भंवरे की गूंज
भंवरे की गूंज
भंवरे की गूंज
(एक प्रेम कथा)
सुब्ह की पहली किरण जैसे ही गुलाबों पर पड़ी, बग़ीचे में भंवरों की गूंज गूंजने लगी। उसी बग़ीचे में, नूरी हर रोज़ की तरह अपने अब्बू के साथ फूलों को पानी दे रही थी। लेकिन उसकी निगाहें किसी और को तलाश रही थीं.....
अल्ताफ को।,अल्ताफ, जो उसी मोहल्ले की मस्जिद में इमाम साहब का बेटा था, हर रोज़ सुबह की नमाज़ के बाद बग़ीचे के पास से गुज़रता। उसकी नज़रें भी नूरी की तलाश में होतीं। दोनों की निगाहें मिलतीं, और भंवरों की गूंज जैसे दिलों की धड़कनों में बदल जाती।
लेकिन मोहब्बत इतनी आसान कहाँ होती है?
नूरी के घरवाले चाहते थे कि उसकी शादी एक अमीर ज़मींदार के बेटे से हो। और अल्ताफ के अब्बू को डर था कि मोहब्बत की राह इज़्ज़त और रस्मों की दीवारों से टकरा जाएगी।
एक दिन, जब नूरी ने अल्ताफ को खत में लिखा —
भंवरे की गूंज तो सब सुनते हैं, पर फूल की तड़प कोई नहीं समझता। अगर तुम मेरी खुशबू हो, तो मैं तुम्हारी परछाईं बनकर रहना चाहती हूँ।
अल्ताफ ने जवाब दिया.;दुनिया अगर दुश्मन है, तो हम भंवरों की तरह उड़ेंगे, गूंजते हुए, एक-दूजे के इर्द-गिर्द।
फिर एक रात, जब चाँदनी ज़रा ज़्यादा चुप थी, नूरी और अल्ताफ ने उस बग़ीचे में मिलने की ठानी। लेकिन मोहल्लेवालों को भनक लग गई। शोर मचा, लोग इकट्ठा हुए, और दोनों को अलग करने की कोशिश की गई।
पर तभी, नूरी ने सबके सामने कहा,
अगर मोहब्बत गुनाह है, तो मैं हर जनम ये गुनाह करना चाहूँगी। और अगर इज़्ज़त सिर्फ डर में है, तो मैं वो इज़्ज़त नहीं चाहती।
अल्ताफ ने उसका हाथ थामा और कहा ;
हम भंवरे हैं, हमारी गूंज को कोई रोक नहीं सकता।
मगर मोहब्बत की राह आसान कहाँ होती है?
दुनिया उनकी दुश्मन बन गई — मज़हब, रस्में, इज़्ज़त, सबने दीवारें खड़ी कर दीं.
नूरी के लिए एक अमीर रिश्ता तय हुआ, और अल्ताफ को धमकियाँ मिलने लगीं।
एक रात, जब चाँदनी भी उदास थी, दोनों बग़ीचे के पुराने कूएँ के पास मिले।
नूरी ने कहा:
अगर ये जन्म हमारा नहीं, तो चलो खु़दा से अगला जन्म माँगते हैं — ऐसा जहाँ कोई दीवार न हो, कोई बंदिश न हो।
अल्ताफ ने उसका हाथ थामा और बोला:
अगर हमें साथ जीने नहीं दिया गया, तो चलो साथ मरकर खु़दा से ज़िंदगी की भीख माँगते हैं — एक साथ की, एक जन्म की नहीं, हर जन्म की।
और फिर, दोनों ने उस कूएँ में छलाँग लगा दी —
जैसे दो भंवरे, जो एक ही फूल की तलाश में उड़ते-उड़ते थक गए हों।
सुबह जब लोग बग़ीचे में पहुँचे, तो सिर्फ़ एक चिट्ठी मिली:
हमने भंवरों की तरह उड़ना चाहा, पर पंख कतर दिए गए। अब हम उस खामोशी में उतर रहे हैं, जहाँ से सिर्फ़ खु़दा की आवाज़ आती है। अगर मोहब्बत गुनाह है, तो हम हर जन्म में यही गुनाह करेंगे।
नूरी और अल्ताफ.
कहते हैं, उस कूएँ को अब कोई नहीं छूत. पर हर बसंती सुबह, जब भंवरे गूंजते हैं, लोग कहते हैं,
ये नूरी और अल्ताफ की मोहब्बत की गूंज है, जो मौत से भी ज़िंदा है।

