखल किया जाएगा?फिर हमें पता चला कि इस क़ानून का विरोध करने के लिए शाहीन बाग़ में महिलाओं ने धरना दिया हुआ है।

इस धरने के लगभग 40 दिनों बाद हमारी अम्मी को भी अब्बू ने ऑटो से वहाँ ले जाना तथा छह आठ घंटे बाद वापिस घर लाना शुरू किया था। ऐसा करते हुए 10-12 दिन और निकले थे तब एक रविवार, मैंने भी उसमें भाग लेने चलने को कहा तो, अब्बू ने अम्मी के साथ मुझे वहाँ छोड़ा था।

वहाँ बहुत भीड़ थी। वहाँ जब खाने के पैकेट आये तो मैंने और अम्मी ने भी खाया था। मालूम नहीं कोई और कारण था, या खाना-पानी में कुछ था। कुछ समय बाद मुझे हाजत अनुभव हुई थी। अम्मी को बताया तो वे उपयुक्त स्थान तलाशने के लिए मेरे साथ आई थीं। पास ही ऐसा कुछ नहीं मिल रहा था। तब एक युवक से पूछा था, उसने मेरी चेहरे की बदहवासी पढ़ी थी, कहा था बहुत पास ऐसा कुछ नहीं है, किसी के घर में पूछ लो नहीं तो पास ही मेरी शॉप है, वहाँ कोई व्यवस्था कर सकता हूँ।मुझे लग रहा था कि जल्दी नहीं की तो मेरे कपड़े ही ख़राब हो सकते हैं। मैंने, अम्मी से शॉप के लिए हाँ कहलवा दी थी। उस युवक ने एक शॉप का ताला खोल कर शटर आधा उठाया था। जल्दी ही एक स्टूल और एक नई बकेट और पेपर नेपकीन दिए थे, मुझे अंदर किया था अम्मी और खुद उसने बाहर होकर, शटर गिरा दिया था।हाजत से निबट मैंने बकेट कवर कर दी थी, तब शटर खटखटाई थी।

अम्मी ने बकेट साफ करने के लिए स्थान और पानी के लिए पूछा तो "उसने कहा था" कि, नहीं नहीं वह मैं कर लूँगा।

वास्तव में यह, उस युवक का प्रॉविजन स्टोर था, जो शाहीन बाग़ में धरने से, पचास से अधिक दिनों से बंद था। मैंने बाहर निकल कर साइन बोर्ड पर 'गुप्ता प्रॉविजन स्टोर' नाम देखा था। हम उस युवक का नाम नहीं पूछ सके थे। मैंने बोर्ड पर लिखा मोबाइल न. याद कर लिया था। अम्मी ने उसे तहे दिल से शुक्रिया कहा था। "उसने कहा था"- नहीं नहीं इंसान, इंसान की इतनी मदद तो कर सकता है ना! इसकी, मुझे ख़ुशी है।

हम वापिस, धरने में आ गए थे। धरने से महीने से ज्यादा, उसकी कमाई मारी गई थी। मेरे द्वारा गंदा किये जाने से, नई बकेट (जिसे उसे फेंकना पड़ेगा) का नुकसान अलग सहना पड़ेगा। सोच कर, धरने को लेकर मुझे ग्लानि हुई थी। मेरा उस युवक पर दिल आ गया था। जिसने निःस्वार्थ यह भला काम किया था।फिर अब्बू के नहीं आने तक धरने पर रही थी। मगर मेरा मन किन्हीं और ख्यालों में खोया हुआ था -

मेरा जन्म भारत में हुआ था, जहाँ मुझे पढ़ने के शिक्षा और आधुनिक खुलेपन से विचार के अवसर मिले थे। इस देश में इस युवक की नेकी और नेकनीयत वह चीज होगी जिसे खोकर मुझे, अगर बँगला देश जाना पड़ा तो ज़िंदगी भर का गम रहेगामुझे दुःख हुआ कि भारत में जन्मे और यहाँ रहने वालों को, क्यों नहीं इस देश की महानता का अहसास नहीं!

यहाँ रहते, यहाँ पलते बड़े होते हुए भी, इस देश की सबको जीवन अवसर प्रदान करने की भव्य परंपरा पर अपनी क्यों लोग उत्सुक हैं क्यों औरों को भड़काते रहते हैं संकीर्ण और कट्टर तथा कथित इस्लामिक परंपरा लादने को उत्सुक रहते हैं। ना खुद चैन से रहते हैं ना ही यहाँ के लोगों को चैन से रहने देते हैं। ऐसे विचारों में लीन मैं उस दिन धरने से लौटी थी।कुछ दिनों बाद धरना खत्म किया गया था। मुझे राहत आई थी।

तबसे नित बीतता दिन, मेरे दिल में उस युवक के प्रति एकतरफा प्यार, बेहद प्रगाढ़ करता जाता था। उसके प्रति शुक्रगुजार और प्यार से ओतप्रोत मेरे दिल के द्वारा मजबूर होकर, एक दिन मैं स्कूल से भाग कर उसके शॉप पर पहुँची थी। मैं स्कूल यूनिफार्म में थी, इस कारण मुझे पहचानने में, कुछ समय लगा था। मुझे देख वह मुस्कुराया था फिर अन्य ग्राहक से फ्री होकर, उसने मुझसे पूछा था, क्या चाहिए आपको?

शॉप में उस समय कोई और नहीं होने का लाभ उठा, मैंने उसे याद दिलाया था। वह मुझसे पुनः मिल कर खुश हुआ था, तब साफगोई से और बिना झिझक मैंने कहा था - मुझे, आपसे प्यार हो गया है। समय आने पर मैं, आपसे शादी करना चाहती हूँ, क्या आप मुझसे शादी कर सकेंगे? तब जबाब न देकर उसने, मुझे रविवार एक रेस्टोरेंट में आने कहा था।

उस दिन, उसका क्या जबाब होगा, इस जिज्ञासा से मैं, अपने धड़कते दिल के साथ वहाँ पहुँची थी। वहाँ अलग एक केबिन में, अत्यंत आत्मीय व्यवहार सहित उसने, मुझे आग्रह कर कर बहुत कुछ खिलाया पिलाया था। उस सबसे, मुझे लगने लगा था कि उसका उत्तर मेरे प्यार के पक्ष में आएगा। अंत में उसने थोड़ा गंभीर भाव मुख पर लाते हुए कहना शुरू किया था - शाहीन, (मेरा नाम उसने पूछा ही नहीं था) आपके, उस दिन के प्रश्न पर मेरा उत्तर अब सुनिए, कहते हुए,

'उसने कहा था' -

"अभी, मेरी और आपकी उम्र, किसी भले साथी को देख, उसके प्रेम में पड़ जाने की है। आप बेहद खूबसूरत हैं, मेरे दिल में भी उस दिन, आपको देख प्यार आया था। उसी प्यार के अधीन, मैंने आपकी, इस तरह से मदद करते हुए दिलीय ख़ुशी महसूस की थी।

आगे सवाल, आपके और मेरे शादी का है, इस पर मेरा मानना है कि हर प्रेम की परिणति विवाह नहीं होती है। हर प्रेम शारीरिक संबंध तक पहुँचने के अभिप्राय से नहीं होता है। आपका और मेरा धर्म अलग है। ऐसा होना, मुझे, आपसे विवाह को नहीं रोकता है। आपको, आपके जितना ही चाहते हुए, जो विवाह नहीं करने को विवश करता है, वह कारण अन्य है। यह, वह कट्टरपंथी वर्ग है, जो मेरे और आपको विवाह कर लिए जाने पर यहाँ के परिवेश में वैमनस्य घोलने का एक और बहाना ले लेगा।

मुझे माफ़ करना, प्यार मैं भी रखूँगा, प्यार ही तुम भी मेरे लिए दिल में रख लेना और इस प्यार भरे दिल में दुआ रखना। ताकि लोगों को अक्ल में आपस में नफरत की जगह ,प्रेम से रहने की भावना प्रधान हो जाए।" उसने, मेरी आशा के विपरीत, मेरे प्रस्ताव को असहमत कर दिया था। ऐसा करने का मगर उसका अंदाज अनूठा था, उससे मेरा दिल टूटा नहीं था। उसने, मेरे दिल में, उसके प्रति प्रेम को, आसमान की ऊँचाई तक उठा लिया था।

आज, दिनाँक 4 अक्टूबर 2022 है। आज, हमारा परिवार अपना भविष्य तलाशने आज बँगला देश जा रहा है। जहाँ मेरे अब्बू अपने परिश्रम से हमारा लालन पालन करने के अवसर पा लेंगे। मगर भारत के खुले एवं आधुनिक परिवेश के जगह, वहाँ के कट्टरपंथी, संकीर्ण परिवेश की कल्पना मुझे परेशान कर रही है।

किसी और की नहीं मालूम मगर मेरे दिल में यह कामना है कि मेरी जन्म भूमि, भारत, विश्व का सर्वोत्कृष्ट राष्ट्र होने का दर्जा हासिल करे।


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