Sangita Tripathi

Abstract

0.5  

Sangita Tripathi

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रंग होली के

रंग होली के

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यादों के झरोखों को खोलती हूँ तो शादी के बाद की वो पहली होली याद आ जाती हैं अर्पित। मेरा और तुम्हारा पहला रंगों का त्यौहार । शादी के ठीक एक महीने बाद, । होली तो पहली बार मायके में होती हैं सो मैं अपने पीहर में थी पर मन तुम्हारे पास छोड़ आई थी। होली का ये रंग बिरंगा त्यौहार मुझे बहुत पसंद था। पर शादी के बाद पता नहीं क्यों मैं उत्साहित नहीं थी। माँ ने तुम्हे बुलाया था पर तुमने आने से मना कर दिया की यहाँ मम्मी -पापा अकेले रह जायेंगे।

वहां तनु तो आपके पास हैं। तुम्हारी बात सही हैं फिर भी जाने क्यों तुम्हारे बिना मन नहीं लग रहा। मुझे खुद भी आश्चर्य हैं खुराफाती फितरत वाली मैं इतनी शांत हो गई।.. माँ और भाभी ने मुस्कुरा कर पूछा भी अर्पित की याद आ रही।

उनको मुस्कुराते देख मैं गुस्से से हट गई। बाहर होलिका दहन शुरू हो गया तभी कालबेल बजी माँ ने आवाज दिया देखो कौन हैं। बेमन से उठी और दरवाजा खोला तो अचम्भित रह गई मेरे सास -ससुर सामने थे। मेरी नजरें इधर उधर घूम रही थे तभी गालों पर किसीने ग़ुलाल लगा कर हैप्पी होली बोला पलट कर देखा तो अर्पित मुस्कुरा रहे थे कैसा लगा हम लोगों का सरप्राइज। पीछे माँ भाभी और सासू माँ की मिली जुली हँसी सुनाई दी मैं शर्मा कर भाग गई।


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