# मै एक नारी हूँ #सबला
# मै एक नारी हूँ #सबला


नारी... शब्द अपने में अनगिनत कहानियाँ समेटे हुए है। कहीं अबला तो कहीं सबला.. कई रूप में देखी जाती है। कई बार एक सबला भी कहीं किसी जगह अबला बन जाती है,। चाहते हुए भी कोई प्रतिरोध नहीं कर पाती, जबकि वो अपने को मजबूत मानती है, एक अंह उसे झुकने या मानने नहीं देता ये।
ऐसी ही एक मालिनी की कहानी है, जो आत्मविश्वास से भरपूर, जिंदगी को जिंदादिली से जीती। कई नारियों की नायिका है। उसके साहस की सराहना सब करते है। सबको लगता की उसके घर में उसका साम्राज्य है, और उसी की चलती है। पर यथार्थ कुछ और है.. एक अबला तो अपने आँसू...., सबके सामने दिखा देतीं पर जो सबला है वो कैसे दिखाये ..। कितने किरदार जीती है एक नारी.... अपने जीवनकाल में।
मालनी जब पिता के घर में थी तो बहुत शरारती कन्याओं में जानी जाती थी... सारे खेलकूद लड़कों वाले थे। सिर्फ उसकी शारीरिक बनावट लड़की की थी, पर शौक, क्रियाकलाप, कपड़े सब लड़कों वाले। पिता जब कभी डांटते तो मुस्कुरा कर बोलती... मै तो बेटा हूँ ना आपकी... फिर आप क्यों डरते है लोगों के कहने से...,.और आपका ये छुटका, जो बड़ा बेटा बनता फिरता है कुछ काम नहीं आयेगा । पिता की लाड़ली थी तो उसकी आँखों में आँसू वो देख नहीं पाते...। माँ जब चिल्लाती कि चेहरे पर चोट के निशान पड़ जाएगा तो कोई शादी नहीं करेगा तुझसे....। मालनी उतने ही शांत हो कर बोलती थी.. मै ही क्यों करुँगी ऐसे लड़के से शादी... जो रूप और रँग देखेगा। वैसे भी अपुन आप लोगों को छोड़ कर कहीं नहीं जाएगा... कह माँ को जीभ दिख भाग जाती थी... माँ अपनी बेटी पर मन ही मन बलिहारी हो जाती... अपने हाथ जोड़ अदृश्य शक्ति से प्रार्थना करती... मेरी इस लड़की को अच्छा घर -वर देना प्रभु।... पर प्रकट में गुस्सा कर बोली...ये इस घर से जाये तो मै गंगा नहा लू... मालनी भी कम नहीं थी... बोली मै ही ले चलूंगी तुझे गंगा स्नान को... ये भी जान लो...।
समय पर सुयोग्य वर देख पिता ने कुछ शगुन दे रिश्ता पक्का कर दिया... मालनी को पता चला तो हाहाकार मच गया... किसने कहा था आपको शादी तय करने को...। पिता ने बहुत समझाया की लड़का बहुत अच्छा है..। फिर शादी होने से तो तू बदल थोड़ी ना जाओगी... बेटी ही रहोगी इस घर की...। और मेरी नौकरी... मालनी के बोलने पर, पिता बोले उनलोगों को कोई दिक्कत नहीं है तुम्हारे नौकरी से.... ये भी नारी का रूप है हर तरह से निर्भर होते हुए भी, उसे दूसरों पर निर्भर बनाया जाता है।
साड़ी में, शादी के मंडप में बैठी, धीर गंभीर अपनी बेटी देख पिता की आँखों में आँसू आ गये... माँ के आँसू तो रुक ही नहीं रहे थे. . ये कैसी रीत है जो अपने ही दिल के टुकड़े को दूसरों को सौंपना पड़ रहा..। नारी का ये अविस्मरणीय किरदार है जो अपने ही अंश को दूसरों को देना पड़ता है...। ये नारी का ही विशाल ह्रदय है, जो वो अपना घर छोड़ एक अजनबी के साथ, चली जाती है.... हाँ नारी का हर रूप बहुत बड़े ह्रदय को दर्शाता है..। सिर्फ एक चुटकी सिंदूर और सात फेरे उसके जीवन को बदल देते है। विदाई की बेला देखी नहीं जा रही थी किसी से, बड़ी मुश्किल से बाप - बेटी को अलग किया गया।
वहीं मालनी अब सयानी हो गई.. पहले तो दबी सहमी रहती थी... पर कुछ घटनाओं ने उसका जीवन बदल दिया....। पति को जी जान से प्यार करने वाली मालनी बदल गई... साड़ी पहन बिंदी सिंदूर सब लगाती थी .... क्योंकि पति को यहीं पसंद था...। नौकरी पर जाती तो सलवार सूट पहनती... ऑफिस में फॉर्मल ड्रेस पहनना होता तो बैग में वो कपड़े ले जाती.. वहां बदलती थी... पर रोज रोज इससे दिक्कत होने लगी.. क्योंकि उसके सैलरी पति से ज्यादा थी तो पति नहीं चाहते वो जॉब छोड़े... कहसुन कर सासू माँ से फॉर्मल पहनने की परमिशन दिला दी...।
धीरे धीरे मालनी अपने पुराने रूप में आने लगी, किसी को कुछ परेशानी हो मालनी हाजिर.... किसी के पति कहीं और चक्कर में पड़े तो मालनी सखी संग, साथ जा पति को समझा बुझा ले आई... कहीं बच्चों की प्रॉब्लम तो मालिनी समाधान करती.... इनसब चक्कर में मालनी का पति कब हाथ से फिसल गया... पता ही नहीं चला
उस दिन मुनीश ने कहा दिया मै तुम्हारे साथ नहीं रह सकता .. दो बड़े बच्चों को वो कैसे मुँह दिखायेगी... "समाज में सबला बनी, कैसे वो अपना अबला रूप दिखा पायेगी".... रात बीती सुबह हुई मालनी कमरे से बाहर नहीं निकली... बच्चों ने दरवाजा खटखटाया, जब नहीं खुला तो तोड़ा गया मालनी अचेत थी... पिता को फ़ोन किया तो नॉट रिचेबल आ रहा.था। .. बच्चे समझदार थे माँ को अस्पताल ले गये...डॉ ने बताया की अटैक पड़ा है समय से ले आये इसलिए बच गई... अस्पताल में ताँता लगा गया देखने वालों का... क्या मजाल जो किसी को स्थिति का ज्ञान हो... होठों पर मुस्कान सजाये मालिनी को देख कोई नहीं जान पाया की उसकी जिंदगी में क्या भूचाल आया...
पति के लिए पूछने पर मालनी ने बताया वे विदेश गये है इतनी जल्दी कैसे आ सकते है...। एक वर्ष बाद, सुबह सुबह घंटी बजी... देखा अटैची लिए पति खड़े थे सिर झुका कर....। एक पल उसे लगा बन्द कर दे दरवाजा ... पर तभी बेटा भी आ गया... बेटे का चेहरा देख मालनी अंदर आ गई ..... पति ने माफ़ी मांगी पता चला, उम्र से आधी लड़की ने मुनीश को छोड़ अपनी उम्र के लड़के के साथ चली गई...।मालनी ने कहा तुम बच्चों के पिता के रूप में घर में रह सकते हो... मेरे पति के रूप में नहीं.... ये भी एक नारी का रूप है असहनीय दर्द झेलते भी पति को माफ करना पड़ा क्योंकि बच्चे पिता की कमी ना महसूस करें...।
ये नारी ही होती है जो विषम परिस्थितियों में संयम रख सब कुछ संभाल लेती है। अपना दिल भले टूट जाये पर जतन से बनाये घर को बचाने के लिए सब सह जाती है..। सबसे बड़ी कमजोरी तो बच्चे होते है। जिन्हें देख कर ना जाने कितनी नारियाँ उत्पीड़न को झेलती है..। अपनी पसंद नापसंद सब भूल जाती है।