रंग बद्दुआओं का-4
रंग बद्दुआओं का-4
मीरा का मन हो रहा था अम्मा से पूछे उनके परिवार वालों के बारे में। लेकिन नहीं पूछा कहीं उन्हें बुरा न लग जाए।
मुझे देखकर कहीं तुम्हारे घर वाले परेशान हो गए तो। अम्मा ने कहा।
वे बिल्कुल परेशान नहीं होंगे तो आप चिंता मत करो।
बेटा तुम्हारा नाम क्या है? तुम्हारे घर में और कौन-कौन है?
"मेरा नाम मीरा है और घर में बस मैं और मम्मी। दो बहन है उसकी शादी हो चुकी है।"
भाई नहीं है।
नहीं।
और पापा?
वह काफी पहले ही गुजर गए।
"और तुम्हारे पैर में क्या हुआ? तुम ठीक से चल नहीं पा रही चोट लगी है?
"नहीं पोलियो है! मां कहती है मैं बहुत छोटी थी तभी मुझे पोलियो हो गया।"
"भगवान भी ना अच्छे लोगों को ही तकलीफ देते हैं।"
मीरा मुस्कुरा कर रह गई।
अम्मा भी चुप हो गई।
क्या हुआ आप क्या सोचने लगी?
"मतलब तुम्हारी मम्मी ने अकेले तुम तीनों बहनों को पाला और पढ़ाया लिखाया?
हां अम्मा। मीरा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
बहुत हिम्मत वाली जान पड़ती है तुम्हारी मां।
हां वो तो है।
कुछ इसी तरह बात करते हुए रास्ता कट गया और मीरा घर पहुंच गई। अम्मा को लेकर घर पर गई तो दरवाजे पर तारा लगा हुआ था। मां शायद बाहर कहीं घूमने निकल चुकी थी।
उसने अपने पास रखी चाबी से दरवाजा खोला। और अम्मा को बेड पर बैठने के लिए कहा। फिर रसोई में जाकर उनके लिए एक गिलास पानी लाई और चाय बनाने लगी। अम्मा ने चाय पीने से इनकार कर दिया तो मीरा ने उनके लिए नाश्ता ले आई। अम्मा ने नाश्ता किया और दवाई खाई तो उन्हें नींद आने लगी। मीरा गेस्ट रूम में ले गई और बेड पर सुला दिया। मीरा ने अस्पताल में कॉल कर दिया कि आज जरा आने में देर हो जाएगी।
कुछ देर में अम्मा सो गई और मीरा बरामदे में बैठकर मां के आने का इंतजार करने लगी ।कुछ देर बाद जब शारदा जी आई और मीरा को घर में देखा तो आश्चर्य हुआ। क्या हुआ बेटा तुम वापस आ गई? आज हॉस्पिटल नहीं गई तबीयत तो ठीक है ना ?
"हां मां मैं ठीक हूं।
"तो फिर क्या हुआ क्यों वापस आ गई और आए तो मुझे फोन क्यों नहीं किया?"
मीरा ने सारी बातें बता दी और यह भी कह दिया कि वह अम्मा को लेकर यहां आ गई है।
सुनकर मां ने कहा बेटा यहां लेकर आ गई वो तो ठीक है लेकिन उनके घर में अगर कोई भी होगा तो वह कितना परेशान होंगे।
नहीं मां कोई नहीं है उनके घर में ।अकेली रहती हैं और वह भी मंदिर में। अगर कोई है भी उनके घर में तो अब तक कोई खोज खबर क्यों नहीं ली? ठीक है कुछ दिन रहने दीजिए यहां पर जब उनकी तबीयत ठीक हो जाएगी। तब तक मैं देख लेती हूं, पता कर लेती हूं कोई सच में है तो उनके घर छोड़ दूंगी क्या कहती हो आप?
हां ठीक है बेटा कोई बात नहीं लेकिन अम्मा कहां है?
वह भी आराम कर रही है। पता है रास्ते पर बहुत प्यार से बात करती आई है। मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे मेरा उनके साथ कोई पुराना रिश्ता हो।
तुम्हें सब के साथ रिश्ता महसूस होने लगता है क्योंकि तुम अच्छी हो। इसलिए वरना आजकल का समय नहीं है बेटा। लोग अपनों से रिश्ता नहीं रखते और अनजान से तो बहुत दूर की बात है।
हां आपका कहना सही है। मां मैं अभी चलती हूं वह उठेंगी तो आप बातचीत कर लेना और कह देना कि मैं शाम को आऊंगी।
ठीक है बेटा तू जा मैं देख लेती हूं।
मीरा जब चली गई तो शारदा जी ने दरवाजा खोलकर धीरे से उन बूढ़ी अम्मा को देखा वह कंबल ओढ़ कर सो रही थी तो उन्होंने जगाना ठीक नहीं समझा और दरवाजा बंद कर बाहर आ गई।
कुछ देर तक इंतजार करने के बाद मन में ।एक काम करती हूं उनके लिए कुछ हल्का-फुल्का खाना बना देती हूं। मैं भी खा लूंगी और इन्हें भी दे दूंगी।
फिर वो रसोई में गई और झटपट खाना बनाने लगे कुछ देर में खाना बन गया लेकिन अम्मा अब तक नहीं उठी। तो शारदा जी ने सोचा जाकर उन्हें उठा देती हूं हो सकता है अनजान जगह हो तो वह कमरे से बाहर नहीं निकले। उठेंगी खाना खाएंगी फिर उन्हें अच्छा लगेगा हो सकता है हमारी बातचीत भी हो जाए।
मन में सोचते हुए वह दरवाजे खोल अंदर गई और धीरे से कंबल हटाकर कहा अम्मा उठ जाइए खाना खा लीजिए।
अम्मा कुछ जवाब देती उससे पहले ही शारदा जी ने फिर कहा अम्मा उठिए मैं मीरा की मां हूं । आप ठीक हैं? उठिए खाना खा लीजिए।
बोलकर शारदा जी ने कंबल हटा दिया। फिर उनकी बांह पकड़ जैसे ही उन्हें उठाकर बिठाया की अम्मा का चेहरा देखते ही उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। मुंह खुला रह गया आंखें फटी रह गई।
कुछ यही हाल बूढ़ी अम्मा का भी था।
अम्मा कुछ बोलने को हुई लेकिन आवाज मुंह में गई और बोल नहीं सकी।
इधर शारदा जी के आंखों से झर झर आंसू बहने लगे। मां जी आप इस हालत में कैसे? क्या हुआ? घर में बाकी सब कैसे हैं कहां है वह?
शारदा जी की बात सुनते ही अम्मा जी की आंखों से झर झर आंसू बहने लगे फूट-फूट कर रोने लगी।
वह बूढ़ी अम्मा कोई और नहीं शारदा जी की सास थी।
आगे की कहानी अगले भाग में।
क्रमशः