सासुमां की मैगी
सासुमां की मैगी
मायके से विदा होकर मैं अपने ससुराल की चौखट पर खड़ी थी। मन मे एक डर और अनगिनत सवाल की ना जाने सब लोग कैसे होंगे।मुझे मायके में एक एक चीज के लिए सलीके से सिखाया गया था या ये कहूँ की तोते की तरह रटाया गया था कि ससुराल में एक बहु को कैसे रहना ,उठाना, बैठना ,बोलना चाहिए। मैं भी एक बहु के रूप में अपने जीवन की नयी पारी की शुरुआत करने के लिए पूरी तरह तैयार थी। मेरे दिमाग मे सास की इमेज पूरी तरह से टीवी सीरियल वाली सास मतलब ललिता पवार और कोकिला बेन के जैसे थी। मैंने अपनी मां को भी हमेशा मेरी दादी से डर के और दबी आवाज में ही बात करते देखा सुना था, मेरी माँ बिना मेरी दादी से इज्जात लिए कोई काम नही करती थी। मेरा मायका पूरी तरह रुढ़िवादी सोच का था,जहाँ बहु बेटियों के लिए बहुत सारे नियम कानून थे।
कार घर की गेट पर खड़ी थी और मैं लंबा घूँघट किये कार के अंदर बैठी थी,तभी तेज कदमो से भागती हुई, मेरी सासुमां आ रही थी और उनके पीछे पीछे लोटे का पानी लिए मेरी बुआ सास भागते हुए आ रही थी।
तभी बुआ सास ने मेरी सासुमां सरला जी को डांटते हुए कहा"खबरदार जो कार की गेट खोली तुमने,बिना धार दिए बहु को उतारा तो,मुझसे बुरा कोई ना होगा आज भाभी जान लेना"
"अरे!जीजी गेट नही खोल रही मैं तो बहु का खिड़की से घूंघट ऊपर करने जा रही थी,बिचारी का दम घुट रहा होगा, ना जाने किसने बोल दिया इसको इतना लंबा घूँघट करने के लिए" ,मेरी सासुमां ने इतनी भोली शक्ल बना कर ये बात बोली कि मुझे हँसी आ गयी।
और उन्होंने खिड़की के अंदर हाँथ डाल कर मेरा घूँघट ऊपर करते हुए कहा"हाँ!अब अच्छा लग रहा है।बहु तुमने घूँघट क्यों किया?इतनी प्यारी सी गुड़िया जैसी सुन्दर मेरी बहु है,तुम्हें कोई जरूरत नही ये सब करने की"
अरे!जीजी आप लोटा दो इधर। मुझे यू घुर के मत देखो,जल्दी से लोटे का जल अपने हाँथ में लेकर फ़टाफ़ट से रस्म पूरी की लेकिन इनसब के बीच मे बुआ सास भुनभुनाती रही।
मुझे कार से उतार कर वो सीधा एक कमरे में लेकर गयी। जिसके बगल के कमरे में रसोई थी मेहमानों से पूरा घर भरा हुआ था,भारी लहंगे गहनों से लदी हुई मैं कमरे में अकेली बैठी हुई थी, मुझे सुबह सुबह चाय पीने की आदत थी, जिसकी वजह से मेरा सिर दर्दभी हो रहा था लेकिन कहुँ तो कहूं किससे।
तब तक बुआ सास ने कहा"अभी बहुत काम है भाभी। उठो,जल्दी करो सारे रीति रिवाज निभाने हैं।"
तब तक मेरी सासुमां ने कहा"देखो,जीजी बात साफ साफ है,मुझे सुबह सुबह चाय पीने की आदत है,और अब मेरा सिर दर्द से फटा जा रहा है,मुझ से ये सब कुछ नहीं हो पायेगा।"
तभी बुआ सास ने कहा"जब सास ही रस्म रिवाज नही निभाएगी ।तो बहु क्या खाक रीति रिवाजों को मानेगी। वो तो आज के जमाने की मॉडर्न लड़की ठहरी।"
मैं सब कुछ चुपचाप देख सुन रही थी सब अपने अपने काम मे व्यस्त थे रसोई में कोई नही था।
फिर सासुमां सरपट उठी कमरे के बाहर गर्दन निकाल कर उन्होंने चारो तरह देखा और कमरे का दरवाजा बंद कर लिया।
दरवाजा बंद होते मैं डर गयी। ये सोचकर कि इन्होंने आखिर दरवाजा क्यों बंद कर लिया?
दरवाजा बंद करके वो वो किचन की तरफ चली गयी, और मैं मारे डर के चुपचाप बेड पर बैठी रही।
थोड़ी देर में उनके हाँथ में दो प्लेट में मैगी और दो कप चाय देखकर मैं चौक गयी।
मैगी की प्लेट देते हुए उन्होंने कहा" सिर दर्द हो रहा है ना मुझे बताया था समधन जी ने तुम्हें सुबह सुबह चाय पीने की आदत है चलो अब खाओ,मुझे पता है तुमने कल से कुछ नही खाया है भूख लगी होगी, मुझे भी भूख लगी है चलो खा लो वरना ठंडी हो जाएगी।"
अब मेरी आँखों मे आंसू थे। ये आंसू खुशी और संतोष के थे कि मेरी सासुमां सास नही सिर्फ माँ है,जो मेरे लिए किसी वरदान के कम नही था।
तभी खिड़की की तरफ से हमे मैगी खाता देखकर बुआ सास ने अपना माथा पीटते हुए कहा"हाय!राम,मैं यहाँ कब से आवाज लगाये जा रही हूँ और ये सास बहू दरवाजा बंद करके मैगी खा रही है,अभी पूरी रस्म होनी बाकी है।"
चम्मच से मैगी खाते खाते माँजी ने कहा "अब कोई रस्म ना होगी जीजी, अब बस । मेरे और बहू के साथ साथ आप सब भी रात भर जगकर थक गई होंगी बस बहुत हो गया। अब आप सब भी आराम कीजिये और मुझे और बहु को भी आराम करने दीजिए।"
मैंने उनकी तरफ निगाहे उठाकर आश्चर्य से देखा ।तो उन्होंने कहा,"बहु ये रीति रिवाज मैं नही मानती, मेरे लिए मेरे परिवार की खुशियां पहले मायने रखती है। रिवाज वही निभानी चाहिए तो खुशी दे तकलीफ नही। तुम भी अब निश्चिन्त होकर कपड़े बदल कर आराम करो मैंने सलवार कमीज वहाँ रखी है। बाकी सबको मैं अपने हिसाब से हैंडल कर लुंगी।
औऱ मेरी शादी की सारी रस्म मैगी खा कर खत्म हो गयी। आज मुझे अपना ससुराल अपने मायके से ज्यादा प्यारा है क्योंकि यहाँ मुझे मेरी पसंद के कपड़े पहनने से लेकर खाना खाने, घूमने फिरने हर चीज की पूरी छूट है।
मेरा अनुभव ये कहता है कि जरूरी नही की हर मायका सिर्फ अच्छा ही होता है और ससुराल खराब और रूढ़िवादी सोच का। ससुराल भी अच्छी हो सकती है बस जरूरत है सबको अच्छे सोच और विचार रखने की।