Anupama Thakur

Abstract

4.2  

Anupama Thakur

Abstract

सब कुछ तो यहीं फोड़ना है

सब कुछ तो यहीं फोड़ना है

2 mins
292


नंदिनी का ब्याह हुए 10 वर्ष हो चुके थे। उसका अपना साड़ियों का व्यापार भी अच्छा चल रहा था। बड़ा बेटा कक्षा दसवीं में आ गया था। वैसे तो वह बहुत स्वाभिमानी है परंतु जैसे ही वह मायके आती है, अपनी विधवा मामाँ की पेंशन पर ही अपना सारा संसार जुटाना चाहती है। बच्चों को कपड़े, पति को जूते, खुद के लिए साडी, घर के लिए परदे, पता नहीं और क्या-क्या, सब कुछ तो वह मायके से समेटना चाहती है।

बेबाक तथा मुंहफट नंदिनी तो पहले किसी की छोटी सी मदद लेना भी पसंद नहीं करती थी परंतु आज शादी के बाद इतना परिवर्तन आश्चर्यजनक था। किसी ने सच ही कहा है, लड़की पराया धन होती है। उसके इस व्यवहार पर सुषमा को बहुत गुस्सा आता पर वह तो उस घर की बहू थी किससे कहती ? पति से कहो तो वह कहता, "मेरी इकलौती बहन है।" और सास से कहो तो ," मेरी बेटी का है सब कुछ।"

दीपावली की छुट्टियों में नंदिनी के माई के आने पर सुषमा तो जैसे घर की नौकरानी ही बन जाती। सुबह नाश्ता, दोपहर में दो-तीन सब्जियां, रायता , अचर पापड़, रात में कुछ और स्वादिष्ट भोजन। नंदिनी के बच्चों की अलग-अलग मांगे , चाय , शरबत, कपड़े ,बर्तन पर किसी को उसकी ओर देखने की फुर्सत नहीं होती। नंदिनी तो मायके आराम करने आती है। वह सुषमा की मदद कैसे करेगी? इस दिवाली पर जब नन्दिनी मायके आई तो कुछ उखड़ी-उखड़ी रहने लगी। माँ ने पूछा, "क्यों , क्या हुआ इतनी उदास क्यों है ? नन्दिनी ने बताया इस बार उसके पास उसकी ननंद आने वाली है। उसने कहा , "माँ क्या बताऊं तुझे, उसे सब कुछ हाथ में देना पड़ता है। पानी तक उठकर नहीं लेती। नई -नई खाने की फरमाइश करती रहती है। माँ ने तपाक से कहा, "तूने ही सिर पर चढ़ा रखा है उसे।

वह महारानी के जैसे बैठकर रहे और तू नौकरानी की तरह दिन भर काम करें, बोलती क्यों नहीं तू उसे कुछ।"

किचन में नौकरानी की तरह काम कर रही है सुषमा की हंसी फूट पड़ी, मन में मुस्कुराते हुए सोचने लगी , सब कुछ तो यही फेडना है।

संसार के प्रत्येक प्राणी को अपने कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है। इससे मुक्ति कभी नहीं मिलती है।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract