संघर्ष
संघर्ष
आज के व्यस्तता भरे जीवन में लगभग हर व्यक्ति किसी न किसी चीज को लेकर तनाव में रहता है. कुछ लोग अपने करियर और ऑफिस को लेकर हर दम तनावग्रस्त रहते हैं तो कुछ लोग घर-परिवार की जिम्मेदारियों को लेकर तनाव का शिकार हो जाते है।
अनुसूया आज सुबह से खूब परेशान थी। रात में आए प्रिसिंपल के फोन के बाद उसका मन किसी भी कार्य में नहीं लग रहा था। वह अपने पति से बार -बार पूना चलने के लिए कहने लगी। पति ने उसे समझाया कि उनका तो काम ही है कि हर छोटी बात को बड़ा बनाना, वरना अनुशासन कैसे रहेगा? पर अनुसूया कहां मानने वाली थी। उसे तो हर छोटी छोटी बातों में तनाव लेने की आदत जो थी। 44 वर्षीय अनुसूया हंसमुख स्वभाव की थी पर जाने क्यों बढ़ती उम्र एवं बढ़ती जिम्मेदारियों के कारण दिन ब दिन वह गुस्सैल एवं चिड़चिड़ी बनती जा रही थी। उसकी जिम्मेदारियाँ कई गुना बढ़ गयी थी। अब उसकी स्वच्छंदता थोड़ी सीमित होकर मर्यादा के चोले में छिप गई थी। अपने परिजनों का खयाल रखना तथा तमाम रिश्ते-नाते निभाना, तथा वहीं दूसरी ओर उसे घर से बाहर निकलकर एक कामकाजी महिला के रूप में अपने करियर को भी एक नई दिशा देनी होती है। कामकाजी व गृहिणी दोनों ही रूपों में अपनी श्रेष्ठता का प्रतिपादन करना बहुत ही अधिक चुनौती पूर्ण है। इन सब के बीच तालमेल करते करते वह अब थकने लगी थी।
प्रिंसिपल ने आते ही अनुसूया से बेटे की शिकायत करना प्रारंभ किया। अब अनुसूया और अधिक क्रोधित हुई। वह विचार करने लगी कि इतनी दूर से रात के अंधकार में जोखिम उठाकर वे अपने बेटे को मिलने आते हैं पर बेटे को उनकी जरा भी परवाह नहीं है। लाखों रुपए खर्च कर उसे पढ़ा रहे हैं पर उसे इन सबकी जरा भी कद्र नहीं है। यह सोच कर वह और क्रोधित होने लगी। जिस बेटे को मिलने के लिए वह बेचैन थी, उसे वह क्रोधित नजरों से देखने लगी, उसी को घृणा एवं संदेह से देख रही थी। उसने उसे गले भी नहीं लगाया और उसे यह सुनाती रहीं कि तुम्हारे लिए हम कितना परिश्रम कर रहे हैं पर तुम को इसका जरा भी एहसास नहीं है। छुट्टियाँ प्रारंभ होने वाली थी प्रिंसिपल ने बेटे को साथ ही ले जाने के लिए कह। और हिदायत भी दी कि अगर इसका आचरण ठीक होता है तो ही वापस लेंगे अन्यथा नहीं। यह सुनकर तो अनुसूया और क्रोधित हो गई। बेटे का सामान लेकर वे निकल पड़े। अनुसूया अब भी नाराज थी और बेटे से कुछ पूछने की बजाए उसे बार -बार गलती बता कर डांट रही थी। सारी राह मां बेटे में तू-तू मैं-मैं चलती रही। अंत में बेटे ने कहा कि तुम मुझे कभी समझ ही नहीं पाओगी। और फिर दोनों खामोश हो गए। पति महोदय भी बेटे की शिकायत से नाराज थे। अतः वे भी बेटे को डांटने लगे। सभी तनाव में थे।
बहुत रात्रि हो चली थी। अनुसूया बार बार कहीं रुकने के लिए कह रहीं थी। अतः पति महोदय ने राजन गांव गणपति मंदिर में कमरा लेकर रात्रि में वहीं रुकने का निर्णय लिया। बेटे को लेकर अनुसूया काफी तनाव में थी । सभी लोग जल्दी उठकर स्नान कर मंदिर के दर्शन करने गए। मंदिर में कतार में खड़े होकर भी अनुसूया का मन विचलित था। वह केवल भगवान से शिकायत किए जा रही थी। जब दर्शन की बारी आई तो वह श्री गणेश जी से कहने लगी, ’’ हे! ईश्वर कितनी समस्या हैं मेरे जीवन में, बेटे को लाखों रुपए लगाकर अपनों से दूर रखा परंतु बेटे को तो पढ़ना ही नहीं है, उसका ध्यान तो केवल मौज मस्ती में है। ईश्वर कुछ कीजिए।’’ ऐसे कई शिकायतें कर जब उसने मस्तक ऊपर उठाया और कुछ क्षण बैठने के लिए पीछे मुड़ी तो देखा एक युगल अपने बेटे के साथ पीछे खड़ा है जो बेटा है वह व्हील चेयर पर बैठा हुआ है और देखने से मंदबुद्धि लग रहा है, वह न चल सकता हैं, न उठ-बैठ सकता हैं, न बोल सकता है। उसकी गर्दन भी नहीं सधती, न निगाह ठहरती है। वह खोया-खोया सा था। उसकी लार टपक रही थी और उसके माता - पिता उसे बड़े प्रेम एवं इतमीनान के साथ ईश्वर के पैर पड़ना सिखा रहे थे। दोनों ने उसे सहारा दिया उठाकर नीचे झुका कर मत्था टेकने के लिए कहा । उन्हें देखकर अनुसूया की आंखों में आंसू आ गए वह मन ही मन सोचने लगी अपनी संतान के लिए जीवन भर इन दोनों को कितना संघर्ष करना है। हर चीज सिखानी है। वह मन ही मन लजा गई और तुरंत पलट गई और हाथ जोड़कर ईश्वर से अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगने लगी। इस छोटे से संघर्ष से मैं इतनी निराश हो गई जबकि मेरे बच्चे एकदम स्वस्थ और स्वयं से प्रत्येक कार्य कर सकते हैं। हे! ईश्वर मुझे क्षमा करना अब मैं कभी भी जीवन में निराश नहीं होऊंगी।
जीवन के प्रति आपकी धारणा ही आपको नरक का संघर्ष या स्वर्ग की खुशियों का एहसास कराती है सब कुछ आप पर निर्भर करता है।
