मेरी हुनर मेरी पहचान
मेरी हुनर मेरी पहचान
"बहू, कल और परसों दो दिन तुम्हारी छुट्टी रहेगी तो आज रात को ही मूंग और उड़द की दाल भींगो दे। कल मैं तुम्हें मसाला और सादा वडी़ बनाना सिखाऊंगी।"
"हां ठीक है मां जी, भीगो देती हूं।"
"अरे, क्या आप भी जब देखो तब वही वडी़ पापड़, अचार बनाने के पीछे लगी रहती हैं। और क्या ये सब बहू बनाएगी ? अरे, वो नौकरी करती है तो आपके जैसी चूल्हा चौका संभालने और टीवी सीरियल देखने वाली गृहिणी नहीं बनेगी। और हां, उसके पापा ने उसे भी पढ़ाया लिखाया है आपके पिताजी के जैसे नहीं बेटे को पढ़ा दिया और बेटी को छोड़ दिया। छोड़ दो बहू कोई जरूरत नहीं है।"
पति ने बहू के सामने जब यह बातें कहीं तो शारदा जी को बहुत शर्म हुआ, चेहरा उतर गया। फिर एक जबरदस्ती का मुस्कान चेहरे पर लाते हुए कहा,
"अरे, बहू नौकरी करती है तो क्या हुआ घर गृहस्थी के काम आना, सीखना भी जरूरी है।"
"कोई जरूरी नहीं है, जो चीज तुम सिखाओगी वह मार्केट में बहुत मिलता है।"
"अरे आप कितना बोलने लगे। मार्केट में भले ही मिलता है लेकिन घर के जैसा स्वाद कहां रहता है उसमें ? फिर अपनी समधन जी को भी मेरे हाथ की वडी़ बहुत पसंद है। उन्होंने ही बहू से कहा था कि पूछना अपने सासू मां को कैसे बनाती हैं, उन्हें भी सीखना है। इसलिए मैं बनाऊंगी तो यह भी सीख जाएगी तो फिर जाकर अपनी मां को सिखा देगी थोड़ा लेती भी जाएगी।"
"जी पापा, मां बिल्कुल सही कह रही हैं और आपको इस तरह मम्मी के गृहिणी होने का मजाक नहीं बनाना चाहिए। गृहिणी भी किसी से कम नहीं होती। वे भी बहुत कुछ करती हैं और किया भी है।"
"हां बहू, तुम्हारा कहना सही है लेकिन कितने प्रतिशत गृहिणियां करती हैं, आगे बढ़ती हैं। जो भी हम देखते हैं या सुनते हैं बस कहानियों, टीवी सीरियलों और फिल्मों में हकीकत में ना के बराबर है।"
बहू फिर जवाब देने लगी लेकिन सासू मां ने इशारा किया तो वह चुप रह गई।
बहू सौम्या ने फिर भी दाल भिगो दिया अगले दिन पीसकर वह सास के साथ बड़े मन से वडी़ बनाना सीखने लगी।
"एक बात कहूं मां, पापा जी का इस तरह बोलना मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। उन्हें इस तरह एक गृहिणी और उसके हुनर का मजाक नहीं बनाना चाहिए।"
"अरे जाने दो बेटा, इनकी आज की आदत नहीं जब मैं ब्याहकर आई तभी से है। मेरे पापा ने दोनों भाईयों को शहर भेजा पढ़ने के लिए पर मुझे नहीं भेजा। नजदीक में कॉलेज नहीं था और दूसरे शहर भेजना उन्हें ठीक नहीं लगा। इसलिए मैं आगे नहीं पढ़ पाई। बस इसीलिए मुझे ये हमेशा सुनाते रहते हैं। ससुराल में भी बड़ी बहू थी घर के सारे काम और सब को संभालने की जिम्मेदारी मेरे ऊपर ही आ गई। तुम्हारे ससुर जी ने मुझे पढ़ने को कहा मेरा एडमिशन भी कराया लेकिन घर के काम की वजह से मैं पढ़ नहीं पाती थी इसलिए लगातार दो बार फेल हो गई। तब मैंने पढ़ाई छोड़ दी। इनके भाई की पत्नी नौकरी करती है सिर्फ मैं ही गृहिणी रह गई। अब तो मैं उनकी बातों पर ध्यान नहीं देती। बोल कर खुद ही चुप हो जाते हैं। चलो तुम आज ये बनाना सीख लो अगले सप्ताह आम और कटहल के अचार बनाना सिखाऊंगी। वो भी थोड़ा अपनी मां के लिए लेती जाना और कैसे बनाते हैं बता देना।"
"जी ठीक है मां जी।"
कुछ दिनों बाद बहू मायके गई साथ में मां के लिए अचार, वडी़ भी लेकर गई।
हफ्ते भर बाद बाद जब वह वापस आई तो उसने सास के हाथ में ₹200 थमाते हुए बोली
"मां जी, यह लीजिए आपके पैसे।"
"कैसे पैसे बहू ?"
"मां जी, यह आपके हुनर की कमाई है।"
"ये क्या कह रही हो बेटा ? मैं समझी नहीं।"
" मां जी, आपने जो अचार और वडी़ दिया उसे मेरी मम्मी ने अपनी पड़ोसन को भी चखाया। वह तुरंत पूछने लगी कहां से लाए मुझे भी लेना है मेरे लिए भी मंगा दीजिए। जब मैंने आपका नाम कहा तो कहने लगी कि यदि तुम्हारी सासू मां बना कर दे सकती हैं तो मैं खरीदने के लिए तैयार हूं। मैं बाहर से तो खरीदती हूं लेकिन ऐसा टेस्ट नहीं रहता। तभी मेरे दिमाग एक बात कौंधी। मैंने तुरंत इनसे(पति) वडी़ और आचार मंगवा कर थोड़ा-थोड़ा बेच दिया। बस उसी के पैसे हैं उन्हें बहुत अच्छा लगा और भी आर्डर दिया है आप बनाएंगी ?"
"अरे बहू, अब इस उम्र में क्या करूंगी और इतने में क्या आएगा ?"
"हां मां, ₹200 में ज्यादा कुछ नहीं आएगा लेकिन यह आपकी कमाई है। इससे अपने लिए कुछ खरीदीए, अपनी पसंद का फिर देखिए कितनी खुशी होती है ? फिर सीखने और काम करने की कोई उम्र नहीं होती। वो कहते हैं ना जब जागो तभी सवेरा तो बस यही समझिए। आप थोड़ी मेहनत करेंगी तो इस 2 दो के आगे दो जीरो से 4 जीरो होने में देर नहीं लगेगी। आप काम तो शुरू कीजिए समय निकालकर मैं भी आपकी मदद करूंगी।"
सास को बहू की बात जंच गई और उन्होंने काम शुरू कर दिया पर अपने पति को नहीं बताया।
कुछ ही महीनों में वो वडी़, अचार, पापड़ वाली चाची के नाम से जानने लगी। अब यह बात शारदा जी के पति से छिपी नहीं रहे 1 दिन काम से घर लौट रहे थे तो कुछ लोगों के मुंह से यह बातें सुन ली। उन्होंने घर आकर पत्नी से पूछा। तब शारदा जी ने सारी बातें बता दी। पहले तो वह नाराज होने लगे लेकिन इस बार शारदा जी भी चुप नहीं रही।
"देखिए आपको नाराज होने की जरूरत नहीं मैं जो भी कर रही हूं अपने हुनर की बदौलत और इसमें कोई बुराई नहीं है। अब मुझे पता चल गया कि मेरे हुनर में कितनी ताकत है। इससे ना सिर्फ मैं अपनी कमाई कर सकती हूं बल्कि इसके साथ मुझे नाम और पहचान भी मिलेगा। तो आपको इस तरह नाराज होने की जरूरत नहीं।
"हां पापा, मां सही कह रही है आपको तो खुश होना चाहिए। जिस चीज के लिए आप हमेशा मां को डांटते रहे, सुनाते रहे आज मां अपने उसी हुनर को अपनी ताकत बना आज अपने नाम और पहचान के साथ कमाई भी कर रही है। यह तो बहुत अच्छी बात है।" बेटा और बहू दोनों ने साथ में कहा।
अब वह निरुत्तर हो गए।
1 साल के अंदर ही शारदा जी ने अपना बिजनेस और बढ़ा लिया साथ में और भी महिलाओं को जोड़ लिया। आज वो अपने हुनर की बदौलत कमाई के साथ अपना नाम और पहचान भी बना लिया है।