सपनों को पाने की चाह

सपनों को पाने की चाह

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आज मेरे सामने मीडिया की भीड़ है, मैं हमेशा कैमरे के सामने आने से बचता रहा क्योंकि मैं चाहता था कि मेरी बेटी को कोई ऐसा ना कहें कि वह अपने पिता के बलबूते इस स्थान पर पहुंची है। यह वाकई में उसकी मेहनत का ही नतीजा है कि आज उसने ओलंपिक्स में पहले स्थान पर भारत का नाम ऊंचा किया है, जी हां, मेरी बेटी ने जिमनास्टिक में प्रथम स्थान प्राप्त किया है और इसलिए आज मैं मीडिया के सामने आ रहा हूं क्योंकि मैं एक कोच पहले और उसका पिता बाद में हूं।

मुझे लोग कोच नितिन शाह के नाम से जानते थे पर गर्व है कि अब मैं नूपुर शाह के पिता के नाम से जाना जाऊंगा।

इतने में नुपूर शाह वहां से बाहर आती है और सारी मीडिया नूपुर पर टूट पड़ती है।

सब के एक से एक सवाल होते और नुपूर उनका जवाब देते हुए कहतीं हैं कि,

मैं भी आम लड़कियों की तरह थी मुझे जिमनास्टिक ट्रेनिंग पहले बहुत ही आम सी लगती थी, बस वही रोजाना की तरह सुबह और शाम एक एक घंटे की ट्रेनिंग कंप्लीट करना और फिर अपने घर जाना। ऐसा लगता था कि मेरे पापा अपने सपनों को मुझ पर थोप रहे हैं और मुझे ना जाने क्यों इस ट्रेनिंग में बिल्कुल भी रुचि नहीं थी।

जब 18 साल की थी तब मुझे पता चला कि मेरे पापा का सपना मुझ से नहीं जुड़ा है बल्कि 5 साल की एक लड़की निशा से जुड़ा है। मैंने उसे कभी नहीं देखा है पर हां मैं इतना जरूर जानती हूं जो कि मैंने मेरे पापा से सुना है, अगर वह होती तो आज मेरे जैसी होती।

लोगों ने नितिन शाह से पूछा कि, निशा कौन है ?

उन्होंने एक लंबी सास भरते हुए कहा,

25 साल पहले मेरी ट्रेनिंग सेंटर में एक लड़की आई थी, जिसका नाम निशा था, वो महज पांच साल की थीं। उसके माता-पिता मुझसे पूछ रहे थे, क्या यह जिमनास्टिक कर सकतीं हैं? और उसने खुद कहा हां मैं कर सकती हूं, उसकी चंचलता ने मेरा मन मोह लिया था क्योंकि वो थीं तो छोटी पर बातों से बड़ी समझदार लगती थी। उसने जो एक साल की ट्रेनिंग होती है, उसे सिर्फ 6 महीने में हासिल कर लिया था और मुझसे कहतीं थीं कि मैं एक दिन बहुत बड़ी बनूंगी कि सब लोग मुझे पहचानेंगे। मैंने उसकी रूचि को देखकर उसके माता-पिता से बोला था कि मै एक दिन जरूर निशा को ओलंपिक तक ले जाऊंगा और इसलिए उसकी ट्रेनिंग में बखूबी बड़े ढंग से लिया करता था। एक दिन जब उसके माता-पिता और मैं उसके बारे में बात कर रहे थे तो बातों ही बातों में पता ना चला कि निशा ने कब अपना हाथ छुड़ा लिया और वहां से चली गई। थोड़ी देर बाद हमने देखा कि वो वहां पर नहीं थी और नीचे से कुछ लोगों के चिल्लाने की आवाज आ रही थीं। मेरी ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट की बिल्डिंग में कन्स्ट्रक्शन का काम चालू था, शाम के कुछ 7:00 बजे होंगे जब सभी मजदूर के जाने का समय होता है, ये चिल्लाने की आवाज उन्हीं मजदूरों की थीं। हमने जब नीचे जाकर भीड़ को हटाते हुए झाँक कर देखा तो निशा दस मंजिलें से नीचे गिरी हुई थीं, आसपास खून बह रहा था और उसके सफेद कपड़े पूरी तरह से लाल हो चुकें थें, हमारे पैरों तले जमीन खिसक गई, वह दिल दहला देनेवाला मंजर था। हम दौड़ते हुए नीचे गए और पता चला कि निशा की मौत हो चुकी थीं। उसकी मां वहीं पर बेहोश हो गयीं, हम उन्हें अस्पताल ले गए।

उस दुखद घटना के बाद से मैं दिल्ली छोड़ कर वापस अहमदाबाद में आ गया और जिमनास्टिक की ट्रेनिंग भी बंद कर दिया क्योंकि मैंने सोच लिया था अब मैं ये कभी नहीं कर सकता। लगभग एक साल तक निशा की बातें मेरे कानों में गूंजती रहतीं थी कि मैं आगे जाकर बहुत बड़ा नाम नाम करूगीं और मेरा भी एक सपना था कि मैं निशा को खुद एक दिन ओलंपिक तक लेकर जाऊंगा। अब तो मैंने ट्रेनिंग देना भी छोड़ दिया था, फिर जाने क्यों सोचता था तो, एक पछतावा सा होता था कि मैं उसका सपना पूरा नहीं कर पाया। एक दिन अचानक ही मेरी बीवी ने मुझसे कहा कि हम एक काम करते हैं, क्यों ना! हम निशा की याद में एक बच्ची को गोद ले लेते हैं। आप उसे जिम्नास्टिक्स सिखाना और आपका सपना भी पूरा हो जाएगा और शायद निशा जहाँ होगी ये देखकर खुश होगी।

इस प्रकार आपको उसमें निशा की झलक भी मिलने लगेगी, ये सुनकर दिल को एक तसल्ली सी मिलीं और मैंने पाँच साल की बच्ची को गोद ले लिया। मैंने उसका नाम नुपूर रखा और बस, वहीं से मेरा, नूपुर को निशा बनाने का सफर शुरू हुआ, मै अक्सर निशा की झलक को नूपुर में देखना चाहता था, मैं चाहता था कि निशा तो नहीं रही पर उसका सपना पूरा हो जो मैंने और निशा ने देखा था।

इसलिए सालों बाद मैंने नूपुर को ट्रेनिंग देने की शुरूआत ताकि वो ओलंपिक में भाग लेने के लायक बन जाए। उसे दिन रात इस काबिल बनाने के लिए मैंने बहुत मेहनत किया है, एक से एक तकनीक सोची है कि उसे किस तरह से आगे बढ़ाया जा सकता है क्योंकि ओलंपिक तक आना कोई छोटी बात नहीं। मैं नूपुर से यह राज छुपाए रखना चाहता था पर एक दिन अचानक ही उसने मेरी डायरी पढ़ ली जिसमें मैंने निशा के बारे में उन दिनों लिखा था। नूपुर मुझसे पूछने लगे कि निशा कौन है मैं बताना नहीं चाहता था पर उसके लाख पूछने पर मैंने उसे बताया और जिस दिन से नूपुर को निशा के बारे में पता चला मैंने उसके अंदर बहुत बड़ा परिवर्तन देखा।

मैंने देखा कि अब वह ट्रेनिंग खुद-ब-खुद करने लगी थी, वह सुबह जल्दी उठती और ट्रेनिंग सेंटर पर पहुंच जाते थीं और रात में वह मेरे साथ ही घर पर आती थी। उसकी लगातार मेहनत ने उसे यहां पर पहुंचाया है और मैंने आज तक किसी ने भी वो रुचि नहीं देखी जो मैंने अपनी बेटी नूपुर में देखा है। मुझे लगा कि शायद उसे इस बारे में जानकर अच्छा नहीं लगेगा कि मैंने उसे गोद लिया हैं पर मैंने देखा है कि जब से उसे यह पता चला कि मैंने उसे गोद लिया है, उसने जिंदगी को एक अलग नजरिये से देखना शुरू किया और मुझे गर्व है कि वो मेरी बेटी है। इतना कहते हुए नितिन शाह की आंखों में आंसू आ जाते हैं और देखते ही देखते वहां पर मौजूद सभी की आंखों से आंसू गिरने लगते हैं।

अंत में नूपुर शाह और नितिन शाह (बाप और बेटी) एक दूसरे का हाथ पकड़ कर वहां से जाने लगते हैं, उनके साथ एक टीम कुछ लोग होते हैं जिनके हाथों में नुपूर की ट्राफी होतीं हैं। वो चले जाते हैं पर पीछे भारत का झंडा लहराता हुआ दिखाई देता है।


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