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Sonam Kewat

Romance Tragedy

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Sonam Kewat

Romance Tragedy

सब गलत लगता है

सब गलत लगता है

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मैंने कई कविताएं और कहानियां लिखी हैं। अक्सर मेरी सारी कविताएं काल्पनिक होती हैं, कभी-कभी उनका हकीकत से वास्ता होता है, तो कभी जिंदगी की सीख होती है। पर आज की लिखावट मेरी व्यक्तिगत जिंदगी से संबंधित है। मेरी व्यक्तिगत जिंदगी कुछ ऐसी रही है कि मैंने चार दीवारों से बाहर ज्यादा कुछ देखा ही नहीं। जब दुनिया दीवारों के बाहर देख रही थी, तो मैं दीवारों के अंदर अपनी दुनिया बना रही थी। और अब इन दीवारों की इतनी आदत हो गई है कि मौका भी मिले तो इससे बाहर जाने का मन नहीं करता। दीवारों के अंदर रहते हुए, कभी अकेलापन महसूस हुआ तो मैंने किताबों के पन्ने और कलम को अपना साथी बना लिया। जिंदगी में बहुत कुछ सीखा और अगर प्रेम की बात करूं तो प्रेम के बारे में जो समझा, वह यही समझा कि प्रेम करना चाहिए और निस्वार्थ करना चाहिए। शुरुआत में जब प्रेम हुआ, तो शायद अंदाजा था कि वापस नहीं मिलेगा या कुछ नहीं मिलेगा, इसलिए ना सोचा, ना समझा, सिर्फ प्रेम किया। धीरे-धीरे प्रेम की जड़ें इतनी गहरी होती गई कि समझ ही नहीं आया, खुद को रोकना है या आगे बढ़ाना है। कई बार मन किया कि कदम पीछे हटा लूं, पर कदम अपने बस में थे ही नहीं। और एक-एक करके कदम इतने आगे बढ़ते गए कि कि वापस आना नामुमकिन सा हो गया।


कहते हैं प्रेम को ढूंढते ढूंढते अक्सर इंसान ईश्वर को ढूंढने लगता है। मैंने भी वही किया और पाया कि ईश्वर से शांति मिल सकती है, पर संतुष्टि नहीं। क्योंकि आप जिससे प्रेम करते हो, आपको संतुष्टि भी उसी से मिलने पर ही मिलेगी। मैं पहले समझती थी कि अगर प्रेम नहीं मिलता, तो प्रेम में ईश्वर को ढूंढना चाहिए पर अब समझता हूं कि ईश्वर से शांति मिल सकती है लेकिन संतुष्टि तो आपको उसी से मिलेगी जिससे आपने प्रेम किया हैं।

किसी ने सही ही कहा है कि प्रेम में पड़ने के बाद सब कुछ निरर्थक लगने लगता है। जो विचार पहले सही लगते थे, अब उन्हीं विचारों को तोड़ मरोड़कर हम अपने मन की सुनने लगते हैं। कोई लाख मना करें, पर दिल है कि मानता ही नहीं। वह बस यही कहता है, "प्रेम करो, प्रेम करो, थोड़ा और करो, बस प्रेम करो।" तभी तो जिन चीजों में विश्वास नहीं होता, वह भी मानने को मन करने लगता है। एक मजाक यह भी है कि जब आप जिंदगी में गिर रहे होते हो तो जिंदगी आपको और ऊंचाई तक लेकर जाती है, ताकि गिरते वक्त आपके पुराने जख्म फिर से ताजा हो जाए। असल में जिंदगी एक और मौका देती है कि हो सके तो आप कदम पीछे ले लो पर जैसा कि मैंने कहा प्रेम में इंसान सिर्फ दिल की सुनता हैं, जिंदगी की नहीं!

हां! हो सकता है आप जिसे इतना जरूरी समझो, वह आपको जरूरी ना समझे। कई बार जिस शख्स से आप प्रेम करते हो, आप उसकी बातें भी सुनते हो।

इसी तरह एक बार बातों ही बातों में उस शख्स ने मुझसे कहा था, तुम्हें कोई प्रेम नहीं है यह सब एक दिखावा है, कभी कहा कि तुम्हारा प्रेम सिर्फ एक वासना है और जाने क्या-क्या! 

मैं सोचती हूं कि वासना तो शरीर को छूती है और जिस प्रेम को मैंने महसूस किया है, वह तो मेरे आत्मा तक घाव करती हैं। फिर यह आत्मा का प्रेम किसी को कैसे दिखाया जा सकता है? इसलिए मैं चुप हो जाती थी क्योंकि समझ नहीं आता था कि आखिर समझाते कैसे हैं? ना तो कोई शब्द बचे थे और ना ही कोई विचार!

प्रेम को पाने के लिए इंसान हर हद तक जाता है, कभी विश्वास के भरोसे तो कभी अंधविश्वास। मैं भी पहुंच गई थी एक ऐसी चौखट पर जहां पर मुझे एक ज्योतिषी मिला। वैसे मैं पहुंची नहीं थी, बल्कि मुझे किसी ने पहुंचाया था। ज्योतिष ने मेरी कुंडली बनाई और कुछ दिनों बाद बताया कि तुम्हारे कुंडली में तो जाने कितने दोष हैं। मेरे तो केवल दो ही सवाल थे, एक भविष्य का काम और दूसरा प्यार का ना

म। हे भगवान! जवाब में उसने तो इतने सारे दोष गिनवाएं, जो कि आज तक मैंने कभी खुद में ढूंढा ही नहीं।

समाधान पूछने पर उसे ज्योतिष ने कहा कि एक पत्थर की अंगूठी पहन लो शायद कुछ तो हो जाए! मन ही मन तो हंसी आती है किसी सोने की धातु में पत्थर की अंगूठी भला मेरा भाग्य कैसे बदल सकती हैं? फिर मैं खुद को एक झूठ उम्मीद दिलाने लगी हो सकता है, शायद ऐसा भी हो सकता है कि किसी पत्थर से भाग्य बदल जाए और मैंने भी पहन लिया एक पत्थर की अंगूठी , बिल्कुल वैसे ही जैसे बहुत से लोग पहनते हैं। उसे ज्योतिष ने यह भी कहा था कि आजकल के लड़कों को सिर्फ हीरोइन चाहिए और तुममें वह बात नहीं है। बड़ा ही बेवकूफ था वो! पता नहीं किसने उसे ज्योतिष बनाया होगा? सच कहूं उस वक्त मन में एक ही ख्याल आया कि मैं किसी हीरोइन से कम थोड़ी हूं पर फिर भी मुझे लगने लगा शायद दूसरों को मुझमें वह बातें शायद दिखती नहीं होगी। इसलिए अब मैं निकल पड़ी एक अलग रास्ते पर, एक ऐसे रास्ते पर जहां मैं खुद को धीरे-धीरे बदलने लगी। पर बदलते बदलते एक विचार आने लगा कि कब तक चलना पड़ेगा ऐसे रास्ते पर? अगर इतना बदल डालूंगी खुद को तो मैं तो मैं ना रह पाऊंगी। सबसे बड़ा सच ये है कि मुझे खुद से बहुत प्यार है, और क्यों ना हो? आखिरकार जिंदगी की शुरुआत से अब तक मेरे साथ सिर्फ मैं ही रही हूं। मुझे डर लगने लगा अगर मैं खुद को बदल डालूंगी तो मेरे साथ कौन रहेगा? कहीं ऐसा ना हो कि मैं खुद को ही खो दूं। मेरे लिए तसल्ली है कि लोग जाए तो जाए, पर मैं खुद को कभी नहीं जाने दे सकती। इसलिए एक बार फिर से मैंने खुद को चुना। ऐसा नहीं कहतीं कि लोग जरूरी नहीं बल्कि सच तो यह है कि मैंने खुद को तब संभाला था जब मेरे पास कोई नहीं था तो आज मैं लोगों के लिए खुद को कैसे खो सकती थी और बस मैंने खुद को चुना। 


बातों बातों में उस शख्स ने कहा था कि तुम जो इतना मिलने के लिए कहती हो, आखिर क्या करोगी मिलकर? कुछ जादू टोना करने का विचार है क्या? हंसी भी आती है और आश्चर्य भी होता है कि आज के पढ़े-लिखे लोग भी इन सब चीजों में विश्वास करते होंगे। दादी, नानी और मां की मानसिकता ऐसी होती थी तो अंधविश्वास लगता था पर आजकल के लोग भी! वैसे यह सब होता है या नहीं, मैं नहीं जानती और जानना भी नहीं चाहती। फिर लगने लगा कि शायद उसने बस यूं ही तानें कसने के कहा होगा या फिर मुझसे पीछा छुड़ाना चाहता होगा पर दूसरा पहलू यह है कि कोई जादू टोना और किसी को वश में करके अगर पा ही जाए तो क्या ही फायदा? क्योंकि इस तरह के छल कपट से आप किसी को मजबूरन पा सकते हो, पर शायद वह आपका कभी नहीं होगा। और ऐसी मजबूरी किसी काम की जिसमें कोई आपके साथ होते हुए भी साथ ना रहे। मैं तो केवल ऐसे शख्स को पाना चाहती थी जिससे मैं प्रेम करती हूं और सिर्फ इसलिए मैं उसे शरीर से ही नहीं, बल्कि आत्मा की गहराई से पाना चाहती थीं।

मैं उस शख्स को बहुत ज्यादा नहीं जानती और ना ही वह मुझे जानता है पर अजीब बात है कि बिना जाने पहचाने प्रेम हो गया, कैसे हो गया पता नहीं। इसलिए वो मुझे गलत समझे तो ये उसका अपना अनुभव है, क्योंकि मेरी दुनिया तो सिर्फ चार दीवारों के अंदर रही है और उसने तो चार दीवारों के बाहर की दुनिया देखी है इसलिए उसका अपना अनुभव है और मेरी अपनी धारणाएं है और दोनों चीजें बिल्कुल ही अलग हैं।

आखिर में, मैं सिर्फ यह जानती हूं कि मैंने कोशिश की, मैंने बहुत कोशिश की और इतनी कोशिश के बाद ऐसा लगता है कि शायद प्रेम जैसी चीज आज के जमाने के लिए बनी ही नहीं। या प्रेम गलत है या फिर शायद मेरा नजरिया गलत है! अब तो सब कुछ गलत लगता है, सही भी गलत है और गलत तो खैर गलत ही लगता है और अब तो यह प्रेम करना भी गलत ही लगता है।



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