बालकनी में कौआ

बालकनी में कौआ

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 कुछ दिनों पहले ही मैंने एक नया घर लिया है, मुझे यहाँ पर सब कुछ बहुत पसंद है बस नहीं पसंद है, तो एक कौवे की आवाज! जो अक्सर मेरी बालकनी में आता है और कांव-कांव करता रहता है। मुझे उसकी वह कर्कश आवाज बिल्कुल पसंद नहीं इसलिए मैंने अपने खिड़कियों के बाहर कांच लगा दिया है और खिड़कियों को हर वक़्त बंद रखती हूं। इतना होने के बावजूद भी वो कौआ कांच पर अपनी चोंच से मारता रहता है। ये सिलसिला कुछ तीन महीनों तक चलता रहा इन दिनों में अजीब बात यह हुई कि, आज कल मुझे वो कौआ दिखाई नहीं देता तो बातों ही बातों में मैंने सिक्योरिटी गार्ड से कहा कि एक कौवा था, जो मुझे बहुत परेशान करता था और आज कल दिखाई नहीं देता। 

उसने कहा कि कुछ दिन पहले ही वो कौआ मर चुका है, मेरे मुंह से न जाने क्यों निकला कि चलो अच्छा ही हुआ। (हाय! मैं कितनी कठोर थी) 

तब उस सिक्योरिटी गार्ड ने मुझसे कहा "मैमसाहब, इसमें उस कौवे की बिल्कुल गलती नहीं है। बात ऐसी है कि आप से पहले जो मैडम यहां रहती थी उन्होंने उस कौवे को अपने बालकनी में रखा था क्योंकि हमारे यहां पर पुराना पीपल का पेड़ था और जब उस पीपल के पेड़ को काटा गया तो वहाँ घोसले में चार कौवे के छोटे बच्चे थे जिनकोे पाल पोस कर उन्होंने ही बड़ा किया था। वैसे तीन तो कब के मर चुकें हैं यह आखरी था , कुछ दिनों पहले ही यहाँ मरा हुआ जमीन पर पड़ा था।"

वो उन दिनों सुबह होते ही उनकी बालकनी में आता और मैडम उसे रोटियां तोड़ कर खिलाती थी और एक कटोरी में पानी भर कर रखा करतीं थी। एक साल पहले ही एक दुर्घटना में उनकी मौत हो गयी, उसके बाद से यह घर बंद था। जब आप आयीं तो उसे लगता था कि शायद उसकी मैडम वापस आ गई हैं और उसी की वजह से वो बाहर खिड़कियों के चक्कर लगाया करता था।" मैं सिक्योरिटी गार्ड की बातें सुनकर बहुत ही आश्चर्य में थीं और आंखों से आंसू भी बह रहें थे। उस दिन मुझे बेहद अफसोस हुआ कि मैं इंसान होकर भी दया ना दिखा पाई और वह एक पंछी होकर भी अपने दिल में इंसानियत की झलक दिखा गया। 

 मैंने जो भी किया वह सबसे बड़ी गलती थी, भले ही वो अनजाने में क्यों ना हुई हो, और उसी का पश्चाताप करने के लिए मैंने अब अपनी खिड़की के बाहर के कांच निकलवा दिए। अब मैं खिड़कियों में चिड़ियों के लिए पानी और दाने रखा करती हूं। सभी पंछी वहाँ आते हैं दाने खाया करते हैं, पानी पीते हैं और फिर चले जाते हैं। उन्हें देखकर मुझे अब एक अलग सा सुकून मिलता है और कहीं ना कहीं दिल में एक अफसोस होता है कि काश वो कौआ फिर से वापस आ जाए क्योंकि उस कौवे के बिना ये बालकनी सूनी-सी लगती है।


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