रंग बद्दुआओं का-3
रंग बद्दुआओं का-3
अगली सुबह मीरा के अस्पताल जाते समय एक बार फिर शारदा जी बोलने को हुई। लेकिन उससे पहले ही मीरा ने कहा, मां मुझे सब याद है। और हां ,पहले मैं उन अम्मा से मिलती ही जाऊंगी।
"मैं भी चलूं तुम्हारे संग?"
"नहीं मां , हॉस्पिटल क्यों जाओगी? जरूरत क्या है? आपकी भी तबीयत आजकल ठीक नहीं रहती है तो मत जाओ। अगर आपको मिलना ही है तो मैं आपको उनके घर ले जाकर मिलवा दूंगी। बस अब खुश।"
"हां, यही ठीक रहेगा मैं उनके घर जाकर ही मिल लुंगी।"
कुछ देर बाद मीरा रेडी हुई और कार में बैठकर हॉस्पिटल के लिए विदा हो गई।
वहां पहुंच कर देखा बुढ़ी अम्मा को होश आ चुका था। लेकिन अभी भी वह अच्छी तरह से बोल नहीं पा रही थी।
"अम्मा, अब कैसा लग रहा है?"
अम्मा ने हाथ से इशारा किया कि अब अच्छा लग रहा है ठीक हूं।
तब उन्हें उठाकर बिठाते हुए हल्का नाश्ता और जूस दिया।
"साॅरी अम्मा, कल रात आप मेरे कार के सामने गिर गई थी। इतनी तेज बारिश हो रही थी कि मैं आपको देख नहीं सकी। पर इतनी तेज बारिश में आप सड़क पर कहां भागी जा रही थी?"
अम्मा ने कुछ जवाब नहीं दिया।
कल रात मैं ही आपको यहां पर लेकर आई। मुझे लगता है आप काफी हद तक ठीक हो गई है और घर जा सकती है तो बताइए आपका घर कहां है मैं छोड़ देती हूं। और हां कुछ दवाइयां मैं दे रही हूं। आप लेते रहिएगा, कमजोरी दूर हो जाएगी। आप तंदुरुस्त हो जाएंगी।
मीरा ने कहा तो अम्मा के आंखों में आंसू आने लगा जिसे उन्होंने बहने से पहले रोक लिया।
"अम्मा, अब आप ठीक हो गई है। आपको कहीं चोट नहीं आई है मुझे लगता है कमजोरी और डर की वजह से आप बेहोश हो गई थी। एक बात और आप पिछले कुछ दिनों से खाना क्यों नहीं खाया? अब इस उम्र में कौन सा उपवास पर कर रही हैं?
अम्मा ने फिर कुछ जवाब नहीं दिया।
अम्मा नहीं बोलेगी । इन्हें लगता है मैं उनका उपवास तोड़वा ना दूं। इसीलिए तो औरत होकर भी मुझे औरतों की हरकतें, आदतें पसंद नहीं आती। ये औरतें अपनी सेहत को नजरअंदाज कर सबके लिए व्रत उपवास करेगी। सब के बारे में सोचेंगी पर अपने बारे में सोचने के लिए इनके पास समय नहीं है। देखो तो इनका पैर कब्र में लटक रहा है लेकिन नहीं, उपवास जरूर करेंगी और पूछ रही हूं हो तो बोल भी नहीं रही है। मन ही मन बोल कर मीरा दाएं बाएं सिर हिला कर रह गई।
मीरा ने एक बार फिर पूछा- "अच्छा आपका घर कहां है, कहां रहती हैं आप ?आपके घर में कोई है तो बताइए मैं उन्हें कॉल करके बुला देती हूं या नहीं तो छोड़ देती हूं।"
मीरा की बात सुनकर इस बार अम्मा को नहीं रहा गया और आंखों से आंसू बह निकले।
"क्या हुआ अम्मा क्यों रो रही हो मैं आपके घर छोड़ देती हूं ना मुझ पर विश्वास नहीं हो रहा?"
अम्मा ने धीरे से हां में सिर हिलाया।
"तो फिर जल्दी बताओ आप कहां रहती हो?"
अम्मा ने धीरे से फुसफुसा कर कहा- "मंदिर…!"
"मंदिर.. मंदिर के पास रहती हैं आप। कौन से मंदिर के पास।"
"यहां से थोड़ी दूर पर है।"
"अच्छा ठीक है लिए चलिए मेरे साथ।"
फिर मीरा ने अम्मा के हाथ पकड़ अपने कार में बिठाया और चल पड़ी उनके बताए रास्ते की तरफ।
कुछ देर तक चलने के बाद वह मंदिर तब अम्मा ने इशारा किया वहां उतार देने के लिए तो मीरा ने उतार दिया।
"हां बताओ अम्मा अभी यहां से किस गली में घर है आपका मैं वहां छोड़ देती हूं।"
"मैं चली जाऊंगी बेटा।"
"तम्मा अगर आप फिर गिर गई ना तब आपके घर वाली मेरी खटिया खड़ी कर देंगे जल्दी बताइए आप कहां रहती हो मैं आपको छोड़ देती हूं।"
अबकी बार अम्मा ने बहाना बना दिया कि यहीं मंदिर में कुछ देर बैठूंगी फिर घर जाऊंगी। मैं चली जाऊंगी मेरी बच्ची तुम अपने काम पर जाओ, तुम्हें देर हो रही होगी।
देर तो सच में हो रही थी मीरा को। उसने अम्मा को मंदिर के प्रांगण में बिठा दिया और घर में बैठ हॉस्पिटल के निकल गई।
रास्ते में जाते-जाते उसने अपनी मां को फोन लगाया यह बताने के लिए अम्मा ठीक है और उसे सलामत अपने घर पहुंच गई है।
सुनकर शारदा जी भी खुश हुई।
करीब दो-तीन दिन बाद मीरा फिर उसी रास्ते गुजरी की अम्मा इस समय में मंदिर में रहती है तो शायद उनसे मुलाकात हो जाए। एक बार देखती हूं तबीयत कैसी है?
वह मंदिर के पास जैसे ही रुके तो अम्मा की नजर उसे पर गई तो वह छुपने की कोशिश करने लगी। तभी अम्मा का पैर फिसला और वो जोर से गिर गई। मुंह से आह निकल मंदिर के पुजारी भाग कर उन्हें उठाने आए। तब तक मीरा भी पहुंच गई।
क्या हुआ अम्मा कैसे गिर गई? और जब आपसे नहीं होता है यह पूजा तो क्यों आती हो मंदिर में घर में बैठो ना। भगवान का नाम और पूजा घर में बैठकर भी लिया जा सकता है जरूरी नहीं मंदिर में ही आकर पूजा करना।
"घर कहां जाएगी रहेगा तब ना? ये मंदिर ही उनका घर है यहीं रहती है।" पुजारी ने कहा तो मीरा शौक हो गई।
और अम्मा शर्म के मारे इधर-उधर देखने लगी
अब मीरा को एहसास हुआ कि अस्पताल में कोई क्यों नहीं आया, ना ही किसी ने खोज खबर ली? अब मीरा को उनके बारे में जानने की उत्सुकता होने लगी।
"लेकिन पंडित जी इनका कोई न कोई तो ठिकाना होगा?"
"था पर अब नहीं है। उनके बेटे बहु विदेश में रहते हैं और जो घर में रहते हैं वे इन्हें रखने को तैयार नहीं। पिछले कुछ दिनों से यहीं रहती है मंदिर में जो प्रसाद चढ़ता है।वही खाती है और यहीं रात को सो जाती है। बेटा मैं इसके आगे और कुछ नहीं जानता। अब जो पूछना है अम्मा से पूछ लो।"
सुनकर मीरा काफी गंभीर हो गई इमोशनल होने लगी पर वहां उनके सामने जाहिर नहीं होने दिया। वह उनके पास से हट गई और सोचने लगी क्या यह सच है? शायद सच में कोई नहीं है नहीं तो अब तक कोई न कोई जरूर आया होता? क्या करूं मैं इन्हें लेकर अपने घर चली जाऊं? एक बार मां से पूछती हूं। परंतु मां ने फोन नहीं उठाया।
तब मीरा ने बिना कुछ सोचे समझे अम्मा का हाथ पकड़ा और उन्हें लेकर अपने घर के लिए विदा हो गई।
रास्ते में अम्मा मीरा को कृतज्ञ नजरों से देख रही थी। क्या हुआ अम्मा आप मुझे ऐसे क्यों देख रही हो?
सुनकर अम्मा भावुक होते हुए बोली
"खूब खुश रहो मेरी बच्ची, खूब आगे बढ़ो खूब तरक्की करो। मां बाप का नाम रोशन करो।" बोलकर अम्मा ने उसके माथे पर अपना हाथ रख दिया। जिससे मीरा को एक अपनापन का एहसास हुआ ऐसा लगा मानो कोई खास और गहरा रिश्ता हो
क्या सच में उनका कोई रिश्ता है जानेंगे हम अगले भाग में।