दीरू की दावत.
दीरू की दावत.
दीरू की दावत
(एक पारसी स्टाइल बाल-कथा)
बंबई के पुराने मोहल्ले में, जहां बिल्लियाँ भी चाय पीती थीं और बच्चे पतंग उड़ाते-उड़ाते समोसे मांगते थे, वहीं रहता था दीरू — एक छोटा सा शरारती बच्चा, जो खुद को “चोर नंबर एक” कहता था।
लेकिन उसकी चोरी में कोई डर नहीं था — बस हँसी थी।
कभी स्कूल की घंटी गायब, कभी चायवाले चाचा की टोपी उड़नछू, और एक बार तो पुलिस अंकल की मूंछों पर रंग लगा दिया!
🕵️♂️ पुलिस अंकल बोले...
“दीरू बेटा, तू चोर नहीं — तू तो बंबई का छोटा हीरो है! लेकिन हीरो भी अगर दूसरों को परेशान करे, तो वो विलेन बन जाता है।”
दीरू ने सिर झुका लिया।
“मैंने मज़ाक किया था, लेकिन सबको बुरा लगा। अब क्या करूँ?”
🎉 दीरू की दावत
दीरू ने सोचा — माफ़ी माँगने का सबसे अच्छा तरीका है दावत देना!
उसने चायवाले चाचा से कटिंग चाय मंगवाई, समोसे तले, और बिल्लियों के लिए दूध रखा।
स्कूल की घंटी वापस दी, और सबको बुलाया —
“आओ दोस्तों! आज मेरी दावत है — माफ़ी वाली!”
बच्चे आए, पुलिस अंकल आए, और बिल्ली मौसी भी आई — चश्मा पहनकर!
दीरू ने सबके सामने कहा:
“सॉरी! अगली बार शरारत में हँसी होगी, परेशानी नहीं। और दावत में मिठाई होगी, चोरी नहीं!”
🍮 अंत में...
पुलिस अंकल ने दीरू को “सच्चा हीरो” का बैज दिया।
चायवाले चाचा बोले, “अब तू मेरी दुकान का ब्रांड एम्बेसडर है!”
और बिल्ली मौसी ने कहा, “म्याऊ मतलब माफ़ी मंज़ूर!”
---
🌟 सीख:
माफ़ी माँगना कोई समोसा नहीं — लेकिन दिल से दो, तो सबका मन भर जाता है।
और हाँ, दीरू की दावत में सबसे खास चीज़ थी — सच्चाई की मिठास।
---
