Anupama Thakur

Tragedy

4.5  

Anupama Thakur

Tragedy

तरक्की की चाह

तरक्की की चाह

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छोटे से गांव में जन्मा बद्रीनाथ बहुत ही मेहनती और जुझारू था। माता-पिता दूसरों के खेत में मजदूरी करते।  मिट्टी के मकान में गैस तेल के दीए में पढ़ने वाला बद्री हमेशा शहर के सपने देखता । गांव की मिट्टी में पले बढ़े बद्री को मिट्टी से किसी प्रकार का कोई लगाव न रहा। पढ़ -लिख कर वह शहर में नौकरी पाने चला आया। सौभाग्य से उसे एक प्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित पाठशाला में अध्यापक की नौकरी मिल गई। बहुत ही लगन और निष्ठा से वह कार्य करने लगा।

धीरे-धीरे उसकी आय भी बढ़ने लगी । विवाह भी उसने पढ़ी- लिखी युवती से किया और अपने प्रेम पूर्ण व्यवहार तथा चापलूसी के बल पर उसे भी अपने ही पाठशाला में अध्यापिका का पद दिलवाया। अब बद्री के पास खुद का घर, कार एवं खूब सुख -सुविधाएं आ गई थी। गांव की मिट्टी में पले बढ़े बद्री को जाने कैसे मिट्टी से ही एलर्जी हो गई । बद्री जब भी बाहर निकलता तो अपनी कार के शीशे ऊपर चढ़ा कर निकलता । जरा सी भी मिट्टी धूल से उसे छीकें एवं खांसी आना शुरू हो जाती। गांव में हर बात के लिए दूर- दूर तक पैदल चल कर जाने वाले बद्री को घुटनों में तकलीफ प्रारंभ हुई और उसे घुटनों का ऑपरेशन करना पड़ा अब स्थिति यह हुई कि कहीं जाना हो तो बद्री को गाड़ी से जाना पड़ता। जीवन में मिलने वाली तरक्की एवं सुख सुविधाओं ने बद्री को न केवल अपने गांव के प्राकृतिक जीवन से दूर कर दिया था बल्कि अपने जन्मदाता तथा जन्म दात्री माता-पिता से भी दूर कर दिया था


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