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Kalpesh Patel

Drama Romance Tragedy

4.5  

Kalpesh Patel

Drama Romance Tragedy

रूठी चाँदनी

रूठी चाँदनी

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रूठी चाँदनी
(By Kalpesh Patel)

आधी रात थी।
आसमान में चाँद पूरा था — मगर उसकी रौशनी में भी एक उदासी थी।
श्यामू छत पर बैठा था, सिर झुकाए।
हवा में वही जानी-पहचानी खुशबू थी —
ऋति की चुन्नी की, जो अभी भी आँगन की डोरी पर टँगी थी।

सुबह वो चली गई थी —
“तुमसे बातें करना जैसे दीवार से टकराना है, श्यामू,”
बस इतना कहकर वो दरवाज़ा बंद कर गई थी।

श्यामू ने कोई जवाब नहीं दिया था —
क्योंकि जवाब उसकी आँखों में था, होंठों पर नहीं।

गाँव के मन्दिर में हर शाम आरती होती थी।उस दिन पंडित ने कहा,
“श्यामू, आज तेरा चेहरा बुझा-बुझा क्यों है?”

श्यामू मुस्कुराया —
“रूठे रब को मनाना आसान है, पंडितजी…
पर रूठी ऋतिके प्यार को मनाना मुश्किल है।”

पंडित चुप हो गया —
शायद उसने भी किसी अपने को खोया था कभी।

रात को जब चाँद निकला,
श्यामू ने धीरे से आसमान की ओर देखा —
“ऋति, तू सच में नाराज़ है, या बस परखी रही है मुझे?”

हवा चली, और चाँदनी उसके चेहरे पर गिर पड़ी।
उसे लगा जैसे ऋति का हाथ उसके बालों पर फिर गया हो।
वो आँखें बंद करके बोला —
“तू ना सही, तेरी याद ही सही…”

महीने बीत गए।
एक दिन, सावन की बारिश में दरवाज़े पर दस्तक हुई।
श्यामू ने दरवाजा खोला —
सामने ऋति खड़ी थी, भीगी हुई, काँपती हुई।
बोली,मुझे माफ़ करदे, ऐ  मेरे साजन,
“रूठे प्यार को मनाना मुश्किल था…
पर श्यामू,तेरे बिना जीना और भी मुश्किल निकला।”
श्यामू कुछ नहीं बोला — बस मुस्कुरा दिया।
आँगन में फिर वही चाँदनी फैली —
मगर अब वो रूठी चाँदनी नहीं थी,
बल्कि मन्नी हुई मोहब्बत बन चुकी थी।



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