Ratna Sahu

Drama Classics Inspirational

4  

Ratna Sahu

Drama Classics Inspirational

रंग बद्दुआओं का-5

रंग बद्दुआओं का-5

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वह बूढी औरत कोई और नहीं शारदा जी की सास कमला जी थी।

"मां जी आप ? यूं इस तरह ..! कैसे ? घर के बाकी सब कहां है ?"

कमला जी सिसकने लगी।

"क्या हुआ मां जी,बताइए आप क्यों रो रही हैं ?"

"बहु तुम्हारी बद्दुआ रंग लाई सब तुम्हारी बददुआओं का फल है। तुम्हारे साथ जो हमने किया उसका फल भगवान ने मुझे जीते जी दे दिया।

यह आप क्या कह रही हैं मांजी, क्या हुआ साफ-साफ बताइए ?

"क्या कहूं बहू और कितना कहूं ? सब ने मुझे घर से निकाल फेंक दिया। कोई रखना नहीं चाहता। सही कहते हैं लोग अपना किया धरा हमें इसी जन्म में भोगना पड़ता है। जिस बेटे बहू के लिए सब कुछ किया। सही गलत कुछ नहीं सोचा। उसी ने मिलकर मेरा यह हाल कर दिया।" बोल कर अम्मा की आंखों से आंसू बहने लगे।

वहीं शारदा जी की आंखों के सामने पुरानी यादें ताजा हो गई। तस्वीर की भांति एक-एक कर आने लगी।

शारदा जी की अभी-अभी नई शादी हुई थी। उनके पति मनोहर बाबू सरकारी स्कूल में टीचर थे। तीन जेठानी देवरानी में यह सबसे छोटी बहू थी, और गरीब परिवार से आई थी। बाकी इनकी दोनों जेठानी काफी अमीर परिवार से थी तो सास इस बात के लिए हमेशा ताना देती। की पता नहीं किसी गरीब फकीर खानदान से आ गई है। शारदा जी कभी विरोध करती तो जो दोनों जेठानी सास को सह देने लगती और तब तीनों मिलकर खूब शारदा जी को खरी-खरी सुनाते। कभी तीज त्यौहार में दोनों जेठानी के मायके से खूब सारा सामान आता है वही शारदा जी के मायके से थोड़े बहुत आते कभी नहीं आते तो इस बात के लिए भी उसे खूब सुनाया जाता। कितनी बार शारदा जी विरोध करना चाहती पर पति मना कर देते की मां के सामने मत बोलो। और शारदा जी मन मसोस कर रह जाती।

 उसे याद है जब पहली बेटी हुई तो तो सासु मां ने कैसे मुंह बना लिया पोता का इंतजार कर रही थी पोती हो गई । अरे इसे तो मायके का लक्षण लग गया। मेरे खानदान में तो सबको पहले बेटा ही होता है। यहां तक की जानवर को भी और इसे बेटी हो गई। तब शारदा जी को खूब रोना आया लेकिन फिर वह भी सहन कर लिया। लेकिन जब दूसरी बेटी हुई तब तो मानो दुख का पहाड़ टूट पड़ा। शारदा जी उनके खाने पीने में दिक्कत तो करती ही । ऊपर से बेटे को भड़काने लगी इस बहू से पोता नहीं होगा मुझे। तुम दूसरी शादी कर लो। अब तो जेठानी भी ताना मारने लगी कि तुम्हें बेटा नहीं है तुम निपुत्तर हो। शारदा जी कभी अपने पति से यह बातें सब कहती तो हंसकर कहते जिसे जो कहना है कहने दो मैं तुम्हारे साथ हूं ना तो और क्या चाहिए। तब शारदा जी खुश हो जाती,संतोष कर लेती। अब दोनों पति-पत्नी सोच रहे थे कि अब बच्चा नहीं लेंगे दो बेटी ही काफी है लेकिन ससुराल वालों के साथ मायके वालों का भी दबाव पड़ा तो उन्होंने तीसरा बच्चा लिया और भगवान को यही मंजूर था तीसरी भी बेटी हो गई। तब तो सासु मां ने बच्चा सहित उसे घर से निकाल मायके भेज दिया। तू अलच्छी है,अभागी है। खाली बेटी जनेगी तुम तो मेरे बेटे का वंश कैसे बढ़ेगा खानदान कैसे बढ़ेगा ? जा तू निकल जा और अपने बेटे पर दूसरी शादी के लिए दबाव डालने लगे। तब बेटा मुस्कुरा कर रह जाता क्या हो गया मां बेटा और बेटी में आजकल कोई फर्क नहीं है लेकिन मां कहां समझती उन्हें तो पोता चाहिए रात दिन रट लगाए बैठी रहती।

एक शाम बहुत तेज बारिश हो रही थी। शारदा जी के पति काम से बाहर गए थे। घर लौटते समय बारिश की वजह से उनका एक्सीडेंट हो गया और वहीं उनकी मृत्यु हो गई शारदा जी पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा। क्या करूं क्या नहीं समझ में नहीं आ रहा था ? लेकिन पति की सरकारी नौकरी थी तो अनुकंपा पर उन्हें शिक्षक की नौकरी मिल गई। परंतु ससुराल वाले चाहते थे कि यह नौकरी उनके दोनों जेठ मे से किसी को मिले। पर शारदा जी ने जिद करके कहा कि मुझे तीन बच्चे हैं तो अपने बच्चों का लालन पालन कैसे करूंगी इसलिए नौकरी मैं ही करूंगी और जिद करके नौकरी कर ली। इस गुस्से में दोनों जेठ जेठानी ने सास को खूब चढ़ाया उल्टा सीधा सिखाया और शारदा जी को घर से निकलने पर मजबूर कर दिया। शारदा जी रोती बिलखती रह गई। मैं तीन बच्चों को लेकर कहां जाऊंगी ? मायके में भी कोई आसरा नहीं है। मुझे कुछ नहीं तो रहने के लिए एक घर दे दीजिए। लेकिन किसी ने एक नहीं सुनी। 

तब शारदा जी ने कमला जी का पैर पकड़ लिया। मां जी आप तो मेरी सास हैं बच्चों की दादी हैं कम से कम आप तो समझिए मैं तीन बच्चों को लेकर कहां जाऊंगी ? मुझे बाकी संपत्ति में कोई हिस्सा मत दीजिए ,कुछ नहीं चाहिए बस रहने को एक छत दे दीजिए। मैं उसमें रह जाऊंगी तीनों बच्चों का पालन कर लूंगी। तब सासू मां ने लात से धक्का मारते हो बोली , मेरे बेटे को तो खा गई। अब किस हक से यहां रहेगी। फिर तुम बेटीयो की मां हो तो तुम्हारा कैसा हिस्सा कोई हिस्सा नहीं होगा ? जहां मन होता है वहां जा अगर नहीं संभाल सकती तो इतनी बेटी पैदा क्यों किया ? जा कहीं फेंक दे मार दे।"

जब कोई रखने को तैयार नहीं हुआ तो शारदा जी तीनों बेटी के साथ घर से निकल गई। जमीन जायदाद और छत तो दूर किसी ने एक टाइम का खाना बनाने के लिए अनाज तक नहीं दिया।

शारदा जी को समझ नहीं आ रहा था क्या करूं क्या कहां जाऊं उन्हें परेशान देख उनके स्कूल के प्रधानाध्यापक ने पूछा तब रोती हुई उन्होंने सारी बातें बता दी। सुनकर उनका भी कलेजा पसीज गया। कोई बात नहीं आप कुछ दिनों तक स्कूल में ही रह जाइए। जब घर की व्यवस्था हो जाए तब आप यहां से चल जाइएगा।

तब शारदा जी तीनों बेटी को लेकर इस स्कूल में रहने लगी जिसमें वह पढ़ाती थी। इसी बीच छोटी बेटी की तबीयत खराब हो गई है और जब डॉक्टर के पास ले गए तो पता चला उसके पैर में पोलियो हो गया है। काफी इलाज कराया आराम तो हुआ लेकिन पूरी तरह ठीक नहीं हुआ। जिस वजह से वह ठीक से चल नहीं पाती है।

स्कूल में वह अच्छे से रहने लगी । लेकिन यह बात बाकी लोगों और शिक्षकों को पसंद नहीं आया वह शारदा जी और प्रधानाध्यापक को लेकर खिल्ली उड़ाने लगे,मजाक बनाने लगे । उसे दिन समझ में आया सिर्फ औरत ही औरतों के दुश्मन नहीं होती मर्द भी बड़े दुश्मन होते हैं। अपने चरित्र पर उंगली उठते देखा तो उन्होंने एक छोटी सी झोपड़ी किराए पर ली और उसमें रहने लगी। फिर धीरे-धीरे उन्होंने घर का सामान जुटाया और जमीन लेकर घर बनाया। तीनों बेटियां काफी होशियार समझदार और पढ़ने में तेज तर्रार थी। पढ़ाई पूरी होती ही शारदा जी ने दोनों बेटियों की शादी बिना किसी दहेज के हो गई लेकिन छोटी बेटी पोलियो की वजह से दिव्यांग थी। इसलिए अब शारदा जी को बहुत चिंता होने लगी कि इसकी शादी कैसे होगी ? तब मीरा ने कहा मां आप मेरी शादी की चिंता मत करो मुझे पढ़ने दो मुझे डॉक्टर बनना है। पहले पढ़ाई कर लूंगी अपने पैरों पर खड़ी हो जाऊंगी फिर शादी बाद में देखेंगे।

 तब शारदा की बोली मैं प्राइमरी स्कूल की शिक्षिका हूं कहां से इतना पैसा लाउंगी जो तुम्हें डॉक्टरी की पढ़ाई करा दूं। लेकिन कहते हैं ना जहां चाह वहां राह।वही हुआ।बहुत हद तक का मदद उसके बहन-बहनोई ने किया और बाकी मेडिकल कॉलेज में उसकी फीस माफ हो गया। जो प्रोफेसर उसे पढ़ते थे उन्होंने बिना फीस लिए ही मीरा को पढ़ाया। शारदा जी ने कई बार पूछा भी फीस के बारे में तब वह प्रोफेसर कहते मीरा बिटिया को डॉक्टर बनने दीजिए। फिर सारा फीस उसी से ले लूंगा मैं। 

मीरा ने भी बहुत मन लगाकर पढ़ाई की और आज वह डॉक्टर बन गई। इधर शारदा जी भी सब कुछ भूलकर अपने बच्चों में घुल मिल गई। अब ससुराल और सास की बातें याद नहीं करती। उन लोगों ने कभी नहीं बुलाया और ना हीं शारदा जी कभी गई।

लेकिन मीरा जब कल बुढ़ी अम्मा का नाम लिया तभी से शारदा जी का मन विचलित हो रहा था। कि आखिर कौन है वह अम्मा ? क्या अम्मा सच कह रही हैं दोनों बेटे बहु ने सच में भगा दिया, इन्हें निकाल दिया। ऐसा कैसे कर सकते हैं वो भी तब जब इतनी बुजुर्ग हो चुकी है।

क्या सोच रही हो बहू मेरी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा तुम्हें ? कैसे होगा मैंने तुम्हें इतना दुख तकलीफ को जो दिया है तो कैसे यकीन करोगी

सुनकर शारदा की वर्तमान में लौटी ।नहीं अम्मा मैं सुन रही हूं और विश्वास भी हो रहा है। पर उन्होंने ऐसा क्यों किया ?

क्या बताऊं बहू तुम्हारे घर से जाने के बाद कुछ दिन तक सब ठीक-ठाक रहा। फिर दोनों भाई आपस में बंटवारा करने के लिए झगड़ा करने लगे। मैं जब उन दोनों को समझाने लगी तब वह दोनों मुझसे लड़ने लगे। अंत में मैंने सारी संपत्ति को दोनों में बंटवारा कर दिया। जब मैं अपने लिए हिस्सा रखने लगी तो दोनों ने कहा कि हम आपको रखेंगे पर बाद में दोनों झगड़ा करने लगी कि मैं किसके साथ रहूं ?

दोनों बोल रहे थे मां को तुम रखो तो तुम रखो। फिर 6-6 महीना करके दोनों मुझे रखने को तैयार हो गया। मैं जिसके साथ रहती है वो बहू मुझसे नौकरों की तरह व्यवहार करती घर का सारा काम करवाती और खाना माप कर देती। वह भी समय से नहीं । जब तक शरीर में ताकत थी तब तक सारा काम करती रही। पर जब समय से खाना ना मिले तो आखिर शरीर कब तक तंदुरुस्त रह सकता है। तो मैं भी दिन पर दिन कमजोर और बीमार होती चली गई। फिर तो दोनों बेटा बहू में से कोई भी मुझे पलट कर देखना तक नहीं चाहता था। खाना-पीना और इलाज तो बहुत दूर की बात है। जब कभी उन दोनों के बच्चे बोलते की मां दादी को खाना दे दो

 तब दोनों बहुएं तुनककर बोलती -पता नहीं बुढ़ी कब मरेगी ? यह सब सुनकर जब नहीं बर्दाश्त हुआ तब.... मैं घर से निकाल कर मंदिर में रहने लगी। किसी ने एक बार भी नहीं बुलाया लेकिन हां बहू को यह याद रहा कि मेरे हाथ में कर सोने की चूड़ियां है। बस वही चूड़ियों के लिए उसने मुझे फिर से घर बुलाया और ..!बोलकर कमला जी फूट-फूट कर रोने लगी।

शारदा जी ने उन्हें पकड़ लिया और आंसू पूछने लगी अम्मा आप क्यों रो रही है और उस रात आप कहां जा रहे थी ?

कमला जी चुप हो गई।

बताइए ना अम्मा आप कहां जा रही थी उस रात इतनी तेज बारिश में ?

नदी में डूबने जा रही थी।

सुनकर शारदा जी को मानो चक्कर सा आ गया। नर्वस हो गई। मां आप यह क्या कह रही हैं ?

सही कह रही हूं बहू, दोनों ने सब कुछ छीन लिया हाथ में बस सोने की चार चूड़ियां थी उसी पर दोनों की नजर थी की कब मैं मर जाऊं और सोने की चूड़ियां दोनों के हाथ लग जाए। लेकिन जब मैंने नहीं दिया तो इसी गुस्से में पिछले चार दिनों से दोनों ने मुझे कुछ खाना नहीं दिया। पानी पी पीकर में कब तक खड़ी रहती है जब नहीं बर्दाश्त हुआ तब उसे तेज बरसात में मैं घर से निकल गई। लेकिन देखो भगवान को कुछ और मंजूर था उन्होंने मुझे मरने नहीं दिया और मेरी पोती को भेज दिया उसने मुझे बचा लिया। बहु मैं जिस पोति को इतना दुख दिया, इतना बद्दुआ दी उसी पोती ने जान बचा लिया। जिसके लिए इतना पाप किया इतना सब किया उसने तो पलट कर देखा तक नहीं कि मैं मेर गई या जिंदा हूं। बहु तुम मुझे मत रखना मुझे जाने दे। मैं अब ठीक हूं मैं कहीं काम करके अपना पेट पाल लूंगी लेकिन मैं तेरे साथ नहीं रहूंगी।

"क्यों मां आप ऐसा क्यों बोल रही हैं ? क्यों नहीं रहेंगी क्या कमी है यहां पर और कहां जाएंगी अब ?

'कोई कमी की नहीं है बहू लेकिन किस मुंह से रहूं इसी मुंह से तुझे मैंने कितनी गालियां दी, कितना अपशब्द कहा कितने बद्दुआएं दी। इसलिए नहीं रह सकती शर्म आ रही है मुझे।

इसमें शर्म की कोई बात नहीं है दादी। आप मेरी दादी है और आप यहां से कहीं नहीं जा रही हैं। यह मैं बोल रही हूं। पीछे से आते हुए मीरा ने कहा।

 दादी शब्द सुनते ही कमला जी फूट-फूट कर रोने लगी। तुम्हें पता चल गया मेरी बच्ची मैं तुम्हारी दादी हूं।

हां दादी मैंने सब बात सुन लिया। और हां पीछे जो कुछ भी हुआ मैंने नहीं देखा। लेकिन आज जो सामने मेरी दादी बैठी है वह बहुत अच्छी है। और मुझे दादी की जरूरत है मैं वर्षों से मां के साथ रह रहकर बोर हो गई हूं। मैंने कितनी बार मां से पूछा मेरे दादा दादी कहां है लेकिन मां ने कभी कुछ बताया नहीं। अब जब आप यहां आ गई है तो यहां से कहीं नहीं जाएंगे, मैं नहीं जाने दूंगी आप हमारे साथ यही रहेंगी समझी। अगर नहीं समझेगी जिद करेंगी तो आप जानती है ना मैं डॉक्टर हूं मोटे-मोटे इंजेक्शन लगा दूंगी।

पोती मीरा की बात सुनकर कमला जी रोते-रोते हंस पड़ी और मीरा को गले से लगाते हुए बोली "अरे मेरी बच्ची माफ कर दे अपनी दादी को। मैं तो यहां तुम लोग के साथ रहने के लायक नहीं हूं लेकिन तू बोल रही है तो मैं रहूंगी। अब मेरे पास तुम दोनों को देने के लिए कुछ नहीं है लेकिन हां यह सोने की चार चूड़ियां हैं तुम रख लो बेटा और जितना आशीर्वाद होगा मैं सब तेरे लिए करूंगी।"

" दादी एक बात कहूं आपकी बद्दुआ हमें नहीं लगी वह तो दुआ में बदल गई। देखो तो मैं कितनी खुश हूं और पता है आपको मैं कितनी बड़ी डॉक्टर हो गई हूं। तो यह चूड़ियां अभी आप ही पहनिए हमारे लिए आपका आशीर्वाद ही काफी है।"

"हां मेरी बच्ची तू बहुत बड़ी डॉक्टर है। और बड़ी बन जा दुनिया के सबसे बड़ी डॉक्टर बन जा। खूब नाम कमा मां बाप का खूब नाम रोशन कर। तुम्हें मेरे तरफ से बहुत सारा प्यार बहुत सारा आशीर्वाद।

 सुनकर मीरा दादी से लिपट गई और मां को इशारा किया तो शारदा जी भी पुरानी सारी बातें भूलकर सास के गले से लिपट गई।

तभी पीछे से आवाज आई और मीरा बिटिया मेरा फीस कहां है ? याद है ना मैंने तुम्हें कहा था कि जब तुम डॉक्टर बन जाओगी कमाने लगोगी तब तुमसे फीस तुम्हारा फीस ले लूंगा।

सब ने पीछे मुड़कर देखा तो वही प्रोफेसर थे जिन्होंने मीरा को बिना फीस लिए पढ़ाए थे।

शारदा जी और मीरा उठकर खड़ी हो गई और नमस्ते किया।सर आप यहां आईए बैठिए ना।

मैं बैठूंगा जरूर पर मुझे मेरा फीस पहले दोगे कि नहीं यह जवाब दो।

जी सर आपका जो फीस बनता है वह मैं सब देने को तैयार हूं। बताइए क्या फीस है ?

"पक्का शारदा जी! सच बोल रही है ना आप मुझे फीस मिलेगा ना ?

"जी हां सर ,आपकी दया से बिटिया डॉक्टर बन गई है अच्छा कमा रही है क्यों नहीं देगी फीस बताइए तो आपका फीस क्या है ?

मेरी फीस यह है कि मैं चाहता हूं मीरा बिटिया मेरे घर की बहू बन जाए। मेरा एक बेटा डॉक्टर है मैं उसके लिए आपसे मीरा का हाथ मांगने आया हूं।

सुनकर मीरा लजाकर घर के अंदर चली गई। वहीं शारदा जी की आंखों में खुशी के आंसू आ गए ।सर मैं नहीं जानती आपका आभार किस तरह व्यक्त करूं मेरी सारी चिंता दूर कर दिया आपने लेकिन।

लेकिन क्या शारदा जी ?

मेरी बेटी दिव्यांग है क्या आपका बेटा ?

शारदा जी अभी अपनी बात पूरी करते उससे पहले ही प्रोफेसर साहब ने कहा आप कैसी बातें कर रही हैं ? मुझे और मेरे बेटे दोनों को मीरा बहुत पसंद है। और हमें मीरा बिटिया के दिव्यांग होने से कोई आपत्ति नहीं है। अगर आपकी हां हो तो हम पंडित जी से मिलकर जल्दी ही सगाई और शादी का शुभ मुहूर्त निकलवा लेते हैं।

शारदा जी ने भी हंसते हुए कहा। जी सर बिल्कुल और शुभ काम में देर कैसी ?

शारदा जी आप मुझे प्रोफेसर साहब नहीं समधी जी बोलिए।

सुनकर सब हंसने लगे तभी मीरा अंदर से चाय नाश्ता लेकर आई।

उसने सबके पैर छुए दादी का भी आशीर्वाद लिया

अगले ही दिन पंडित जी आए सगाई और शादी के शुभ मुहूर्त निकाल दिया। एक महीने ही के बाद शुभ मुहूर्त निकला। बड़े ही धूमधाम से मीरा का विवाह हुआ वह ससुराल चली गई लेकिन जाते-जाते उसने डॉक्टर पति से कहा, कि मेरी मां का हम बहनों के अलावा कोई नहीं है और मैं चाहती हूं कि अपने ससुराल और सास ससुर के साथ मां का भी ख्याल रखूं। और अब तो बुरे की दादी भी हैं तो उनकी भी देखभाल करनी होगी।

पति ने हंसते हुए कहा सिर्फ तुम्हारे मां नहीं हमारी मां । और हमारी दादी। एक बात और तुम अकेले नहीं हम मिलकर उनका ख्याल रखेंगे।

सुनकर मीरा खुशी से पति के गले से लग गई।


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