सबको अपना किया भुगतना पड़ता है
सबको अपना किया भुगतना पड़ता है
"प्रिया करीब 5 साल की थी और अंशुल मेरे पेट में था जब हम इस शहर में रहने आये थे।लेकिन इस शहर ने न केवल हमें आसरा ही दिया बल्कि पैसा प्रतिष्ठा प्यार सब कुछ दिया। यहीं पर रहते हुए बच्चे कब बड़े हो गए? पता ही नहीं चला।" आशा ने सजे हुए घर पर नज़रें डालते हुए कहा।
"आशाजी बच्चे बड़े ही नहीं हुए आज तो बेटी को दुल्हन बनाकर विदा भी कर दिया।" आशा के पति वीरेंदर ने कहा।
"इस विदाई ने ही तो मुझे अपनी पुरानी विदाई याद दिला दी। लेकिन भगवान् किसी की भी किस्मत में ऐसी विदाई न दे।" आशा ने कहा।
"सही कह रही हो। इस शहर ने हमें सब कुछ दिया लेकिन यह हमारे पुराने घावों को पूरी तरीके से नहीं भर सका। आज भी जब अपना पुराना शहर याद आता है तो आँखें भर आती हैं।" वीरेंदर ने कहा।
"आप सही कह रहे हो। हम अगर अपनी मर्ज़ी से अपना शहर छोड़ते तो हमें इतनी तकलीफ नहीं होती लेकिन हमें तो छोड़ना पड़ा था।" आशा ने कहा।
"शहर ही नहीं अपना सब कुछ अपने दोस्त अपने रिश्तेदार अपना नाम सब कुछ।" वीरेंदर ने कहा।
"आपको क्या अभी भी अपने उस नामुराद पार्टनर की हरकत पर गुस्सा नहीं आता? ",आशा ने कहा।
"अब क्या फायदा? गलती मेरी ही थी जो उस पर आँख मूँदकर भरोसा किया। और उसे भी तो अपने किये का दंड मिल ही गया। आज बुढ़ापे में अकेला रह गया है बच्चे सब विदेश में बस गए। सुना है कोई पानी देने वाला भी नहीं है।" वीरेंदर ने कहा।
"यह तो सही कहा जी आपने भगवान के घर देर है लेकिन अंधेर नहीं। कम से कम आज हमें इस बात का तो सुकून है कि हमने किसी का दिल नहीं दुखाया। हमारे सपनों के महल के नीचे किसी की ख़्वाहिशें दफ़न नहीं हैं।" आशा ने कहा।
"खैर तुम तो मुझे कितना चेताती थी लेकिन मेरी ही आँखों पर विश्वास की पट्टी पड़ी हुई थी।" वीरेंदर ने कहा।
"अजी इसमें आप की कोई गलती नहीं है। इंसान खुद जैसा होता है सामने वाला भी उसे वैसा ही नज़र आता है। आप छल -कपट जैसी बातों दूर हैं इसीलिए दूसरों के छल -कपट को नहीं समझ पाते।" आशा ने कहा।
"अब क्या बातें ही करती रहोगी? बेटी ही विदा हुई है बाकी सब तो यहीं हैं। चलो अंदर चलकर कुछ चाय -नाश्ते का प्रबंध करते हैं।" वीरेंदर ने कहा।
"चलिए। आप तो फ्रेश हो जाइये। मैं शांता को कहकर चाय -नाश्ते का प्रबंध करती हूँ।" आशा ने कहा।
वीरेंदर फ्रेश होने चले गए थे और आशा चाय -नाश्ते का प्रबंध करने। वीरेंदर फ्रेश होकर बाहर सोफे पर बैठ गए थे।वीरेंदर सोफे पर सिरहाना लगकर आँखें बंद करके लेट से गए थे। नींद तो उन्हें नहीं आ रही थी लेकिन आँखें बंद करते ही उनका अतीत उनकी आँखों घूम गया था।
सुदर्शन ने अपने एक अजीज दोस्त राजीव के साथ मिलकर बिज़नेस शुरू किया था। सुदर्शन प्रोडक्शन यूनिट देखते थे और जबकि फाइनेंस ,सेल्स और मार्केटिंग का काम उनका दोस्त राजीव देखता था।
डील करने और निगोशिएट करने के लिए राजीव अपने आपको कंपनी का एग्जीक्यूटिव मात्र बताता था। सभी सुदर्शन को ही कंपनी का मालिक समझते थे। सुदर्शन ने एक -दो बार राजीव से कहा भी कि ,"तुम हर किसी को मुझे ही कम्पनी का मालिक क्यों बताते हो ?हम तो दोनों साझेदार हैं। "
"अरे यार ,बातचीत करने में आसानी रहती है। अपनी शर्तें मनवाना आसान होता है। क्लाइंट की कोई बात माननी होती है तो मैं कह देता हूँ कि मैं तो सेल्स का आदमी हूँ ;अंतिम निर्णय तो हमारे बॉस ही लेंगे। मार्केटिंग स्ट्रेटेजी है। "राजीव ने कहा।
सुदर्शन को वैसे कोई दिक्कत भी नहीं थे। कंपनी को अच्छे आर्डर मिल रहे थे। सब कुछ बढ़िया चल रहा था। शहर में उनका नाम हो रहा था। बिज़नेस शुरू हुए 3 -4 साल बीत गए थे।
सुदर्शन का राजीव पर विश्वास बढ़ता जा रहा था। सुदर्शन कंपनी के फाइनेंस आदि भी नहीं देखते थे। पेमेंट्स ,खर्चे आदि सभी कुछ राजीव ही देखता था। सुदर्शन तो चेक पर सिग्न कर देते थे और प्रोडक्शन का काम देखते थे।
सुदर्शन को कच्चे माल की सप्लाई कम हो रही थी। कभी कुछ सामान कम होता और कभी कुछ सामान। इसी बीच राजीव 15 दिन के लिए किसी जरूरी काम से दूसरे शहर चला गया।
कच्चा माल देने वाले आपूर्तिकर्ताओं को बहुत दिन से पेमेंट नहीं मिला था और उन्होंने अब उधार में सामान देने से मना कर दिया था। उधर क्लाइंट का आर्डर डिलीवरी के लिए फ़ोन पर फ़ोन आ रहे थे। प्रोडक्शन का काम रुक सा गया था। १५ दिन बीते ,ी महीना भी हो गया ;लेकिन राजीव का कुछ पता नहीं था। उससे सम्पर्क का कोई सूत्र नहीं था। वह हवा के जैसे कहीं गायब हो गया था। उसके घर जाने पर पता चला कि वह तो लगभग दो महीने पहले ही घर खाली करके चला गया।
सुदर्शन के पास पैसा मांगने वाले लोगों की लाइन लग गयी। कच्चे माल के आपूर्तिकर्ताओं को अपना पैसा चाहिये था और क्लाइंट्स अब अपना एडवांस वापस मांग रहे थे। कंपनी का बैंक अकाउंट चेक किया ;उसमें कुछ लाख रूपये ही थे। यह वह दौर था ;जब नेट बैंकिंग का चलन इतना नहीं था। मोबाइल फ़ोन भी लक्ज़री ही थे।
बैंक खाते से कुछ लोगों को पेमेंट दे दिया गया ;लेकिन अभी भी सबका पूरा पेमेंट नहीं हो पाया था। लोगों ने सुदर्शन पर 420 का केस करने की धमकी दी ;तब कुछ शुभचिंतकों की सलाह पर सुदर्शन अपना घर बेचकर ,कुछ पैसे लेकर रातों रात बच्चों और बीवी के साथ शहर छोड़कर निकल गए।
कुछ वर्षों बाद राजीव और उनके एक कॉमन मित्र से उन्हें राजीव की खबर मिली। राजीव वापस आ गया था। उसने उनके साथ धोखा किया था। अब सुदर्शन नए शहर में सेटल हो ही गए थे।;उनकी ज़िन्दगी की गाड़ी पटरी पर आ गयी थी।
"लो गर्मागर्म चाय। ",आशा की आवाज़ से सुदर्शन वर्तमान में लौट आये थे।
"सबको अपना किया भुगतना पड़ता है। ",चाय पीते हुए सुदर्शन जी सोच रहे थे।
