साहस की चिड़िया
साहस की चिड़िया
साहस की चिड़िया
गौरी की सुबह रोज़ सूरज की पहली किरण के साथ होती थी। आँचल में दूध की बोतलें, टोकरी में ताज़ी सब्ज़ियाँ, और माथे पर चमकती बिंदिया—गाँव की सबसे चपल और समझदार लड़की कही जाती थी वह।
गाँव का बाज़ार, जो हफ्ते में दो बार लगता था, उसके लिए सिर्फ़ ख़रीद-फ़रोख्त की जगह नहीं था, बल्कि एक उत्सव की तरह था। वहाँ लोगों की चहल-पहल, रंग-बिरंगी दुकानों की सजावट, और मिट्टी के दीयों से लेकर रंग-बिरंगी चूड़ियों तक हर चीज़ में एक कहानी बसी होती थी।
आज मंगलवार था। खेतों से लौटते ही गौरी ने माँ से कहा,
"अम्मा, आज मैं अकेली जाऊंगी बाज़ार।"
माँ मुस्कराईं, आँखों में विश्वास के दीप जल उठे।
"जा बिटिया, मगर मोलभाव मत भूलना!"
लेकिन आज गौरी की नज़र सिर्फ़ सौदों पर नहीं थी। वह पहली बार अपनी बनाई हुई मिट्टी के दीये, घर का अचार, और रंगीन चूड़ियों की दुकान सजाने वाली थी।
टोकरी सजाते समय उसके मन में कई सवाल कौंध रहे थे—क्या गाँव वाले मेरी बनाई चीज़ों को पसंद करेंगे? क्या वे मुझे हल्के में लेंगे? क्या कोई खरीदेगा भी?
हाथों में कंपन थी, पर कदमों में हिचक नहीं थी। कुछ तो था उसके भीतर जो कह रहा था—"कोशिश तो कर!"
बाज़ार में पहुँचते ही उसकी टोकरी लोगों से घिर गई।
"अरे! ये तो बड़ी खूबसूरत चूड़ियाँ हैं!"
"अचार में बड़ी खुशबू है बहन!"
"दीये तो जैसे उजाला खुद माँग रहे हों!"
गौरी की आँखों में चमक थी। हर खरीदार में वह अपने सपने पूरे होते देख रही थी। लेकिन उसके भीतर का वह छोटा कोना अब भी खाली था—आत्मविश्वास का।
तभी स्कूल की अध्यापिका मिस शुक्ला आईं। उन्होंने दीयों को नज़दीक से देखा और मुस्कराकर कहा,
"गौरी, तुमने जो किया है, वह बहुत बड़ी बात है। तुम हमारी प्रेरणा बन सकती हो।"
गौरी की मुस्कान सूरज की पहली किरण जैसी चमक उठी। वह थमे-थमे आत्मविश्वास का झरना अब बह चला था।
पास खड़ी सुमन, जो अब तक चुपचाप देख रही थी, बोली —
"दीदी, अगले हफ्ते मैं भी अपनी बनायी रंगोली के डिज़ाइन लेकर आऊँगी!"
गौरी ने हौले से सिर हिलाया। उसकी मुस्कराहट अब अकेली नहीं थी — उड़ान अब सामूहिक थी।
उसे अब समझ आया कि बाज़ार सिर्फ़ सामान बेचने की जगह नहीं है—यह सपनों को उड़ान देने की जगह भी है।
संदेश:
जब एक लड़की अपने हुनर और आत्मविश्वास से गाँव के बाज़ार में कदम रखती है, तो वह सिर्फ़ सामान नहीं बेचती—वह समाज की सोच बदलती है।
