Madhu Vashishta

Abstract Classics

4.5  

Madhu Vashishta

Abstract Classics

सासू मां मुझे तो अलग ही कर दो।

सासू मां मुझे तो अलग ही कर दो।

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मालूम नहीं यह कोरोना खत्म कब होगा, ज्योतिषी तो कह रहे थे, इससे पहले कि मीना कुछ भी कहती, कविता गुस्से से बोली, यार चुप कर ,मुझे कुछ नहीं जानना। दोनों लंच टाइम में ऑफिस में बैठकर खाना खा रही थी। कविता को गुस्से में देख कर मीना ने पूछा, तेरी सीट पर कोई टेंशन है क्या? आज काम ज्यादा है क्या ? कोई मीटिंग की प्रेजेंटेशन या प्रिपरेशन है? अरे यार ऐसा कुछ नहीं है कविता बोली, यह चीजें मुझे परेशान नहीं करती। परेशान करती है तो घर में मेरी जिठानी, और सासू मां भी उसके साथ ही मिल जाती है। पर तू तो कह रही थी कि घर में सब कोई बहुत अच्छे हैं।

तो मैंने अब कब मना करा कि वह अच्छे नहीं हैं? मैं तो उनकी सनक से परेशान हूं। मेरी जिठानी को हर 10 दिन बाद कोई नई सनक लग जाती है, जिसके चक्कर में कि मेरा सारा काम रह जाता है और मैं मुश्किल में आ जाती हूं।

अभी कुछ दिन पहले उन्हें घर की सफाई की सनक लगी। पुरानी पुरानी अलमारियां, बेड, छत जाने कहां-कहां चढ़कर सफाई नहीं कर रही थी। मेरे कई इंपॉर्टेंट कागज उनकी सफाई में ही खो गए थे। हस्बैंड ने बहुत से पुराने बिल और पुरानी रसीदें जोकि ऊपर अलमारी के टांड में में संभाल कर रखी थी सब फेंक दी। डस्टबिन के कूड़े में से कागज छाँटते छांटते हम दोनों की पूरी रात गई और दफ्तर भी आना था। लगभग हर शनिवार इतवार मैं जो भी चाहती हूं वह कर ही नहीं पाती ।उन दोनों की सनक के कारण हर छुट्टी बर्बाद हो जाती है। सासू मां तो उसके सफाई करने से बहुत खुश थीं।

उसके बाद जेठानी जी को पूजा की सनक चडी। 5:00 बजे उठकर मंदिर में घंटियां बजाने लग गई। तो उससे तुम्हे क्या परेशानी है?भैया मुझे तो ऑफिस आना होता है,घर का सारा रूटीन ही बदल गया, 7:00 बजे तक उसके बच्चों को भी स्कूल जाना होता है, अब वह देर से निबट कर खाना बनाने में व्यस्त होती थी तो उनकी बेटी मेरे से कई बार चोटी बनवाने आ जाती थी या मैं अपना ब्रेकफास्ट बनाऊं तो वह बेटे के स्कूल के टिफिन में रख देती थी। सबको हर काम समय पर ही करना होता है और उसकी पूजा का पता नहीं कब तक चलेगी, यहां तक भी ठीक है, एकादशी ,अमावस, पूर्णिमा को तो उसे सुबह सुबह उसे मंदिर भी जाना होता था। पूजा के चक्कर में जो गैस धोने बैठ जाती है तो मुझे तो खाना इंडक्शन पर ही बनाना पड़ता था।

कपड़े सिलने की सनक आई तो मेरे सूट को ही फाड़ कर ननद रानी के मुन्ने का झबला बना दिया । कहती है यह बड़ा नरम कपड़ा था और तुम तो इस सूट को पहनती भी नहीं। सासू मां भी उस झबले देख कर खुश थी तो कुछ कह भी नहीं सकती। ऐसे ही कभी स्वेटर बुनने की ,योगा की, न्यूट्रीशन की, जाने किस किस चीज की सनक आती है और झेलनी मुझे पड़ती है।

आजकल उसको ज्योतिष का रोग लगा है, ऑफिस आते हुए मैने उससे गुस्से में पूछ लिया कि मुझे तो सिर्फ यह बता दो कि आपकी इन सनकों के लिए कौन सा ग्रह जिम्मेदार है। मैं तो बोल कर आ गई लेकिन मुझे पता है कि जाने पर महाभारत तो झेलनी ही होगी। सच कह रही हूं आज अगर बात बड़ी तो मैं घर में कह ही दूंगी कि सासू मां मुझे तो अलग ही कर दो।

पाठकगण आपका इस बारे में क्या ख्याल है? 


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